भारत ने दुनिया के सामने स्पष्टता के साथ यह साबित कर दिया है कि वैश्विक व्यवस्था में भारत अपनी जिम्मेदारी तभी निभाएगा, जब भारत की शर्तों को स्वीकार किया जाएगा। भारत सरकार की ओर से बीते रविवार को यह कहा गया कि भारत क्लाइमेट गोल को तभी प्राप्त कर सकेगा जब न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) में उसे स्थान मिलेगा और कुछ अन्य ऐसी ही शर्तें पूर्ण होंगी। भारत का न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में शामिल होना, चीन के विरोध के कारण संभव नहीं हो पा रहा है। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में सदस्यता ना मिलने के कारण भारत के पास आवश्यक तकनीक उपलब्ध नहीं है। भारत ने स्पष्टता के साथ कहा है कि एक न्यूक्लियर शक्ति के रूप में भारत ने पूर्ण जिम्मेदारी के साथ व्यवहार किया है, ऐसे में कोई कारण नहीं है जिस आधार पर भारत की सदस्यता रोकी जाए। भारत ने CBDR-RC सिद्धांत की आवश्यकता पर जोर दिया है।
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क्या है (CBDR-RC) सिद्धांत?
दरअसल, CBDR-RC सिद्धांत, 1992 में रियो में हुए United Nations के Environment and Development कॉन्फ्रेंस (UNCED) में अपनाया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार सभी देशों का लक्ष्य वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा के लिए, पर्यावरण की सुरक्षा हेतु प्रतिबद्ध रहना है। तब कहा गया था कि पर्यावरण सुरक्षा के लिए विकसित देशों को अधिक जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी और विकासशील और अल्पविकसित देशों की सहायता करनी पड़ेगी। भारत ने मौजूदा समय में G-20 में इसी सिद्धांत की बात उठाई है और पश्चिमी देशों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया है।
NSG की सदस्यता के बिना है असंभव है न्यूक्लियर पावर प्लांट
G-20 सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल भारत की ओर से प्रतिनिधि के तौर पर चर्चा में सम्मिलित हुए। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में भारत के भावी कदमों पर चर्चा करते हुए कहा, “भारत सरकार को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोयले के बजाय न्यूक्लियर एनर्जी का प्रयोग यदि शुरू करना है, तो इसके लिए भारत को पूंजी की आवश्यकता पड़ेगी। नए न्यूक्लियर प्लांट को स्थापित करने के लिए भारी मात्रा में पूंजी लगेगी।“
पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत की विकास की रफ्तार के अनुरूप बिजली का उत्पादन भी आवश्यक है। यदि भारत को अपनी आवश्यकता की बिजली को कोयले के बजाय न्यूक्लियर पावर प्लांट से पैदा करना है, तो भारत को अत्यधिक पूंजी की जरूरत पड़ेगी। तभी भारत अपनी वर्तमान और भविष्य की बिजली आपूर्ति की मांग को न्यूक्लियर पावर प्लांट से पूरा कर सकेगा। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पूंजी के अतिरिक्त भारत को न्यूक्लियर पावर प्लांट चलाने के लिए लगातार यूरेनियम की आपूर्ति की आवश्यकता पड़ेगी, जो बिना न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता के संभव नहीं है।
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अब ये जानना बेहद जरूरी है कि आखिर न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता इतनी जरूरी क्यों है और कौन इसमें रोड़ा अटका रहा है। दरअसल, भारत के द्वारा 1974 किये गए परमाणु परिक्षण के बाद “न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप” (NSG) का गठन किया गया था। NSG में 48 देशों को रखा जाता है, जो परमाणु हथियार और परमाणु प्रौद्योगिकी के व्यापार को संचालित करता है। इस ग्रुप में मौजूद सभी देश एक दुसरे से परमाणु में लगने वाले सामान का आयात निर्यात कर सकते है, उन्हें किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी। लेकिन ग्रुप ये सुनिश्चित करता है कि ये समान मानव हित के लिए उपयोग में लाया जाये, न कि किसी हथियार या मिसाइल के लिए। ग्रुप के मेम्बर इस परमाणु सप्लाई का उपयोग अपने देश की सेना के लिए भी नहीं कर सकते है।
NSG के इस 48 देशों के इस समूह में 5 परमाणु हथियार संपन्न देश हैं। बाकि 43 देश परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) एनएनपीटी पर हस्ताक्षर करने वाले देश है। यह अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु करार था, 2008 में यह निष्कर्ष निकाला गया कि एनएसजी के सदस्य के रूप में भारत के आवेदन को मान्यता दी जाये। वहीं, चीन शुरु से ही इसमें अडंगा लगाते आ रहा है। गौरतलब है कि एनएसजी ग्रुप में मौजूद अगर कोई भी देश किसी देश की सदस्यता का विरोध करता है, तो उसे इसमें शामिल नहीं किया जा सकता।
भारत ने पश्चिमी देशों को दिया तगड़ा संदेश
बताते चलें कि भारत को एनएसजी की सदस्यता मिलने से पाकिस्तान का इस समूह में आना मुश्किल हो जायेगा, वहीं अगर भारत को सदस्यता मिल जाती है तो चीन की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं। यही वजह है कि इस मसले पर चीन भारत की जगह पाकिस्तान के समर्थन में खड़ा है। चीन का कहना है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया है, जिससे इस समूह का सदस्य नहीं बन सकता है। चीन दरअसल सत्ता का खेल, खेल रहा है, वो चाहता है भारत न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप से बाहर रहे, और विकसित तकनीक के प्रयोग से महरूम रह जाये।
वहीं, दूसरी ओर कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे पर भी वैश्विक राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है। पश्चिमी देश कार्बन उत्सर्जन के मसले पर भारत को निशाने पर ले रहे हैं, जबकि भारत का कार्बन उत्सर्जन अमेरिका और चीन से भी कम है। ऐसे में भारत ने पश्चिमी देशों को तगड़ी लताड़ लगाते हुए स्पष्ट संदेश दे दिया है कि जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने में सबसे बड़ी बाधा उसका न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG ) में शामिल नहीं होना है।
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