भडल्या नवमी 2023 – क्या है महत्व और क्यों है यह पर्व इतना विशेष

भडल्या नवमी

File: indianfestivaldiary

भडल्या नवमी का महत्व

भडल्या नवमी प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल नवमी को मनाया जाता है. नवमी तिथि होने से इस दिन गुप्त नवरात्रि का समापन भी होता है. पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भडल्या नवमी का दिन भी अक्षय तृतीया के समान ही महत्व रखता है अत: इसे अबूझ मुहूर्त मानते हैं.इस दिन किसी भी प्रकार की सभी शुभ गतिविधियां आयोजित की जाती हैं.नवमी मुख्य रुप से विवाह जैसे शुभ कार्यों के लिए जन मानस के बीच अधिक प्रसिद्ध है.

हिंदू मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने के लिए मांगलिक एवं शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. मान्यताओं के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चातुर्मास के लिए गहरी योग निंद्रा मे चले जाते हैं. तत्पश्चात भगवान विष्णु सीधा देवउठनी एकादशी पर चातुर्मास समाप्ति के साथ योग निंद्रा से जाग्रत होते है. उसके पश्चात शुभ एवं मांगलिक कार्य फिर से प्रारंभ हो जाते हैं. इस दिन भगवान लक्ष्मी-नारायण की पूजा की जाती है और किसी-किसी जगह इस दिन व्रत भी रखा जाता है.

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भडल्या नवमी 2022

वर्ष 2022 में भडल्या नवमी 8 जुलाई 2022, शुक्रवार को मनाई जाएगी।

भडल्या नवमी को किन-किन नामों से जाना जाता है-

भडल्या नवमी को विभिन्न बोली, भाषा एवं क्षेत्र के अनुसार भडल्या नवमी, भढली नवमी, भादरिया नवमी, भादरिया नवमी, भदरिया नवमी एवं बदरिया नवमी नामो से भी जाना जाता है.

भारत के दूसरे कई हिस्सों में इसे दूसरों रूपों में मनाया जाता है. उत्तर भारत में आषाढ़ शुक्ल नवमी तिथि का बहुत महत्व है. वहां इस तिथि को विवाह बंधन के लिए अबूझ मुहूर्त का दिन माना जाता है. अबूझ सावे तिथि का अर्थ है कि जिन लोगों के विवाह के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकलता उनका विवाह इस दिन किया जाए तो उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आता है. कहने का अर्थ है कि बिना किसी चिंता के इन विशेष तिथियों पर मांगलिक कार्य समपन्न किए जाते हैं.

यह तिथियां ऐसी होती हैं कि इन पर बिना पंडित की सलाह लिए शुभ काम किए जाते हैं. साथ ही इनमें पंचांग को देखने की जरूरत नहीं होती है. बिना ज्योतिष को दिखाए ही मांगलिक कार्य किए जाते हैं. ये दिन स्वयं में इतने सिद्ध होते हैं और यह अति शुभ दिन माने जाते हैं.

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कब-कब पड़ते हैं अबूझ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, एक वर्ष में निम्न अबूझ मुहूर्त होते हैं.

बसंत पंचमी, फाल्गुन पक्ष की शुक्ल पक्ष की द्वितीया, रामनवमी, जानकी नवमी, पीपल पूर्णिमा (वैशाख मास की पूर्णिमा), गंगा दशमी (ज्येष्ठ मास की शुक्ल दशमी) भडल्या नवमी (आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी).

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पूजा विधि

शास्त्रों के अनुसार भडल्या नवमी के दिन भगवान लक्ष्मी-नारायण जी की पूजा और कथा की जाती है. भडल्या नवमी पर साधक को स्नान करके पूरे विधि विधान से धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए. अर्चना के दौरान भगवान को फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए. पूजा में बिल्व पत्र, हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलाइची, गुलाब या मोगरे का फूल, किशमिश, सिक्का आदि का प्रयोग करना चाहिए.

अर्चना के बाद पूजा में प्रयोग हुई सामग्री को किसी ब्राह्मण या मंदिर में दान कर देना चाहिए. ऐसा करने से भगवान लक्ष्मी नारायण प्रसन्न होते हैं और भक्त की इच्छा पूरी करते हैं. अगले वर्ष 2022 में नवमी का योग 8 जुलाई को पढ़ रहा है. शास्त्रों के अनुसार इसी दिन इंद्राणी ने व्रत पूजन के माध्यम से देवराज इंद्र को प्राप्त किया था.

भडल्या नवमी पर विवाह, आभूषणों की खरीदारी, वाहन, भवन और भूमि आदि भी खरीदना शुभ माना गया है. भडल्या नवमी के दो दिन बाद देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है. जिसका अर्थ है कि आने वाले 4 महीनों तक विवाह या अन्य शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं.

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