आप सभी ने अमिताभ बच्चन की मूवी ‘काला पत्थर’ जरूर देखी होगी। इस मूवी के माध्यम से खदान में काम करनेवाले मजदूरों के चुनौतियों का बहुत ही सजीव चित्रण किया गया है। अगर आपने नहीं देखी तो भी कोई बात नहीं। कम से कम कारखानों और खदानों में हमारे गरीब मजदूर किन चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते है, इससे तो आप अवगत होंगे ही। आज हम इस लेख के माध्यम से अपने पाठकों को भारत की सबसे बड़ी खदान त्रासदी, चासनाला खदान त्रासदी, के बारे में बताएंगे, जिसमें 375 मजदूर जिंदा दफन हो गए थे।
चासनाला खदान की अनसुनी कहानी
यह आपदा 27 दिसंबर 1975 को भारतीय राज्य झारखंड में धनबाद के पास चासनाला के एक कोयला खदान में हुई थी। इस खदान के दो भाग थे- Pit-1 और Pit-2। Pit-1 Pit-2 के ऊपर छोड़ी गई खाली खदान थी जो पानी से भरी थी। Pit-2 में मजदूर काम कर रहे थे। ये दोनों खदान 80 इंच मोटी दीवार से विभक्त थे। इस खदान का स्वामित्व IISCO के पास था, जिसका बाद में SAIL में विलय हो गया।
त्रासदी के दिन, परित्यक्त और जलभराव वाली खदान (Pit-2) के पास वेंटिलेटर बनाने के लिए एक विस्फोट किया गया था। दोपहर का वक्त था और घड़ी में 1:35 बज रहे थे तभी अचानक से एक विस्फोट हुआ। यद्यपि दीवार 80 इंच मोटी थी, पर इस धमाके के कारण खदान की दीवार टूट गयी। उस समय के एक अनुमान के अनुसार, 500,000 m3 प्रति मिनट की दर से लगभग 110 मिलियन इंपीरियल गैलन पानी काम कर रहे मजदूरों के खदान में भरने लगा।
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375 मजदूरों ने गंवाई थी अपनी जान
वहीं, अन्य रिपोर्टों में पानी की कुल मात्रा 30 से 50 मिलियन शाही गैलन बताई गई है। आंकड़ें जो भी हों पर अत्यंत तीव्रता के साथ जल खदान में भरने लगा। 375 मजदूर फंस चुके थे। उनके पास बाहर निकालने का कोई रास्ता नहीं था। वो बस चुप-चाप बढ़ते हुए जल स्तर को महसूस कर रहे थे।
पानी पांव से लेकर सर तक भर रहा था और वो बस अपनी मौत का तमाशा देख रहे थे। उनकी मौत इतनी दर्दनाक थी कि उनके शवों को उनके लैंप हेलमेट की संख्या से पहचाना गया। दुर्घटना होने के 26 दिन बाद पहला शव बरामद किया गया था। कारण खदान में कोई उच्च दबाव पंप नहीं था, जो इतनी मात्रा में पानी को बाहर निकाल सके। पानी निकालने की कोशिश के लिए रूस और पोलैंड से पंपों को लाना पड़ा।
भारत की सबसे घातक खनन दुर्घटना
बता दें कि इस आपदा की परिस्थितियों की जांच के लिए पटना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश उज्ज्वल नारायण सिन्हा को नियुक्त किया गया था। उन्होंने 24 मार्च 1977 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। नतीजतन, चार इस्को अधिकारियों पर लापरवाही के लिए मुकदमा चलाया गया। 37 साल बाद, 2012 में मामले पर फैसला आने तक उनमें से दो की मौत हो चुकी थी। बचे हुए अधिकारियों, प्रबंधक रामानुज भट्टाचार्य और एजेंट, योजना और समूह सुरक्षा अधिकारी दीपक सरकार को एक-एक साल की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। बाद में वे जमानत पर रिहा हुए। मृतकों के लिए एक शहीद स्मारक खदान के प्रवेश द्वार के बाहर बनाया गया था और 1997 में एक पार्क में स्थानांतरित कर दिया गया था। ऐसे में, 375 मजदूरों की मृत्यु के साथ, चासनाला भारत की सबसे घातक खनन दुर्घटना थी।
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