आपने अक्सर सुना होगा कि लोग ‘जिप्सी’ शब्द का इस्तेमाल खानाबदोशों के लिए करते हैं, जिनके पास कोई स्थायी घर नहीं है और जो लगातार गांव, कस्बों और शहरों को बदल रहे हैं। बदलते हुए समय के साथ इस शब्द का इस्तेमाल नस्लीय गाली के रूप में किया जाने लगा। पर क्या आपको पता है “जिप्सी” एक स्वदेशी भारतीय जातीय समूह हैं, जो लगभग 10वीं शताब्दी में उत्तरी भारत से निकलकर दुनिया भर में फैले और अलग-अलग नामों से जाने जाने लगे।
जिप्सी लोगों को यूरोप में रोमानी नाम से जाना जाता है। वे बिखरे हुए हैं परंतु, यूरोप, विशेष रूप से मध्य, पूर्वी और दक्षिणी यूरोप में मुख्य रूप से उपस्थित हैं। लगभग हर वैज्ञानिक और प्रामाणिक शोध “जिप्सी” लोगों का मूल भारतीय उपमहाद्वीप को बताता है। परंतु, आज “जिप्सी” शब्द पश्चिमी लोगों द्वारा दी जाने वाली एक गाली बन चुकी है। अतः, हम उन्हें यहां ‘रोमानियों’ के रूप में संदर्भित करेंगे।
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रोमनिस की उत्पत्ति
साइंटिफिक अमेरिकन की एक रिपोर्ट के अनुसार, रोमानियों अर्थात् “जिप्सियों” का प्रारंभिक संस्थापक समूह पंजाब राज्य से जाकर विदेश में बसा। वहां से उन्होंने मध्य एशिया और मध्य पूर्व की यात्रा की और वहां की स्थानीय आबादी के साथ घुलमिल गए हैं। उसके बाद वे बाल्कन क्षेत्र में बसे, जहां वे पूरे यूरोप में फैलने से पहले दो शताब्दियों तक बने रहें। उनके प्रवास का कारण अज्ञात है, पर ऐसा लगता है कि वे बस अपने घुमंतू स्वभाव के कारण घूमते रहें।
माना जाता है कि रोमानियों की उत्पत्ति भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में बसे डोम, बंजारा, गुज्जर, सांसी, चौहान और सिकलीगर जैसे घुमंतू समुदायों से हुई है। उनकी भाषा पंजाबी और हिंदी के साथ कई शब्द साझा करती है, जबकि उनका उच्चारण मारवाड़ी के समान है। उनका व्याकरण बंगाली के करीब है, जबकि जड़ें संस्कृत में हैं।
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स्थानीय विदेशी आबादी के साथ घुलमिल गए रोमन
जबकि कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि अगर रोमन वास्तव में भारतीय हैं, तो वे एक जैसे क्यों नहीं दिखते? उत्तर अपेक्षाकृत सरल है। जिप्सियों को देशों ने स्थानांतरित कर दिया, स्थानीय आबादी के साथ मिलकर वे संपर्क में आए। शोधकर्ताओं ने नोट किया है कि विभिन्न देशों के स्थानीय लोगों के साथ रोमन के अलग-अलग स्तर के अंतर्संबंध थे। Scientific American के शोध में उल्लेखित है कि “रोमानिया, हंगरी, स्लोवाकिया, बुल्गारिया और क्रोएशिया में रोमानी आबादी की आनुवंशिक पैटर्न दिखाती है। जबकि पुर्तगाल, स्पेन और लिथुआनिया के रोमानी आबादी में भी आनुवंशिक अनुक्रम हैं, जो इस बात का साक्ष्य है कि वे स्थानीय यूरोपीय आबादी के साथ मिश्रित हुए थे।”
रोमानियों के खिलाफ भेदभाव
रोमानियों के साथ जाति-आधारित भेदभाव अभी भी आधुनिक विश्व में किसी न किसी रूप में मौजूद है। अधिकांश श्वेत आबादी द्वारा उनका उपहास और बहिष्कार किया जाता है। लगभग 14 मिलियन आबादी के साथ यूरोप का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह होने के बावजूद, उनमें से 80% से अधिक गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। गोवा क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिप्सी समुदाय आधुनिक रोमानिया में लगभग 500 वर्षों से दासता के अधीन था। जर्मनी में नाजियों को खुद की श्रेष्ठता के प्रति इतना जुनून था कि वे रोमानियों को जर्मन जीन पूल के लिए एक खतरे के रूप में देखते थे। जबकि नाजियों द्वारा यहूदियों का प्रलय अच्छी तरह से प्रलेखित है, कई लोग इस तथ्य से बेखबर होंगे कि हिटलर ने अपनी राक्षसी शुद्धिकरण प्रक्रिया में 2 मिलियन से अधिक रोमानियों को मार डाला था।
रोमानी लोग चाहते हैं कि भारत उन्हें स्वीकार करे
वर्षों से, रोमवासियों ने भारत सरकार से उन्हें अल्पसंख्यक के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध किया है, ताकि उनके रास्ते में आए भेदभाव को शुरुआत में ही समाप्त किया जा सके। Hindustan times के साथ एक साक्षात्कार में विश्व रोमा संगठन के अध्यक्ष जोवन दमजानोविक ने कहा, “हम उम्मीद कर रहे हैं कि भारत रोमानियों को भारतीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता देगा। मानव शास्त्रीय और भौतिक प्रमाण है कि हम भारत के हैं। हम 12-15 मिलियन लोगों की उत्पत्ति को भारतीय मूल का स्वीकार करके भारत सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर जीत सकता है। दुनिया भर में सबसे प्रसिद्ध रोमा व्यक्तित्वों में से एक वर्तमान विश्व हैवीवेट चैंपियन टायसन फ्यूरी हैं।”
निष्कर्ष
अब समय आ चुका है जब दुनिया रोमानी लोगों को उनके योगदान के लिए पहचाने और सम्मान दे। हंगरी जैसी जगहों पर गिटार और वायलिन के प्रचालन से लेकर, स्पेन में फ्लेमेंको नृत्य और मिस्र में प्राच्य नृत्य तक सभी की उत्पत्ति उन्हीं से हुई है। उन्होंने विभिन्न कवियों, संगीतकारों और नाट्यकारों के कार्यों को अभूतपूर्व रूप से संजोया है। भारत सरकार को भी देश के कथित अल्पसंख्यकों के साथ-साथ उन वास्तविक अल्पसंख्यकों को भी दर्जा देने की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
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