17 जुलाई 1945 को पंजाब के लुधियाना के Issewal गांव में एक नरसिंह पैदा हुआ। नाम था- फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों। उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता था, जैसे भारतीय वायुसेना के अद्वितीय कौशल और पराक्रम के परिलक्षण ने मानों शारीरिक प्रतिमूर्ति धारण कर ली हो। इस बालक का पुरुषार्थ आने वाले समय में शौर्य की परिभाषा बनने वाला था। श्री त्रिलोक सिंह सेखों और श्रीमती हरबंस कौर के इस ओजस्वी पुत्र का दिल बचपन में ही विमान और वायु सेना पर आ गया था। इसके पर्याप्त कारण भी थे। राष्ट्र रक्षण के संस्कार उनके खून में थे। वो M.W.O (मास्टर वारंट ऑफिसर) और (मानद) फ्लाइट लेफ्टिनेंट श्री त्रिलोक सिंह सेखों के बेटे जो थे। उनका तो क्रीड़ांगन भी वायु सेना बेस हलवाड़ा था, जो उनके अपने गांव Issewal के पास स्थित था।
फ्लाइंग ऑफिसर का शुरुआती जीवन
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों ने लुधियाना के पास खालसा हाई स्कूल Ajitsar Mohie में अध्ययन किया और उसके बाद 1962 में आगरा के दयालबाग इंजीनियरिंग कॉलेज में शामिल हो गए। लेकिन उन्होंने इंजीनियरिंग कोर्स बीच में ही छोड़ दिया और भारतीय वायु सेना में शामिल हो गए। उन्हें एक लड़ाकू पायलट के रूप में जून 1967 को भारतीय वायु सेना में कमीशन किया गया। कठोर प्रशिक्षण पूरा करने के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत अक्टूबर 1968 में वायुसेना के 18 स्क्वाड्रन में शामिल हो गए, जिन्हें “फ्लाइंग बुलेट” के नाम से भी जाना जाता है।
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भारत–पाक युद्ध: 14 दिसंबर 1971
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के दौरान फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सेखों श्रीनगर बेस पर मौजूद Gnat युद्धक विमानों के पायलट थे। पाकिस्तान के साथ 1948 तक अंतरराष्ट्रीय समझौतो के अनुसार कोई भी देश श्रीनगर में वायुसेना अड्डा स्थापित नहीं कर सकता था। परन्तु, पाकिस्तान ने इस समझौते का उलंघन करते हुए न सिर्फ युद्धक विमानों का अड्डा स्थापित किया, बल्कि 1971 में इन अड्डों से भारत के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया। भारत ने आनन-फानन में यहां एयरबेस स्थापित किया और अपने सबसे कुशल वायु योद्धाओं को नियुक्त किया। यह राष्ट्र रक्षण करनेवाले योद्धाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति थी।
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों इस इलाके से अपरिचित थे। वो हाड़ कंपा देने वाली कश्मीरी सर्दियों के आदी भी नहीं थें। फिर भी, उन्होंने पाकिस्तानी विमानों से अपेक्षाकृत कम उन्नत Gnat विमानों से ही सुनिश्चित किया कि भारत की ये अग्रिम रक्षा पंक्ति अभेद्य रहेगी। वो और उनके सहयोगी वीरता और दृढ़ संकल्प के साथ पाकिस्तानी विमानों के उन्नत और संख्याबल में अधिक स्क्वाड्रन के सतत घुसपैठ से लड़ते रहें।
हमले का दिन
14 दिसंबर 1971, श्रीनगर हवाई क्षेत्र पाकिस्तानी वायुसेना के पेशावर एयरबेस से 26 वें स्क्वाड्रन के छह F-86 विमानों ने उड़ान भरी। उनका निशाना था श्रीनगर एयरबेस, ताकि जम्मू-कश्मीर को शेष भारत से अलग किया जा सके। आनन-फानन में तैयार यह एयरबेस रणनीतिक रूप से जितना महत्वपूर्ण था, तैयारी की दृष्टि से उतना ही कमजोर। इसे जल्दबाजी में तैयार किया गया था, ऊपर से यहां दोयम दर्जे के Gnat विमान की तैनाती की गई थी। विमानों की संख्या भी पाकिस्तान के अपेक्षाकृत कम थी और वहां तैनात सभी अधिकारी नवनियुक्त थे तथा वहां के भूगोल से अपरिचित भी थे।
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फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत का करारा प्रहार
फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों उस समय ड्यूटी पर थे। अचानक हुए इस भीषण हमले ने मानों स्तब्ध कर दिया। पाकिस्तानियों की बम वर्षा ने रनवे और एक Gnat विमान को ध्वस्त कर दिया। बिजली की गति से प्रतिउत्तर देते हुए फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत ने Gnat विमान की कमान संभाली। फ्लाइट लेफ्टिनेंट Ghumman के साथ अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए, उन्होंने टूटे हुए रनवे से टेक ऑफ करना शुरू कर दिया। स्वयं सोचिए, कितना साहस भरा कृत्य रहा होगा, टूटे विमान के साथ टूटे रनवे पर धूल के गुब्बारों के बीच, जहां आपको कुछ ना दिख रहा हो और शत्रु को सब दिख रहा हो, विमान को टेक ऑफ कराना। पर, उन्होंने ये काम सफलतापूर्वक पूर्ण किया। वैसे भी ये पराक्रम भारतीय सेना का ही कोई सैनिक कर सकता था।
सर्वोच्च बलिदान
इस हवाई युद्ध में निर्मलजीत सिंह सेखों ने एक F-86 को सीधे प्रहार में तुरंत ही मार गिराया और दूसरे में आग लगा दी। इस Dogfight में उनका विमान भी क्षतिग्रस्त हो गया। हिट होने के बाद सेखों को बेस पर लौटने की सलाह दी गई। परन्तु, वो लौटे नहीं, बल्कि क्षतिग्रस्त विमान के साथ ही अकेले पाकिस्तानी विमानों का पीछा करते रहें। उनके इस साहस को देख पाकिस्तानी अपने सीमा में भाग खड़े हुए। कहा जाता है कि क्षतिग्रस्त विमान होने के बावजूद भी कोई पाकिस्तानी विमान उन्हें गिरा नहीं सका था।
वो गिरे भी तो विमान के नियंत्रण प्रणाली की विफलता के कारण। उन्होंने अंतिम मिनट में इजेक्शन का प्रयास किया, जो सफल साबित नहीं हुआ। Gnat का मलबा श्रीनगर शहर की ओर आने वाली सड़क के पास मिला था। सेना और वायु सेना के कई खोज प्रयासों के बावजूद, उनका मृत शरीर पहाड़ी इलाकों में कभी नहीं मिला।
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उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वो शहीद हो गए, लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। पाकिस्तानी लज्जित हुए और पीछे हट गए। भारतीय वायु सेना के सच, वीरता, अनुकरणीय साहस, उड़ान कौशल और दृढ़ संकल्प बेहतरीन परंपरा को उन्होंने जीवंत रखा। उनकी बहादुरी और कौशल 1:6 का अनुपात होने के बावजूद, वो जिस कौशल से लड़ें वो ना सिर्फ भारत बल्कि विश्व के किसी भी पेशेवर युद्धक विमान पायलट के लिए मानद टेक्स्ट बुक बन गया। इस वीरता के लिए वो भारत के सर्वोच्च युद्ध पदक “परमवीर चक्र” प्राप्त करने वाले प्रथम गैर- थल सेनाधिकारी बनें। यानी सेखों भारतीय वायुसेना के इकलौते ऐसे जवान हैं, जिन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। भले ही फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत कश्मीर की वादियों में कहीं खो गए हो, लेकिन भारत सदैव उन्हें अपनी स्मृतियों में जीवित रखेगा।