भारत में हर चौक-चौराहे पर आपको नेता और पत्रकार, दोनों मिल जाएंगे। उभरते नेता, बड़का पत्रकार दोनों आपको मिल ही जायेंगे। भारत में पत्रकारिता को लेकर एक अलग उत्साह भी रहता है। अब तो वह दौर भी शुरू हो गया है कि लोग अपनी विचारधारा के आधार पर मीडिया हाउस चला रहे हैं।
कभी NDTV को गुड़गांव से भगा दिया जाता है तो कभी विरोध स्थल से आजतक को भगा दिया जा रहा है। हर दूसरा पत्रकार अपने आप को कलम का सिपाही बताएगा ही बताएगा।
मीडिया हाउस के ऊपर जिम्मेदारी होती है। जिम्मेदारी यह होती है कि सूचना का संचार हो और वह भी सही दिशा में हो। खैर, ये बस सैद्धांतिक रूप से सुनने लायक बात है, वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता है।
जब सूचना का प्रवाह स्वयं ही दूषित हो जाता है तो भीड़ की बुद्धि भी किसी निष्कर्ष पर पहुंचने लगती है। नोआम चॉम्स्की ने अपने पुस्तक “मैन्युफैक्चरिंग कंसेंट” में मास मीडिया को पूरी तरह से समझाया है। उन्होंने अनिवार्य रूप से कहा कि मास मीडिया यह सुनिश्चित करने के लिए ‘फिल्टर’ लागू करता है कि सूचना का प्रवाह टारगेट दर्शक तक पहुंच जाए।
समाचार ‘फ़िल्टर’ में शामिल होता है मास मीडिया को नियंत्रित करने वालों द्वारा कौन सी जानकारी देने की अनुमति है, और उसके धन/लाभ, विज्ञापनदाताओं के साथ कौन सी जानकारी अच्छी तरह से बैठेगी, मीडिया को नियंत्रित करने वालों द्वारा वित्त पोषित और अनुमोदित ‘विशेषज्ञों’ पर निर्भरता और सबसे महत्वपूर्ण, ‘फ्लैक’।
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चॉम्स्की का कहना है कि “समाचार के कच्चे माल को लगातार फिल्टर से गुजरना चाहिए, केवल साफ किए गए अवशेषों को प्रिंट करने के लिए छोड़ देना चाहिए।”
अब जब लोगों तक पहुंचने के लिए कच्ची जानकारी को ही फिल्टर से गुजरना पड़ता है, तो भीड़ की बुद्धि कलंकित हो जाती है। भीड़ बौद्धिक अभिजात वर्ग की बातों का विश्वास करने लगती है।
चाहे वह मोनोक्रोमैटिक पत्रकारिता हो या आज की नाटकीय पत्रकारिता, जो जानकारी जन-जन तक पहुंची है, कम से कम, जब वह मास मीडिया के माध्यम से आती है, तो वह अक्सर कलंकित हो जाती है।
आज इस साल के ऐसे ही कुछ पत्रकारिता के मामलों को हम देखेंगे-
बरखा दत्त और श्मशान में पत्रकारिता-
कोविड महामारी के दौरान भारतीय पत्रकार बरखा दत्त ने गुजरात के सूरत में एक श्मशान से अपनी तस्वीरें साझा करते हुए एक ट्वीट किया, जहां उन्होंने बताया कि सुविधाओं की कमी के कारण, उन्होंने अपने स्टूडियो के रूप में प्लास्टिक की बाल्टी और कार्डबोर्ड बॉक्स के साथ परिस्थितियों और कवर समाचारों को अनुकूलित किया।
उसने लिखा, “इन सर्वनाश के समय में, हम सीखते हैं कि कैसे जीवित रहना, नया करना और अनुकूलन करना है ताकि हम अभी भी सबसे कठिन परिस्थितियों में रिपोर्ट कर सकें। सूरत के एक श्मशान घाट से, एक उलटी हुई प्लास्टिक की बाल्टी और एक कार्डबोर्ड बॉक्स मेरा ‘स्टूडियो’ है #OnTheRoad @themojostory के लिए #SecondWave को ट्रैक करना।”
In these apocalyptic times, we learn how to survive, innovate & adapt so we can still report in the toughest situations. From a cremation ground in Surat, an overturned plastic bucket & a cardboard box is my ‘studio’ #OnTheRoad tracking #SecondWave for @themojostory pic.twitter.com/5ZkqIWFAQv
— barkha dutt (@BDUTT) April 19, 2021
श्मशान वह जगह होती है जहां लोग रोते हैं। लाशें जलती है और बेशर्म बरखा दत्त ने वहां पर भी TRP के लिए न्यूज बेचना शुरू कर दिया।
#Vikat
इस साल बियाह विक्की कौशल और कटरीना कैफ का हुआ लेकिन मीडिया ग्रुप भी बारातियों की तरह बारात में नाच रहे थे। TFI ने उस समय भी भारतीय पत्रकारों की मंशा पर सवाल उठाया था। आप समझ सकते हैं कि मीडिया का क्या स्तर होगा जब पत्रकार ये बताये कि शादी में कितने का शामियाना हुआ है, कौन कौन कब खाएगा और फलाना धिमकना।
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अंजना ओम कश्यप-
भारतीय मीडिया के नाम पर शर्म अंजना ओम कश्यप ने पत्रकारिता करने के नामपर कई बार नियम कानून को ताख पर रखा है। जब अंजना ओम कश्यप को भारतीय विदेश अधिकारी स्नेहा दुबे ने बाहर का रास्ता दिखाया था, तब TFI ने बताया था कि कैसे TRP के लिए ICU चेंबर में घुसने वाली अंजना ओम कश्यप ने दो कौड़ी की पत्रकारिता की थी।
TRP का खेल एक ऐसा खेल है, जिसके चलते पूरे देश में मीडिया घराने चल रहे हैं। ऐसे TRP के लिए ही कई बार ऐसे वीडियो बनाये जाते हैं जैसे ही ऊपर लिखा गया है। सलमान खान भले ही अपनी मां के पैरों को छू रहे हो और अपनी बहन को अपने बांहों में रखे हो लेकिन क्लिकबेट के चक्कर में हम आप उस वीडियो को देखते हैं।
एथिक्स के नामपर कई बार नियम प्रोटोकॉल को तोड़ने वाले लोग आज पत्रकार बनकर घूम रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान तमाम मीडिया समूह लोगों के मातम को बेच रहे थे। ऐसे असंख्य मामले हैं, ये बस वो हैं ,जिन्होंने गिद्ध पत्रकारिता को बढ़ावा दिया है।