कांग्रेस पार्टी अपने राजनीतिक ढलान पर है। कांग्रेस के भीतर उपजे आतंरिक कलह ने देश की सबसे पुरानी पार्टी को पतन के रास्ते पर ला दिया है। इस बीच कोयला ब्लॉकों के संचालन को लेकर कांग्रेस की दो राज्य सरकारों में तू-तू मैं-मैं हो रही है। कोयला राजस्थान और अन्य राज्यों में बिजली संयंत्रों के लिए उपयोग किया जाता है। वहीं, कोयला ब्लॉक छत्तीसगढ़ में स्थित है। राजस्थान सरकार ने संकट के समाधान के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के हस्तक्षेप की मांग करते हुए कई अभ्यावेदन दिए हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि उन्होंने छत्तीसगढ़ के सीएम को बार-बार फोन किया लेकिन कुछ भी काम नहीं हुआ।
आपस में लड़ रहे हैं कांग्रेस शासित राज्य
आपको बता दें कि कोयला संकट के कारण राजस्थान में बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है। इससे राज्य को व्यापक ब्लैकआउट का सामना करना पड़ा है। इसको लेकर राजस्थान सरकार ने केंद्र का दरवाजा खटखटाया है। राजस्थान सरकार ने कहा है कि “छत्तीसगढ़ सरकार दो कोयला ब्लॉक शुरू करने और दो अन्य खदानों में उत्पादन बढ़ाने की योजना को बाधित कर रही है।” इससे पहले 9 दिसंबर 2021 को गहलोत ने राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) के अध्यक्ष आर. के. शर्मा ने बिजली संकट को हल करने के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन और अन्य प्रमुख अधिकारियों से मुलाकात की थी पर उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।
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शीर्ष सूत्रों ने बताया कि गहलोत और उनके अधिकारियों ने पिछले कुछ महीनों में छत्तीसगढ़ सरकार को कई पत्र लिखे हैं। अब इस मामले को लेकर गहलोत सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) से हस्तक्षेप करने के लिए कहा है। PMO को दिए अपने अभ्यावेदन में, गहलोत ने कहा कि “राजस्थान सरकार उच्च बिजली दरों के कारण जनता के गुस्से का सामना कर रही है। इससे भी बदतर है कि राजस्थान को कोयला ब्लॉकों के संचालन में लगातार देरी के लिए दंड का भी सामना करना पड़ रहा है।”
बिजली संकट पर CM गहलोत का भूपेश बघेल को पत्र
PMO के पास जाने से पहले इस मामले में राजस्थान सरकार ने बार-बार छत्तीसगढ़ वन विभाग से मंजूरी के लिए अनुरोध किया था लेकिन उन्होंने इसपर ध्यान नहीं दिया। जिसके बाद राजस्थान के अपर प्रमुख सचिन सुबोध अग्रवाल ने कोयला एवं बिजली सचिव अनिल जैन और आलोक कुमार को पत्र लिखकर उनके हस्तक्षेप की मांग की है। जैन और कुमार को अलग-अलग पत्रों में अग्रवाल ने राजस्थान की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खदानों में उत्पादन को शुरू करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए आवश्यक कार्रवाई की मांग की है।
दरअसल, राजस्थान के अपर मुख्य सचिव का पत्र पिछले साल अक्टूबर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल को दिए गए संदेश के बाद आया है। इसमें सीएम गहलोत ने कहा था कि “मैं आपको (भूपेश बघेल) सूचित करना चाहता हूं कि राजस्थान ने अपने राज्य में स्थापित थर्मल पावर स्टेशनों में 40 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है।” उन्होंने अपने पत्र में भूपेश बघेल को बताया था कि “ये कोयला ब्लॉक मौजूदा और साथ ही RRVUNL बिजली स्टेशनों की अधिकांश कोयला आवश्यकताओं को पूरा करते हैं और ईंधन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हैं।”
खतरे में पड़ सकता है कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य
गौरतलब है कि राजस्थान का बिजली विभाग राज्य में14,000 मेगावाट बिजली की सबसे बड़ी मांग को किफायती दरों पर पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। पिछले महीने, राजस्थान को कोयले की उच्च लागत और एक्सचेंजों से बिजली की खरीद के कारण अगले तीन महीनों की अवधि के लिए बिजली दरों में 33 पैसे प्रति यूनिट की वृद्धि हुई थी।
राजस्थान सरकार का कहना है कि “छत्तीसगढ़ वन विभाग ने अभी तक परसा प्रखंड को शुरू करने की आवश्यक अनुमति नहीं दी है। यहां से अनुमानित उत्पादन क्षमता पांच मिलियन टन प्रतिवर्ष है। केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने 21 अक्टूबर को स्टेज-2 वन मंजूरी दे दी है। केंद्रीय हरित मंत्रालय द्वारा स्वीकृत 1136 हेक्टेयर भूमि कांता पूर्व और कांता बसन खदानों को राज्य प्रशासन को सौंपने के लिए वन मंजूरी प्रस्ताव में अभी आवश्यक संशोधन किए जाने बाकी हैं।” राजस्थान सरकार ने आगे कहा है कि “दोनों खदानों की अतिरिक्त भूमि से उत्पादन 1.5 करोड़ टन से बढ़कर 21 लाख टन हो जाएगा।”
ऐसे में, राज्य में पर्यटन क्षेत्र को अपनी बिजली सस्ती रखने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं, इस मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री का अभी तक कोई बयान नहीं आया है किन्तु जिस तरह से यह दोनों राज्य आपस में लड़ रहे हैं, उससे कांग्रेस आने वाले समय में एक बड़े टूट की कगार पर आ सकती है। वहीं, कयास यह भी लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों का आपसी तनाव कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण लगा सकता है, जिसका लाभ विपक्षी पार्टियां को मिलेगा।