Hu Xijin – चीन की सबसे बड़ी कमजोरी और ताकत क्या है? चीन की सबसे बड़ी कमजोरी विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और उसकी सबसे बड़ी ताकत विचार और अभिव्यक्ति की परतंत्रता है। मानसिक परतंत्रता पर एक तानाशाह का शासन टिकता है और इसके स्वतंत्र होते ही भरभरा कर गिरने लगता है। तब एक तानाशाही सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने का हर संभव प्रयास करती है। मौजूदा समय में चीन की साम्यवादी सरकार कुछ ऐसा ही कर रही है।
चीन के श्वान अर्थात् ग्लोबल टाइम्स के संपादक ने मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर एक लेख लिखा। उन्होने सरकारी हस्तक्षेप के कारण पत्रकारों की कठिनाइयों और पत्रकारिता में घटते नवाचारों का उल्लेख किया। उन्होंने सरकार द्वारा पत्रकारों पर लगाए जा रहे हैं प्रतिबंधों के कारण उनकी घटती साख और विश्वसनीयता का भी उल्लेख दिया। चीनी सरकार द्वारा त्वरित रूप से इस लेख को हटा दिया गया है। अब उसके स्थान पर “404!!! page not found” लिखा आ रहा है। इस लेख से जुड़े ट्विटर पोस्ट भी हटा लिए गए है।
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हालांकि, चीन में ग्लोबल टाइम्स के मुख्य संपादक Hu Xijin ने पहली बार इतनी बेबाकी से अपनी राय रखी थी। वरना वो तो साम्यवादी सरकार के सबसे विश्वस्त सेवकों और अमेरिका के सबसे प्रमुख आलोचकों में से एक रहे हैं। चीन और अमेरिका के बीच संभावित युद्ध को लेकर उनकी रिपोर्टिंग की पश्चिमी मीडिया में जबरदस्त आलोचना हुई थी।
कौन हैं Hu Xijin?
वैसे आपको जानकर हैरानी होगी कि Hu Xijin 1989 में चीन के तिएनमेन चौक पर लोकतंत्र के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे। हजारों प्रदर्शनकारियों को मौत के घाट उतार चीन ने इस विरोध को दबा दिया। Hu Xijin साम्यवादी शासन के गुलाम बन गए और चीनी सरकार की इस बर्बरता को जायज ठहरा दिया!
संभव है कि शासन की निरंकुशता और पत्रकारिता का पतन देखकर उनका हृदय भर गया हो और उन्होंने ऐसा लेख लिख दिया हो। परंतु, मालिक के आंख दिखाते ही उन्होंने अपनी गलती ऐसे सुधार ली, जैसे उन्होंने तिएनमेन चौक पर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन के समय किया था। उन्होंने कहा कि चीनी पत्रकारिता के स्वतंत्रता से उनका तात्पर्य यह नहीं कि हम बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स बन जाए, बल्कि उन नए क्षेत्रों को ढूंढना है जहां हम चीन की साम्यवादी नीतियों का समर्थन कर सके।
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शिन्हुआ बना वैश्विक हंसी का पात्र
हाल ही में चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ उस समय वैश्विक स्तर पर हंसी का पात्र बन गई, जब उसने चाटुकारिता का चरम पार करते हुए शी जीनिपिंग को एक दृढ़ संकल्पित, गहन विचारों और भावनाओं से परिपूर्ण व्यक्ति बताया, जिसे महानता विरासत में मिली है लेकिन कुछ नया करने का साहस है, एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास दूरंदेशी दृष्टि है और अथक परिश्रम करने के लिए प्रतिबद्ध है। इससे आप स्वयं समझ सकते है कि चीन में पत्रकारों की हैसियत क्या है?
चाहे कोरोना का मसला हो या हांगकांग का चीन सभी खबरों को दबा देता है, पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ शी जिनपिंग का महिमामंडन रह गया है। एक कहावत है कि दुनिया का सबसे डरपोक व्यक्ति एक तानाशाह होता है। उसे हमेशा डर लगा रहता है कि स्वतंत्रता की सिर्फ एक चिंगारी उसके सम्पूर्ण लंका को जलाकर राख कर देगी। चीन इसी डर से Hu Xijin कि आवाज़ को दबा रहा है। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र और एक समावेशी समाज होने के नाते हमें Hu Xijin जैसे पत्रकारों का आवाज़ बनना चाहिए अन्यथा अभिव्यक्ति की आजादी की ये चिंगारी, जिससे चीन सबसे ज्यादा डरता है, सदा सर्वदा के लिए बुझ जाएगी!