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जम्मू-कश्मीर में हिंदू मुख्यमंत्री की कल्पना नवीनतम परिसीमन संख्या के साथ एक वास्तविकता बन जाएगी

जल्द ही बदलने वाला है जम्मू-कश्मीर का कायाकल्प!

Yashwant Singh द्वारा Yashwant Singh
21 December 2021
in राजनीति
जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग

Source- TFIPOST

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जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग – जम्मू-कश्मीर में बहुत जल्द ही एक हिन्दू मुख्यमंत्री को देखा जा सकता है। यह बात चौंकाने वाली जरुर लग सकती है, लेकिन आने वाले कुछ समय में इसकी संभावना काफी प्रबल है। जम्मू-कश्मीर में अभी तक एक भी गैर मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बन सका है। न सिख, न ईसाई, न बौद्ध और न ही कोई अन्य धर्म का व्यक्ति कभी मुख्यमंत्री बन सका है। इसके पीछे मूल तर्क यह दिया जाता रहा है कि जम्मू-कश्मीर एक विशिष्ट पहचान रखता है और एक हिन्दू मुख्यमंत्री के बनने से वह विशिष्ट पहचान खतरे में पड़ सकती है।

हिन्दू बाहुल्य राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्री आसानी से रह जाते हैं और हिंदुओं की पहचान पर भी खतरा नहीं उत्पन्न होता, लेकिन कश्मीर तो विशेष राज्य था! राजनीतिक दलों ने मानवाधिकारों को किनारे रखकर राज्य के फर्जी पहचान को बढ़ावा देना जारी रखा। वो यह भूल गए कि हिन्दू जम्मू-कश्मीर में एक बड़ी आबादी को बनाते हैं और जम्मू में तो वो बहुमत में भी हैं। एक लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में हिन्दू मुख्यमंत्री की बात होती रही है और शायद अब जल्द ही इस राज्य को पहली बार एक हिन्दू मुख्यमंत्री भी मिल सकता है।

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जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का प्रस्ताव

दरअसल, वर्ष 2018 से जम्मू-कश्मीर में विधायिका से प्राप्त सरकार नहीं है। वर्ष 2019 के ऐतिहासिक फैसले के बाद जम्मू कश्मीर का विभाजन हो गया, लेकिन चुनाव नहीं हुआ। वह इसलिए भी नहीं हुआ, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग बनाया गया था और जिम्मेदारी दी गई थी कि राज्यों के विधानसभा सीमाओं में आवश्यक बदलाव किए जाएं। अब आखिरकार परिसीमन आयोग अपना प्रस्ताव लेकर आई है, जिसके अनुरुप जम्मू-कश्मीर में सीटों के आंकड़े बदल दिए गए हैं।

इससे पहले कि इस खबर की तह तक जाएं, आवश्यक है कि हम पहले वर्तमान परिसीमन सीमाओं को जान लें। जम्मू-कश्मीर विधानसभा शुरू में 100 सदस्यों से बनी थी, जिसे बाद में जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन संविधान में बीसवां संशोधन कर 111 कर दिया गया। इनमें से 24 सीटें राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए निर्दिष्ट हैं, जो 1947 में पाकिस्तानी नियंत्रण में आए थे। ये सीटें तत्कालीन राज्य के संविधान की धारा 48 के अनुसार और अब भारत के संविधान में भी आधिकारिक रूप से खाली है।

विधानसभा की कुल सदस्यता की गणना के लिए इन सीटों को ध्यान में नहीं रखा जाता है, विशेष रूप से कानून और सरकार के गठन के लिए गणपूर्ति और मतदान बहुमत तय करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं होता है। ऐसे में चुनाव योग्य सीटें मात्र 87 रह गई हैं, जिनमें से वर्तमान में लद्दाख को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अलग करने के बाद 83 सीटें हैं, क्योंकि लद्दाख में 4 सीटें थी। वर्तमान में कश्मीर घाटी क्षेत्र में 46 सीटें हैं और जम्मू क्षेत्र में 37 सीटें हैं।

और पढ़ें: ‘PDP सरकार ने आतंकवादियों को वित्त पोषित किया,’ NIA के खुलासे से जल्द ही महबूबा मुफ्ती सलाखों के पीछे जा सकती हैं

SC की सेवानिवृत्त न्यायाधीश कर रही हैं आयोग की अध्यक्षता

अगले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव से पहले विधानसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्रों के लिए परिसीमन शुरू किया गया था। परिसीमन प्रक्रिया के कारण, जम्मू संभाग में 6 सीटें और कश्मीर संभाग में 1 सीट जोड़ी जानी तय हुई है और इस प्रकार सीटों की कुल संख्या 90 हो गई है। जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने जम्मू क्षेत्र के लिए 6 और कश्मीर घाटी के लिए 1 अतिरिक्त सीटों का प्रस्ताव दिया है। इससे हिंदू बाहुल्य जम्मू में 43 और कश्मीर घाटी में कुल सीटें 47 हो जाएंगी। एसटी के लिए 9 सीटें और एससी के लिए 7 सीटें प्रस्तावित हैं। सहयोगी सदस्यों ने 31 दिसंबर, 2021 तक अपने सुझाव प्रस्तुत करने का अनुरोध किया है।

जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग में भाजपा के दो सांसद जुगल किशोर शर्मा और डॉ जितेंद्र सिंह तथा नेशनल कॉन्फ्रेंस के तीन फारूक अब्दुल्ला, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी और मोहम्मद अकबर लोन भी शामिल हैं। आपको बताते चलें कि आयोग की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना देसाई कर रही हैं और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा भी पदेन सदस्य और जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी के रूप में शामिल हैं। आयोग के पास नए निर्वाचन क्षेत्र बनाने के लिए 6 मार्च तक का समय है।

महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला ने उठाए सवाल

इससे पहले, जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी ने आरोप लगाया था कि उन्हें जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग में कोई विश्वास नहीं है, जो “भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहा है”। पीटीआई ने पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के हवाले से कहा कि “जहां तक ​​परिसीमन आयोग का सवाल है, यह भाजपा का आयोग है। उनका प्रयास अल्पसंख्यक के खिलाफ बहुमत को खड़ा करना और लोगों को और अधिक शक्तिहीन करना है। वे भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए (विधानसभा) सीटों को इस तरह से बढ़ाना चाहते हैं।”

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दूसरी ओर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग की सिफारिश अस्वीकार्य है। नव निर्मित विधानसभा क्षेत्रों का वितरण जिसमें 6 जम्मू और केवल 1 कश्मीर में जा रहे हैं, 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार उचित नहीं है।

The draft recommendation of the J&K delimitation commission is unacceptable. The distribution of newly created assembly constituencies with 6 going to Jammu & only 1 to Kashmir is not justified by the data of the 2011 census.

— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) December 20, 2021

उन्होंने अपने अगले ट्वीट में कहा, “यह बेहद निराशाजनक है, ऐसा लगता है कि जिन आंकड़ों पर विचार किया जाना था, उससे इतर आयोग ने भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को अपनी सिफारिशों में तय करने की अनुमति दी है। यह वादा किए गए “वैज्ञानिक दृष्टिकोण” के विपरीत एक राजनीतिक दृष्टिकोण है।”

It is deeply disappointing that the commission appears to have allowed the political agenda of the BJP to dictate its recommendations rather than the data which should have been it’s only consideration. Contrary to the promised “scientific approach” it’s a political approach.

— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) December 20, 2021

Tags: उमर अब्दुल्लाजम्मू-कश्मीरपरिसीमन आयोग
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