Aparajita Stotram benefits in Hindi
Aparajita Stotram benefits in Hindi – आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसलिए इसे विजयादशमी या फिर दशहरा कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि माता सीता को लंका का राजा रावण अपहरण करके ले गया था. तब नारद मुनि के निर्देश के अनुसार भगवान श्री राम ने शक्ति की साधना की और नौ दिन व्रत करके भगवती दुर्गा को प्रसन्न किया. जिसमे भगवान राम ने भगवती दुर्गा से विजय का वर प्राप्त किया और रावण की लंका पर चढ़ाई की.
इसी आश्विन शुक्ल दशमी के दिन भगवान राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी. तब से इस तिथि को विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा. वहीं विजयदशमी के दिन शस्त्र पूजन की परंपरा है. क्षत्रिय समाज बड़ी संख्या में शस्त्र पूजन करते हैं. इसके पीछे उद्देश्य यह होता है कि शास्त्रों की रक्षा शस्त्र करते हैं. यह सुरक्षा और शक्ति का पर्व है. इसलिए सर्वत्र शांति के लिए शस्त्र पूजन होता है. भगवान राम ने भी शस्त्र तभी उठाए, जब शांति से बात नहीं बनी.
विजय दशमी के दिन ‘माता अपराजिता’ की भी पूजा की जाती है. शास्त्रों में दशहरे का असली नाम विजयदशमी है, जिसे ‘अपराजिता पूजा’ भी कहते हैं. अपराजिता देवी सकल सिद्धियों की प्रदात्री साक्षात माता दुर्गा का ही अवतार हैं. भगवान श्री राम ने माता अपराजिता का पूजन करके ही राक्षस रावण से युद्ध करने के लिए विजय दशमी को प्रस्थान किया था. यात्रा के ऊपर माता अपराजिता का ही अधिकार होता है.
Aparajita Stotram Shloka
शृणुध्वंमुनय: सर्वेसर्वकामार्थसिद्धिदाम्।
असिद्धसाधिनींदेवींवैष्णवीमपराजिताम्।।
नीलोत्पलदलश्यामांभुजङ्गाभरणोज्ज्वलाम्।
बालेन्दुमौलिसदृशींनयनत्रितयान्विताम्।।
पीनोत्तुङ्गस्तनींसाध्वींबद्धद्मासनांशिवाम्।
अजितांचिन्येद्देवींवैष्णवीमपराजिताम्।।
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देवी अपराजिता का करें विशेष पूजन
ज्योतिष के अनुसार माता अपराजिता के पूजन का समय अपराह्न अर्थात दोपहर के तत्काल बाद का है. अत: अपराह्न से संध्या काल तक कभी भी माता अपराजिता की पूजा कर यात्रा प्रारंभ की जा सकती है. यात्रा प्रारंभ करने के समय माता अपराजिता की यह स्तुति करनी चाहिए, जिससे यात्रा में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता- इसके लिए सबसे पहले पवित्र स्थान पर चंदन से आठ कोण दल बनाकर संकल्प करना चाहिए- ‘ममसकुटुम्बस्यक्षेमसिद्धयर्थ अपराजिता पूजन करिष्ये’. इसके बाद उस आकृति के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए. साथ ही दाहिने एवं बायें तरफ जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए. इसके बाद ‘अपराजितायैनमःजयायैनमःविजयायैनमः’ मंत्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए.
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शमी के वृक्ष की पूजा
अपराजिता पूजन में शमी के वृक्ष की जूजा का विशेष महत्व है. अपराजिता पूजन के पश्चात उत्तर-पूर्व की ओर शमी वृक्ष की पूजा करना चाहिए. शास्त्रों में शमी का अर्थ शत्रुओं का नाश करने वाला बताया गया है. शमी वृक्ष की पूजा करने के लिए उसे नीच नीचे चावल, सुपारी व तांबे का सिक्का रखते हैं. फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा करके उसकी जड़ के पास मिट्टी व कुछ पत्ते घर लेकर आते हैं.
शास्त्र पूजा
यह माना जाता है कि विजयदशमी के साथ ही महालक्ष्मी के पर्व प्रारम्भ हो जाते हैं. दिवाली समीप आने पर महालक्ष्मीमहासरस्वती और गणेश जी के साथ आगमन करती हैं. विजयदशमी के दिन शास्त्र, पुस्तक आदि की भी पूजा होती है और भगवती सरस्वती का आगमन के लिए आह्वान होता है.
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Aparajita Stotram benefits in Hindi – व्यापारियों के लिए शुभ
विजयदशमी पर खाता-बहियों का भी अपरोक्ष रूप से पूजन होता है. बहुत से समाज में यह परंपरा है कि इस दिन बाजार-भाव एक कागज पर लिखे जाते हैं. फिर, इनका पूजन होता है. बहुत सी फसलों का आगमन भी इसी से शुरू हो जाता है. बाजार तरक्की करे. धन-धान्य की वर्षा हो, इसलिए व्यापार की भी पूजा होती है.
महर्षि वेद व्यास ने अपराजिता देवी को आदिकाल की श्रेष्ठ फल देने वाली, देवताओं द्वारा पूजित और त्रिदेव द्वारा नित्य ध्यान में लाई जाने वाली देवी कहा है. राम ने रावण पर विजय प्राप्त की. इसलिए असत्य पर सत्य की जीत को विजयदशमी के रुप में मनाए जाने लगा. आज भी भारत में संपूर्ण रामायण की रामलीला नवरात्रों में होती है. और दसवें दिन सायंकाल में रावण का पुतला जलाया जाता है. इस दौरान यह ध्यान रखा जाता है कि दाह के समय भद्रा न हो.
नवदुर्गाओं की माता अपराजिता संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तिदायिनी और ऊर्जा उत्सर्जन करने वाली हैं. विजयदशमी को प्रातःकाल अपराजिता लता का पूजन, अतिविशिष्ट पूजा-प्रार्थना के बाद विसर्जन और धारण आदि से महत्वपूर्ण कार्य पूरे होते हैं.
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