चीन अपने कारोबार को संपूर्ण दुनिया में फ़ैलाने को लकेर हमेशा आतुर रहता है। चीन अपने व्यापारिक तरक्की के उद्देश्य की पूर्ति के लिए कई चीनी कपनियों को दूसरे देशों में भेजने के लिए भी प्रतिबद्ध रहा है। इसी बीच बांग्लादेश ने चीन के विरुद्ध सख्त कदम उठाते हुए चीनी कंपनियों की निगरानी शुरू कर दी है।
चीनी कंपनियां बांग्लादेश में चीन के ‘वन बेल्ट एंड वन रोड प्रोजेक्ट’ के तहत इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में लगी हुई है लेकिन एक चीनी कंपनी ने बांग्लादेश में कंस्ट्रक्शन से संबंधित संसाधनों के आयात पर टैक्स की चोरी की है, जिसके बाद बांग्लादेश सरकार ने पूरे मामले की जांच करनी शुरू कर दी है। बांग्लादेश का यह कदम अत्यंत साहसपूर्ण है और बांग्लादेश के इस साहस के पीछे भारत की शक्ति का योगदान है। आइये आपको बताते हैं कि बांग्लादेश चीन के विरुद्ध इतनी मजबूती के साथ कैसे खड़ा हुआ है और इसके पीछे क्या कारण हैं?
टैक्स चोरी मामले में चीनी कंपनियों पर बांग्लादेश है सख्त
दरअसल, पिछले दिनों भारत सरकार ने बांग्लादेश को लाइन ऑफ क्रेडिट पर 500 मिलियन डॉलर का लोन दिया था। लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) का अर्थ है- पहले से निर्धारित की गई उधारी सीमा, जिसमें उधारकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार धन निकाल सकता है जब तक कि वो अधिकतम सीमा तक न पहुंच जाए और उसे पुनर्भुगतान भी करना होता है। वहीं, बांग्लादेश 500 मिलियन डॉलर तक के सामान भारत से जब चाहे तब खरीद सकता है और उसका भुगतान धीरे-धीरे कई वर्षों में कर सकता है। साथ ही 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर भारत के राष्ट्रपति की बांग्लादेश यात्रा से भी बांग्लादेश को बल मिला है कि वह चीनी कंपनियों पर कार्रवाई कर सके।
चीन की कंपनियों द्वारा दूसरे देशों में दूषित आर्थिक नीतियों का प्रयोग करना कोई नई बात नहीं है। बता दें कि वर्ष 2020 में बांग्लादेश में ही एक चीनी कंपनी, ZTE बांग्लादेश जो चीनी कंपनी ZTE की अनुषांगिक कंपनी है, के विरुद्ध नेशनल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू द्वारा जांच शुरू की गई थी। इस कंपनी पर भी टैक्स चोरी का ही आरोप लगा था। इसके अतिरिक्त चीनी कंपनियों पर बांग्लादेश में सरकारी फंड के गबन का भी आरोप लगता रहा है।
बांग्लादेश में अमेरिका की छवि का भी है प्रश्न
हालांकि, इन सब के बाद भी बांग्लादेश के लिए चीन से पीछा छुड़ाना अत्यंत कठिन कार्य होगा। यह तब तक संभव नहीं है जब तक भारत बांग्लादेश के समर्थन में पूरी तरह ना खड़ा हो। वहीं, भारत के लिए भी बांग्लादेश का चीनी धड़े में न जाना ही अच्छा है। इसे भारतीय विदेश नीति की सफलता ही माना जाएगा कि बांग्लादेश ने विपरीत परिस्थितियों में चीन की कंपनियों के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया है।
हाल ही में, अमेरिका ने बांग्लादेश में एक NGO के विरुद्ध सरकार के दमन को कारण बताकर, बांग्लादेश के सात वर्तमान और पूर्व सैन्य अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि, इस प्रतिबंध से बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था अथवा उसके बेहतर हितों को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होने वाला है लेकिन अमेरिका के प्रतिबंध से बांग्लादेश में उसकी छवि बिगड़ सकती है। वैसे भी बांग्लादेश के कट्टरपंथी अमेरिका, भारत, फ्रांस सहित अन्य लोकतांत्रिक शक्तियों के विरुद्ध हैं, ऐसे में, अमेरिका के प्रतिबंध जनभावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं और निश्चित रूप से ठेस पहुंचा भी चुके होंगे।
चीन के विरुद्ध और भारत के साथ खड़ा है बांग्लादेश
लेकिन इसके बाद भी भारत ने बांग्लादेश को चीनी कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित किया है। बांग्लादेश जानता है कि अगर अमेरिका उसपर दबाव बढ़ाएगा तो एकमात्र देश भारत ही है, जो उसे सहयोग दे सकता है। वैसे भी दुनिया में एक लंबे समय तक बांग्लादेश को भारत के नजरिए से ही देखा गया है। स्वतंत्रता के लगभग दो दशकों बाद तक बांग्लादेश वैश्विक स्तर पर अलग-थलग पड़ा हुआ था और भारत ही बांग्लादेश का एकमात्र सहयोगी था। अतः आज भी पश्चिमी देशों से कूटनीतिक संपर्क के लिए, बांग्लादेश भारत पर काफी हदतक निर्भर है।
वहीं, भारत को अमेरिका तथा अन्य क्वाड देशों के सहयोग से बांग्लादेश को चीनी लोन के बजाये कोई अन्य विकल्प प्रदान करना चाहिए। इसी वर्ष चीन ने बांग्लादेश को धमकी दी थी कि वह क्वाड से अपना संपर्क ना बढ़ाए। इसके बाद बांग्लादेश के विदेशमंत्री ने चीनी राजदूत के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि “बांग्लादेश स्वतंत्र है और वह चीन से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं करते।”
बांग्लादेश ने सधे किन्तु स्पष्ट शब्दों में चीन को यह समझा दिया था कि अपनी विदेश नीति तय करने में बांग्लादेश स्वयं सक्षम है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि बांग्लादेश अमेरिका और चीन के बीच एक संतुलन की नीति लेकर चलना चाहता है किंतु भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बांग्लादेश हर स्थिति में चीन के विरुद्ध और भारत के साथ ही खड़ा रहे।