पश्चिम में सूरीनाम, फिजी, त्रिनिदाद एंड टोबैगो जैसे देशों में हिंदुओं की अच्छी संख्या उपस्थित है। आज भी इन देशों में हिंदू जनसंख्या अपनी परंपराओं से जुड़ी हुई है। श्रीमद्भागवत गीता, रामायण आदि का पठन-पाठन हिंदू घरों में हो रहा है। सार्वजनिक मेल-मिलाप के लिए रामलीला प्रमुख आयोजन है। आज भी कई देशों में पारंपरिक रूप से तीन दिन तक विवाह की रस्म होती है, जैसा पहले भारत के कई भागों में प्रचलित हुआ करता था। विवाह, भत्तावन और विदाई की रस्म परंपरागत रूप से होती है। पृथ्वी के पश्चिमी गोलार्ध में स्थित गयाना देश, पश्चिमी देशों में सबसे बड़ी हिंदू जनसंख्या वाला देश है, जहां पर हिंदुओं की आबादी 25% है। इस देश में हिंदुओं के आगमन और वर्तमान समय में उनकी स्थिति और समस्याओं के बारे में जानना आवश्यक है।
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इन हिंदुओं ने बचाए रखा अपना सांस्कृतिक धरोहर
दरअसल, सन् 1833 में ब्रिटिश सरकार ने अपने साम्राज्य में दास प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून बनाया, जिसे स्लेवरी अबॉलिशमेंट एक्ट कहा गया। दास प्रथा की समाप्ति के बाद भी ब्रिटिश व्यापारियों को उपनिवेशों में काम करने के लिए मजदूरों की आवश्यकता पड़नी ही थी। इसलिए परमिट सिस्टम शुरू हुआ, जिसके अंतर्गत लोगों को एक परमिट के माध्यम से दूसरे देशों में जाकर काम करने के लिए भर्ती किया जाता था। एक तरह से यह कॉन्ट्रैक्ट स्लेवरी थी, जहां 5 वर्षों के कॉन्ट्रैक्ट पर मजदूर की भर्ती की जाती थी। अधिकांश मजदूर जो इस कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा बनकर विदेशों में जाते थे, लेकिन वह 5 वर्ष बाद पुनः भारत लौट कर नहीं आते थे। 5 वर्षों की अवधि इतनी लंबी थी कि मजदूर वहीं पर बस जाते थे।
ऐसा नहीं है कि सभी लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा जोर जबरदस्ती से परमिट सिस्टम का भाग बनाया गया था। वस्तुतः भारत में गरीबी इतनी अधिक थी कि अधिकांश लोग इसे अवसर समझकर इस जाल में फंस जाते थे। महत्वपूर्ण यह है कि अपनी मातृभूमि छोड़कर विदेशों में जाकर बसने वाले इन हिंदुओं ने अपनी संस्कृति को नहीं छोड़ा। गयाना जैसे देशों में में बसे यह लोग रामायण और गीता को अपने साथ ले गए।
उन्होंने गीता और रामायण की ऋचाओं से यज्ञ आयोजित किए, रामचरित मानस की चौपाइयों को गाकर मनोरंजन किया और किसी प्रकार से अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाए रखा। अपनी संस्कृति को बचाने की लड़ाई कितनी दुखदाई और जीवट वाली थी, इसका उदाहरण त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित समुद्र का मंदिर है। इस मंदिर को समुद्र में इसलिए बनाया गया था, क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने भूमि पर मंदिर बनाने की अनुमति नहीं दी थी।
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गयाना में तेजी से घट रही है हिंदू आबादी
वस्तुतः उन सभी देशों में जहां भारतीयों को ले जाया गया था, ब्रिटिश सरकार की योजना हिंदुओं को क्रिश्चन बनाने की थी। ब्रिटिश सरकार ने एक फार्म से दूसरे फार्म तक मजदूरों की आवाजाही न हो सके, इसे सुनिश्चित करने का प्रयास किया। किसी प्रकार रविवार के दिन हिंदुओं ने मिलना-जुलना शुरू किया और अपनी हिंदू पहचान को जीवित रखने के लिए यज्ञ का आयोजन किया। किंतु उस समय यज्ञ के लिए पर्याप्त संसाधन भी मौजूद नहीं हुआ करते थे। हालांकि, अब गयाना में कई बड़े हिंदू मंदिर हैं और यज्ञों का आयोजन भी बड़े स्तर पर हो रहा है। यज्ञ के अतिरिक्त रामलीला का आयोजन और भजन-कीर्तन भी हिंदुओं द्वारा अपनी संस्कृति की सुरक्षा के लिए प्रयोग किया गया।
वर्तमान समय में गयाना की हिंदू जनसंख्या तेजी से घट रही है। 1991 में हिंदू जनसंख्या 35% थी, जो 2012 में घटकर 24.8 प्रतिशत रह गई है। एक महत्वपूर्ण समस्या यह भी है कि हिंदुओं की सबसे बड़ी आबादी वाले भारत द्वारा इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया गया। व्यक्तिगत स्तर पर कई प्रधानमंत्रियों ने प्रयास किए हैं, जिनमें वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम प्रमुख है, किंतु यह प्रयास केवल प्रधानमंत्री द्वारा ही किए गए हैं। इन देशों में कार्य कर रहे राजदूत, यदि स्वयं प्रयास करें तो स्थिति में काफी बदलाव देखने को मिल सकती है।
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भारतीय विदेश मंत्रालय को उठाना चाहिए कदम
गौरतलब है कि जिस प्रकार मुस्लिम देश अन्य देशों में मौजूद अपने लोगों को एकजुट करने के लिए दूतावास को केंद्र बनाकर प्रयास करते हैं, उस प्रकार का कोई कार्य भारतीय दूतावासों द्वारा नहीं हो रहा है। नीदरलैंड में प्राध्यापक प्रो० मोहन कांत गौतम, जिन्होंने सूरीनाम और नीदरलैंड के हिन्दुओं को जोड़ने के लिए बहुत कार्य किये, वो बताते हैं कि भारतीय विदेश मंत्रालय को विदेश सेवा ‛इंडियन फॉरेन सर्विस’ में एक संस्कृति का निर्माण करना होगा।
साथ ही भारतीय दूतावासों में कार्य कर रहे हर कर्मचारी तथा वहां नियुक्त हुए हर राजदूत को उन देशों में मौजूद हिन्दू संगठनों और व्यक्तियों से मेल-मिलाप करना होगा, उनकी समस्याओं को समझकर उनका समाधान करना होगा। यह बात कि गयाना में हिन्दू आबादी घट रही है, स्वतः दिखाती है कि भारत के प्रशासनिक अधिकारी और भारत का थिंक टैंक, विदेशों में बसे हिन्दू, जो आज भी अपनी परंपराओं से जुड़े हैं, उन्हें लेकर कितनी चिंतित है!