विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में Apple और चीन के बीच हुए समझौते को लेकर रिपोर्ट छप रही है। रिपोर्ट के अनुसार एप्पल ने चीन के साथ 275 बिलियन डॉलर का समझौता किया था, जिससे वह चीन में अपनी आर्थिक गतिविधियों को अबाधित रूप से जारी रख सके। इकोनॉमिक टाइम्स, द वीक सहित कई अन्य समाचार पत्रों ने इस खबर को छापा है कि साल 2016 में एप्पल ने चीनी प्रशासनिक अधिकारियों से बात करके अपने विरुद्ध होने वाली कार्यवाही को रोका था। रिपोर्ट के अनुसार एप्पल के एग्जीक्यूटिव प्रमुख टिम कुक ने चीनी अधिकारियों के साथ 275 बिलियन डॉलर का समझौता किया था, जिसके अनुसार एप्पल को चीन की अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देना था।
हालांकि, इस रिपोर्ट के छपने के बाद से एप्पल ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन एप्पल के प्रशासनिक दस्तावेज और अन्य साक्षात्कारों के माध्यम से इस खबर की पुष्टि की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक चीनी सरकारी एजेंसी के साथ पांच साल के समझौते के अंतर्गत, Apple ने नए खुदरा स्टोर, अनुसंधान और विकास केंद्र एवं नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं जैसे सोलर सिस्टम आदि के निर्माण में निवेश किया है। इस समझौते ने एप्पल को चीन में उसके विरुद्ध हो रही रेगुलेटरी कार्रवाइयों से बचा लिया था।
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CCP के करीबी हैं Apple के CEO टिम कुक
रिपोर्ट के मुताबिक समझौते के एक भाग में यह भी तय हुआ था कि Apple को चीनी उपकरणों का अधिक उपयोग करना पड़ेगा, चीनी सॉफ्टवेयर फर्मों के साथ व्यापार करना पड़ेगा, चीनी तकनीकी कंपनियों में निवेश करने के अलावा प्रौद्योगिकी परियोजनाओं में चीनी विश्वविद्यालयों को शामिल करना पड़ेगा। इस खबर के छपने के बाद अब यह स्पष्ट है कि क्यों चीनी सरकार के इशारे पर Apple कंपनी गुलामों की तरह व्यवहार करती है! पिछले दिनों ही चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने एप्पल से उसके एपस्टोर पर उपलब्ध कुरान और बाइबिल को हटाने का निर्देश दिया, जिसे एप्पल ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था। एप्पल के लिए चीन का बाजार बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अमेरिका के बाद लाभ के मामले में दूसरे स्थान पर आता है। एप्पल ने वर्ष 2019 में अपने कुल रेवेन्यू का 16% हिस्सा चीन के बाजार से प्राप्त किया था।
Apple के CEO Tim Cook (टिम कुक) और CCP के बीच के रिश्ते भी काफी मजबूत माने जाते हैं। वर्ष 2019 में टिम को बीजिंग की शिंघुआ यूनिवर्सिटी की सलाहकार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। 2019 में ही Apple ने Hong-Kong के लोकतन्त्र-समर्थक प्रदर्शनकारियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही दो एप्स को अपने app स्टोर से हटा दिया था। लोकतन्त्र समर्थकों की आवाज़ दबाने वाले अपने इस एक्शन के बचाव में तब टिम ने कहा था कि उन्होंने यह फैसला इसलिये लिया क्योंकि यह चीन में अवैध था। इसके अलावा एक बार चीन के आदेश पर एप्पल ने 47000 एप्स को अपने स्टोर से डिलीट कर दिया था।
भारत में प्लांट स्थापित करने पर विचार कर रहा APPLE
हालांकि, पिछले महीने से चीन में पैदा हुए ऊर्जा संकट के बाद एप्पल ने वहां से अपने प्लांट को हटाकर भारत में स्थापित करने की योजना पर कार्य शुरू कर दिया है। संभवत: एप्पल के इस कार्य के पीछे का एक कारण चीन में व्याप्त भ्रष्टाचार और भय का माहौल भी है, क्योंकि अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय तक ट्रेड वार चला था। उस समय भी एप्पल को अपने व्यापार के लिए खतरा महसूस होता था। ऐसे में एप्पल के लिए बेहतर यही होगा कि वह चीनी दादागिरी और भ्रष्टाचार से अपना पीछा छुड़ाए तथा भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में निवेश करके स्वतंत्रता पूर्वक व्यापार करे।
वहीं, दूसरी ओर भारत को भी इस प्रकरण से सीख लेते हुए यह समझना चाहिए कि बड़ी अमेरिकी कंपनियां अपने व्यापारिक लाभ के लिए किसी भी प्रकार का समझौता कर सकती है, ऐसे में बार-बार भारत के अंदरूनी मामलों पर टिप्पणी करने वाली अमेरिकी कंपनियों के विरुद्ध भारतीय एजेंसियों को भी सख्त रुख अपनाना चाहिए। जिसके बाद निश्चित ही ये कंपनियां सीधे बच्चों की तरह व्यवहार करने लगेंगी!
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