चीन, जहां नया सीमा कानून लागू होने को है, उससे दो दिन पहले ही चीनी सरकार ने अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नाम बदल दिया है। चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि उनके पास अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों के लिए ‘मानकीकृत’ नाम हैं, जिनका उपयोग चीनी मानचित्रों पर किया जाएगा। यह दूसरी बार है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदले हैं। बहुत पहले वर्ष 2017 में, चीन ने छह स्थानों के नामों में परिवर्तन किया था। वहीं, तकरार के बीच भारत का अरुणाचल प्रदेश को लेकर रुख हमेशा से सामान रहा है। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने चीन के इस निर्णय पर कड़ा प्रहार भी किया है।
नाम बदलकर राष्ट्रवाद की अलख जगाना चाहता है चीन
दरअसल, 23 अक्टूबर 2021 को चीन के शीर्ष विधायी निकाय नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति ने ‘देश के भूमि सीमा क्षेत्रों के संरक्षण और शोषण’ का हवाला देते हुए एक नया कानून पारित किया। समिति ने कहा था कि नया कानून 1 जनवरी से लागू होगा। यह कानून विशेष रूप से भारत की सीमा के लिए नहीं है। चीन भारत सहित 14 देशों के साथ अपनी 22,457 किमी भूमि सीमा साझा करता है, जो मंगोलिया और रूस के साथ सीमाओं के बाद तीसरी सबसे लंबी है।
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नए सीमा कानून में 62 अनुच्छेद और सात अध्याय हैं। कानून के अनुसार, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना अपनी सभी भूमि सीमाओं पर सीमा को स्पष्ट रूप से चिह्नित करने के लिए सीमा चिह्न स्थापित करेगा। संबंधित पड़ोसी राज्य के साथ समझौते में मार्कर का प्रकार तय किया जाना है। इस नए कानून के तहत चीनी सेना और उस क्षेत्र के अन्य अधिकारी चीन के कपोलकल्पित सीमा की रक्षा के लिए उत्तरदायी हैं। वो ना सिर्फ इस काल्पनिक क्षेत्र में होनेवाले किसी भी गैरकानूनी गतिविधि, तस्करी, सीमा उल्लंघन और अतिक्रमण निषेध के लिए जिम्मेदार हैं अपितु वो ये भी सुनिश्चित करेंगे कि यहां के निवासियों में चीनी राष्ट्रवाद की अलख जले।
नामकरण करना सिर्फ चीन को नहीं आता
स्पष्ट कर दें कि चीन के इस नवीनतम कानून के संदर्भ में उपर्युक्त कथन पूर्णतः काल्पनिक है। इसका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं है। किसी भी व्यक्ति, सीमा या स्थान से समानता सिर्फ संयोग मात्र है। ऐसा लगता है चीन ने अरुणाचल विजय का स्वप्न देखते हुए अवचेतन अवस्था में ये कानून पारित कर दिया है। हालांकि, मदहोश साम्यवादी सरकार द्वारा पारित इस कानून पर उत्तर देना अवशयक तो नहीं था पर कूटनीति की भी अपनी सीमा है।
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अतः MEA ने रिपोर्टों पर कहा, “अरुणाचल प्रदेश हमेशा भारत का अभिन्न अंग रहा है, और हमेशा रहेगा। अरुणाचल प्रदेश में स्थानों को आविष्कृत नाम देने से यह तथ्य नहीं बदलता है।” साधारण और अपभ्रंश भाषा में कहें तो भारतीय सरकार ने चीन को ‘मदहोशी की अवस्था से बाहर आने की चेतावनी दी है।’ वहीं, चीन शायद इस तथ्य से अनभिज्ञ है कि भारत नामकरण करने के मामले में उससे कई गुणा आगे है। ऐसे में, चीन को ये बात समझनी होगी कि वह दिन दूर नहीं जब क्रोध में आकर उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ Beijing को बाजीरावपुर, Shanghai को शिवाजीपुर और Wuhan को विष्णुपुर कर देंगे और फिर कहीं Xi jinping भारत दौरे पर आए तो लोग कहेंगे- ‘बाजीरावपुर’ से शासक ‘जीवन सिंह’ आए हैं!