चार श्रम संहिताएं- कोरोना ने वैश्विक स्तर पर विस्तार के साथ ही ऑफिस वर्क की संस्कृति पर बड़ा व्यापक प्रभाव डाला है। लगभग पूरे विश्व में ही आंशिक या पूर्ण लॉकडाउन लागू होने के कारण प्रतिदिन ऑफिस जाकर कार्य करने की पद्धति बदल गई है। पूरी दुनिया में वर्क फ्रॉम होम की संस्कृति विकसित हुई है। आईटी सेक्टर से लेकर शिक्षा के क्षेत्र तक ऑनलाइन माध्यम से ही कार्य हो रहे हैं। यहां तक कि कोरोना की मार कम होने पर भी अधिकांश सेक्टर में वर्क फ्रॉम होम या हाइब्रिड कल्चर में कार्य हो रहा है अर्थात् या तो अधिकांश लोग घरों से कार्य कर रहे हैं या ऑफिस आ भी रहे हैं, तो प्रतिदिन आने की अनिवार्यता समाप्त हो चुकी है। ऑफिस आकर कार्य करना भी अधिकांशत: कोरोना के बढ़ते घटते प्रभाव पर निर्भर करता है।
अगले वित्त वर्ष में लागू हो सकती है चार श्रम संहिताएं
भारत में भी लॉकडाउन के दौरान केवल आवश्यक सेवाओं से जुड़े व्यक्तियों के लिए ऑफिस आकर कार्य करना अनिवार्य था। पुलिस विभाग, स्वास्थ्य कर्मी, बिजली विभाग कर्मी आदि ऐसे कुछ सीमित क्षेत्रों के लोगों को ही कार्यालय आकर कार्य करना पड़ रहा था। इस कारण अब भारत में लेबर कोड अर्थात् श्रम के नियमों में व्यापक बदलाव पर विचार किया जा रहा है। समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वेतन, सामाजिक सुरक्षा, औद्योगिक संबंध और व्यवसाय सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति से सम्बंधित चार श्रम संहिताएं अगले वित्तीय वर्ष तक नए सुधार लागू होने की संभावना है। PTI ने बताया कि ‛चार श्रम संहिताएं वर्ष 2022-23 के अगले वित्तीय वर्ष में लागू होने की संभावना है, क्योंकि बड़ी संख्या में राज्यों ने इन नियमों के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है।’
और पढ़ें: वैश्विक निर्यात क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करने के लिए पूरी तरह तैयार है भारत
कार्य के घंटे 12 तक बढ़ाए जा सकते हैं
खबरों के मुताबिक सरकार जिन परिवर्तन पर विचार कर रही है, उसके बाद भारत में कार्य करने वाले लोगों को 5 के स्थान पर चार कार्यदिवस की सुविधा मिल सकती है। अर्थात् सप्ताह में चार दिन ही कार्य करना पड़ेगा। हालांकि, 4 कार्य दिवस की सुविधा मिलने पर कार्य के घंटे 12 तक बढ़ाए जा सकते हैं। ऐसे में सप्ताह में 48 कार्य घंटे पर विचार किया जा रहा है। एक महत्वपूर्ण बिंदु जिस पर सुधार लागू करने से पूर्व विचार हो रहा है, वह यह है कि क्या इस परिवर्तन से वेतन पर प्रभाव पड़ेगा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,“केंद्र ने फरवरी 2021 में इन संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप दिया था, चूंकि श्रम एक समवर्ती विषय है, इसलिए राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी ओर से इस पर नियम तैयार करें, जिसके बाद 2022-23 में ये नए बदलाव पेश किए जाएंगे।“ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अधिकांश राज्यों ने भी इस संदर्भ में मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है। किंतु यह सुधार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि विपक्षी दल इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े होंगे या विरोध में। कृषि कानूनों के संदर्भ में हम पहले देख चुके हैं कि संघीय ढांचे की दुहाई देकर किस प्रकार सुधारों को रोकने की कोशिश की गई और उसे रोका गया।
और पढ़ें: चावल निर्यात में 33 प्रतिशत वृद्धि सहित भारत ने तोड़े अनेक रिकॉर्ड