सन् 1893 में जब स्वामी विवेकानन्द ने अमेरिका के शिकागो को अपने प्रखर भाषण से अंतरावलोकन के लिए विवश किया, तब उस समय वह पश्चिम के लिए सनातन संस्कृति के अनंत स्वरूप का पहला अनुभव था। आश्चर्य की बात यह है कि उससे पहले ही सनातन संस्कृति पश्चिमी दुनिया में दस्तक दे चुकी थी और कैरिबियन द्वीप पर इसकी जड़ें मजबूत हो चुकी थी। आज इस पूरे क्षेत्र के द्वीपों को एकत्रित तौर पर वेस्ट इंडीज के नाम से जाना जाता है। हालांकि, कैरिबियाई द्वीपों में इनकी संख्या दो मिलियन से भी कम है, लेकिन भारतीय इन देशों में अपना प्रभाव जमा चुके हैं।
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बड़े पैमाने पर कैरिबियन प्लेट पर स्थित इस क्षेत्र में 700 से अधिक द्वीप, आइलेट्स, रीफ और सेज(cays) हैं। तीन द्वीप उत्तर में ग्रेटर एंटिल्स, दक्षिण में लेसर एंटिल्स और पूर्व में लेवर्ड एंटिल्स, आर्क कैरेबियन सागर के पूर्वी और उत्तरी किनारों का चित्रण करते हैं। पास के लुकायन द्वीप समूह के साथ, ये द्वीप आर्क वेस्ट इंडीज बनाते हैं। बहामास और तुर्क तथा कैकोस द्वीप समूह को कभी-कभी कैरिबियन का हिस्सा माना जाता है, भले ही वे न तो कैरिबियन सागर के भीतर हैं और न ही इसकी सीमा पर। हालांकि, बहामास कैरेबियन समुदाय का एक पूर्ण सदस्य राज्य है तथा तुर्क और कैकोस द्वीप समूह एक सहयोगी सदस्य हैं।
गिरमिटिया मजदूर बन कर गए थे हिन्दू
19वीं शताब्दी में दास प्रथा को समाप्त करने के बाद, वेस्टइंडीज को यूरोपीय स्वामित्व वाले गन्ने की खेती (Sugar Plantations) के लिए नए श्रमिकों की सख्त जरूरत थी। वे सस्ते और कुशल श्रम को चाहते थे। जिन लोगों को उन्होंने गुलाम बनाया था, उन्होंने शोषण की स्थिति को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, इसलिए बागान मालिकों ने यूरोपीय उपनिवेशों की ओर रुख किया। चीनी अप्रवासी, कुशल होने के बावजूद, वेस्टइंडीज के गर्म मौसम से जूझते रहे और इसके परिणामस्वरूप भारत से मजदूरों की बड़ी मांग हुई।
इस प्रकार गिरमिटिया श्रम की व्यवस्था शुरू हुई और इस द्वीप क्षेत्र में इन्हीं मजदूरों के साथ सनातन संस्कृति का विस्तार भी हुआ। इनमें से अधिकांश मजदूर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार से आए, जबकि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से भी कई मजदूर पहुंचे थे। लंबी यात्रा के दौरान उनमें से कई की रास्ते में ही मौत भी हो गई।
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कहा जाता है कि भगवान वहीं होते हैं, जहां लोग होते हैं और इन मजदूरों ने भी अपने साथ अपनी आस्था को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया। यही कारण है कि आज इन क्षेत्रों में सनातन संस्कृति का अप्रतिम प्रभाव है। कठिनाई के समय में कैरिबियाई हिंदुओं को एकजुट करने में धार्मिक ग्रंथ जैसे तुलसीदास की रामायण, महाभारत से भगवद् गीता और भागवत पुराण का योगदान सबसे अधिक रहा है।
ये गिरमिटिया मजदूर जहां भी गए अपनी आस्था, अपने आराध्य और अपने इष्टदेव को अपने साथ ले गए। उन्होंने विरोध के बावजूद मंदिरों की स्थापना की और इसके साथ ही अपने संस्कृति द्वारा दिये गए संस्कारों की नींव रखी। वेस्टइंडीज के इंडो-कैरिबियन समुदायों में हिंदू धर्म प्रमुख एकल धर्म है। गयाना, सूरीनाम तथा त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदुओं की संख्या अधिक है, जहां वे 2011 तक कुल आबादी का 18 प्रतिशत थे।
त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदुओं की संख्या है 2,40,100
त्रिनिदाद और टोबैगो में हिंदू समुदाय अल्पसंख्यक है लेकिन वहां के महत्वपूर्ण धर्मों में से एक है, जो साल 2011 की जनगणना में 18% से अधिक है। यह उन द्वीपों में दूसरा सबसे बड़ा धर्म है। त्रिनिदाद और टोबैगो में वर्तमान में 2,40,100 हिंदू हैं। त्रिनिदाद और टोबैगो में सबसे बड़ा हिंदू संगठन सनातन धर्म महासभा है, जिसका गठन साल 1952 में दो मुख्य हिंदू संगठनों के विलय के बाद हुआ था। त्रिनिदाद और टोबैगो में अधिकांश हिंदू सनातनी हैं। अन्य संप्रदायों और संगठनों में आर्य समाज, कबीर पंथ, शिव नारायणी, रामानंदी संप्रदाय, औघर, रविदास पंथ, काली माई (मद्रसी), सत्य साईं बाबा आंदोलन, शिरडी साईं बाबा आंदोलन, इस्कॉन (हरे कृष्ण), चिन्मय मिशन आदि शामिल हैं। इस द्वीप पर इंडियन अराइवल डे, होली, नवरात्री, दशहरा, महा शिवरात्रि, कृष्ण जन्माष्टमी, रामनवमी, हनुमान जयंती, गणेश उत्सव जैसे हिन्दू त्योहार मनाये जाते हैं।
त्रिनिदाद और टोबैगो अपने देश से दो नोबेल पुरस्कार विजेता लेखकों का दावा करता है, जिनमें एक हिन्दू हैं और उनका नाम विद्याधर सूरज प्रसाद नायपॉल है। भारतीय नृत्य त्रिनिदाद और टोबैगो में भी प्रचलित हैं। कथक, ओडिसी और भरतनाट्यम त्रिनिदाद और टोबैगो में सबसे लोकप्रिय भारतीय शास्त्रीय नृत्य हैं। वहां, भारतीय लोक नृत्य के साथ-साथ बॉलीवुड नृत्य भी काफी लोकप्रिय हैं। त्रिनिदाद और टोबैगो में नाटक जैसे राजा हरिश्चंद्र, राजा नल, राजा रसलु, सरवनीर (श्रवण कुमार), इंद्र सभा, भक्त प्रहलाद भी प्रसिद्ध हैं। वहां राम लीला और रासलीला के त्योहारों के दौरान एक अलग की धूम होती है।
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कैरिबियन द्वीपों में हिंदुओं की मौजूदगी
जमैका कभी 20वीं सदी के मध्य तक 25,000 हिंदुओं का घर था। इसके बाद ईसाई धर्म के बढ़ते प्रभाव से धीरे-धीरे कई हिन्दू परिवर्तित हो गए और 1970 के दशक तक हिंदुओं की संख्या मात्र 5,000 ही रह गई। तब से, जमैका की हिंदू आबादी बढ़ी है और यह जमैका में दूसरा सबसे बड़ा धर्म (ईसाई धर्म के बाद) बन चुका है। जमैका में दिवाली हर साल मनाया जाता है। साल 2011 की जनगणना ने दिखाया कि जमैका में हिंदुओं की संख्या 1,836 थी। जमैका की कुल आबादी में हिंदू धर्म का हिस्सा 2001 में 0.06% से बढ़कर 2011 में कुल जनसंख्या का 0.07% हो गया। साल 2006 तक, प्यूर्टो रिको में 3,482 हिंदू थें, जो वहां की कुल जनसंख्या का 0.09% थे। वहीं, क्यूबा में हिंदू धर्म अल्पसंख्यक धर्म है। क्यूबा की आबादी का 0.2% हिंदू धर्म का पालन करता है। इस देश में इस्कॉन की भी मौजूदगी है। इसी तरह कैरिबियन द्वीप के छोटे छोटे द्वीपों विशेष रूप से प्यूर्टो रिको, जमैका, बेलीज, बारबाडोस, सेंट विंसेंट और ग्रेनेडाइंस, सेंट लूसिया, केमैन आइलैंड्स और बहामास में भी हिंदुओं की उपस्थिति है।
आज बारबाडोस में 2,000 भारतीय रहते हैं। विशाल भारतीय आबादी के कारण, हिंदू धर्म बारबाडोस के बढ़ते धर्मों में से एक बन गया। साल 2000 की जनगणना में बारबाडोस में हिंदुओं की संख्या 840 थी, जो कुल जनसंख्या का 0.34% थी। साल 2010 की जनगणना ने दिखाया कि हिंदुओं की संख्या 215 लोगों (या 25%) से बढ़कर 1055 हो गई। इस द्वीप पर Indo-Guyanese समुदाय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वहीं, साल 2010 की जनगणना के अनुसार, बहामास में कुल 428 हिंदू रहते थे, जो कुल जनसंख्या का 0.12% है। 2010 की जनगणना से पता चलता है कि बहामास में आधे से अधिक हिंदू (लगभग 220 लोग) 34 वर्ष से कम उम्र के हैं। स्पष्ट रूप से यह एक सकारात्मक आंकड़ा है।
कैरेबियन द्वीप के क्रिकेट टीम में हिंदुओं का प्रभाव
वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम की बात करें, तो नजारा काफी अलग है। भारतीय मूल के बहुत से खिलाड़ियों को कैरिबियन द्वीप समूह का प्रतिनिधित्व करते देखा गया है। सन्नी रामधीन के अलावा कई प्रमुख हिन्दू खिलाड़ियों ने कैरिबियन द्वीप समूह के तरफ से क्रिकेट खेला है। विकेटकीपर बल्लेबाज दिनेश रामदीन एक समय वेस्टइंडीज के कप्तान भी थे। घरेलू टूर्नामेंट में त्रिनिदाद और टोबैगो के साथ उनका करियर काफी अच्छा रहा है।
एल्विन कालीचरण तो वेस्ट इंडीज के महान खिलाड़ियों में से एक जाने जाते हैं। वहीं, गुयाना में जन्में रोहन कन्हाई भारतीय मूल के सबसे महान क्रिकेटरों में से एक हैं, जिन्होंने एक अलग देश का प्रतिनिधित्व किया है। रामनरेश सरवन इस पीढ़ी में वेस्टइंडीज के लिए खेलने वाले लोकप्रिय भारतीय मूल के खिलाड़ियों में से एक हैं। इसके अलावा शिवनारायण चंद्रपॉल मां के तरफ से बिहारी हैं। उनका परिवार सन् 1800 के दशक में भारत से गयाना चला गया। चंद्रपॉल संभवत: वेस्टइंडीज के लिए खेलने वाले सबसे महान भारतीय मूल के क्रिकेटर हैं। खिलाड़ियों की यह लिस्ट काफी लंबी है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वहां बसे हिंदुओं के लिए अपनी संस्कृति को बचाने की लड़ाई इतनी आसान नहीं थी। यह काफी दुखदाई और जीवट वाली थी, इसका उदाहरण त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित समुद्र का मंदिर है। इस मंदिर को समुद्र में इसलिए बनाया गया था, क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने भूमि पर मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी थी। आज आवश्यकता है कि भारत इन सभी देशों और छोटे द्वीपों में उपस्थित हिंदुओं से जुड़े और उन्हें यह एहसास दिलाये कि आज भी भारत उनके साथ है। इससे न सिर्फ सनातन संस्कृति की जड़ें और मजबूत होंगी, बल्कि यह विश्व के नए कोने तक पहुंचेगी।
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