अरब देशों की दौलत उनकी सबसे बड़ी ताकत है। आज भी इन देशों का रसूख है और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए ये देश उसका इस्तेमाल करते हैं। आज के दौर में सऊदी अरब का एक अलग महत्व है और उसका कारण उसकी दौलत है। हालांकि, अब इस इस्लामिक देश ने अपने धन का इस्तेमाल कर एक तीर से तीन निशाने को भेदा है। सीधे शब्दों में कहें तो रियाद पाकिस्तान को कर्ज के जाल में फंसा चुका है और अपने प्रभावशाली कूटनीतिक कदम से तीन उद्देश्यों को पूरा कर रहा है।
पहला पाकिस्तान को वास्तविकता की याद दिलाना कि आज भी इस्लामिक देशों का किंग कौन है। दूसरा ये कि पाकिस्तान के सहारे तुर्की पर निशाना। तीसरा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को याद दिलाना कि आज भी सऊदी अरब की रसूख कम नहीं हुई है। दरअसल, सऊदी अरब के सऊदी फंड फॉर डेवलपमेंट (SFD) और पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के बीच 4.2 बिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर हुआ है। जिसके तहत रियाद 3 बिलियन डॉलर SAFE DEPOSIT में जमा करेगा और 1.2 बिलियन डॉलर की तेल आपूर्ति प्रदान करेगा।
पाकिस्तान को ऋण जाल में फंसाना
यह सभी को पता है कि पाकिस्तान, सऊदी अरब का दीर्घकालिक सहयोगी है। हालांकि, सहयोगी शब्द पाकिस्तान के लिए कहना गलत ही होगा, क्योंकि यह सहयोग एकतरफा है। सऊदी सिर्फ आपूर्ति करता है और पाकिस्तान उससे फायदा उठाता है। रियाद के रहमो-करम पर जीवित रहने वाले एक भिखारी की तरह पाकिस्तान, सऊदी से धन और तेल की आपूर्ति उधार लेता है।
हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। जिसका कारण था पाकिस्तान का भारत द्वारा वर्ष 2019 में अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद सऊदी से हस्तक्षेप करने की मांग करना। पाकिस्तान की कूटनीति पारंपरिक रूप से कश्मीर केंद्रित रही है और इस्लामाबाद भारतीय क्षेत्र पर दावा करने की कोशिश करता रहा है।
हालांकि, अरब और भारत एक विकसित और घनिष्ठ संबंध साझा करते हैं। चूंकि अनुच्छेद-370 को निरस्त करना भारत का आंतरिक मामला था, इसलिए रियाद ने पाकिस्तान की मांग को नजरअंदाज कर दिया। इससे पाकिस्तान-सऊदी संबंधों में खटास आ गई और इस्लामाबाद कश्मीर पर नजर रखते हुए तुर्की और मलेशिया से दोस्ती करने तक चला गया।
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पाकिस्तान के पास रोलओवर का नही है विकल्प
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के नेतृत्व में तुर्की ने खुद को दुनिया भर के सभी मुसलमानों के संरक्षक के रूप में स्थापित करने की कोशिश की है। वहीं, दूसरी ओर सऊदी अरब और तुर्की के बीच संबंध उतने बेहतर नही हैं। यही नहीं, तुर्की के पास सऊदी जितना धन भी नहीं है। जब भी सऊदी अरब को लगा कि पाकिस्तान रियाद के नेतृत्व वाले इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) का विकल्प खोजने के लिए मलेशिया और तुर्की के साथ हाथ मिलाने की कोशिश कर रहा है, तो उसने इस्लामाबाद के खिलाफ अपने ऋण और अन्य वित्तीय साधनों को हथियार बना लिया। इस तरह सऊदी अरब ने पाकिस्तान को रियाद छोड़कर अंकारा की गोद में जाने से रोक दिया। अब कर्ज देकर सऊदी अरब, इस्लामाबाद पर अरबों डॉलर का दबाव बनाने में कामयाब हो गया है।
नवीनतम सौदा भी इसी की पुष्टि करता है कि पाकिस्तान के पास रोलओवर का कोई विकल्प नही है और उसे एक साल बाद कर्ज वापस करना होगा। इस दौरान पाकिस्तान से कोई गलती होती है, तो सऊदी के लिखित अनुरोध पर उसे 72 घंटे के भीतर पैसा लौटाना पड़ सकता है। इसका अर्थ यह है कि अगर इस्लामाबाद अंकारा के साथ दोस्ती करता हुआ पाया जाता है, तो रियाद उसे अपने सारे पैसे वापस करने के लिए कह सकता है। इससे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मामले में सऊदी अरब की लाइन पर चलने के लिए मजबूर हो जाएगा।
तुर्की को मुस्लिम जगत के नेतृत्व से दूर रखना
देखा जाये तो सऊदी अरब ने पाकिस्तान और तुर्की के बीच बढ़ते संबंधों को भी ध्वस्त कर दिया है। तुर्की, मुस्लिम ब्रदरहुड और इस्लामिक स्टेट जैसे कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी समूहों का समर्थन करता रहता है। तुर्की ने मिलिशिया की मदद से लीबिया और सीरिया जैसे युद्धग्रस्त देशों में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है। यहीं कारण है कि सऊदी अरब और इजराइल के साथ उसके अरब सहयोगी, तुर्की को एक गंभीर खतरे के रूप में देखते हैं।
वास्तव में, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन बार-बार खुद को मुस्लिम जगत का खलीफा दिखाने की कोशिश करते हैं। दिसंबर 2019 में अंकारा ने कुआलालंपुर शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया, जो सऊदी के नेतृत्व वाले OIC के समानांतर एक संगठन बनाने का एक प्रयास था। मुस्लिम दुनिया में शीर्ष पर पहुंचने के लिए तुर्की पाकिस्तान के साथ सौहार्द की भावना का इस्तेमाल कर रहा था। हालांकि, सऊदी अरब ने अब पाकिस्तान को फंसा लिया है और अपने गंभीर आर्थिक संकट के कारण, पाकिस्तान अंकारा की महत्वाकांक्षाओं का समर्थन नहीं कर पाएगा। इसका अर्थ है कि तुर्की मुस्लिम दुनिया का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं होगा।
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अमेरिका को चेतावनी
गौरतलब है कि जैसे ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सत्ता में आए थे, उनका अरब जगत के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण था और वह था अरब देशों का विरोध करना! बाइडन ने अपने मानवाधिकार के एजेंडे को हथियार बनाना शुरू कर दिया और पारंपरिक रूप से अमेरिका-सऊदी संबंधों के बावजूद, पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या को अमेरिका-सऊदी संबंधों को कमजोर करने के बहाने के रूप में अमेरिकी राष्ट्रपति इस्तेमाल करते रहे हैं।
हालांकि, सऊदी अरब अब चीन की धमकी से निपटने की स्थिति में है। पाकिस्तान और चीन हमेशा के लिए सहयोगी हैं और जब गुस्से में रियाद ने पिछले साल मई में पाकिस्तान से ऋण चुकाने के लिए कहा था, तो कम्युनिस्ट राष्ट्र चीन, इस्लामाबाद के बचाव में सऊदी अरब को तुरंत $1 बिलियन डॉलर देने के लिए आगे आया था।
अब पाकिस्तान को एक और कर्ज देकर सऊदी अरब अमेरिका के मुख्य प्रतिद्वंद्वी चीन से नजदीकी बढ़ाने की स्थिति में है। रियाद वास्तव में चीन से मित्रता नहीं करेगा, लेकिन उसे बाइडन को किनारे रखने और अमेरिकी राष्ट्रपति को इसका संकेत मात्र देने में कोई आपत्ति नहीं होगी। पाकिस्तान को कर्ज में फंसाकर सऊदी अरब ने इस तरह एक तीर से तीन निशाने को भेद दिया है।