2000 तक एक प्यारी सी बगिया थी भारतीय कॉमिक्स, आखिर कैसे हुआ इसका पतन?

यह पतन दुखदायी ही नहीं, चिंताजनक भी है!

भारतीय कॉमिक्स

Source- TFIPOST

आज आप खाली समय में क्या करते हैं? फोन चलाते हैं? गेम खेलते हैं? घूमने तो कम ही जाते होंगे या जब काम की बात होती होगी तभी बाहर घूमने निकलते होंगे! आपको पता है हम क्या करते थे? नागराज और डोगा का नाम सुना है? अगर सुना है तो कितना जानते हैं? कभी पढ़ा है इनके कॉमिक्स? हम इन्हीं कॉमिक्स को पढ़ते थे। 90 के दशक में किताबों के बीच कॉमिक्स छिपा कर पढ़ने का मजा ही अलग था। दोस्तों के बीच प्रतिस्पर्धा भी होती थी कि सबसे अधिक कॉमिक्स किसके पास हैं। हम हर शुक्रवार का इंतजार करते थे, क्योंकि उस दिन मैगजीन स्टोर्स में नई कॉमिक्स उपलब्ध होती थी।

ये बात उन दिनों की है जब भारतीय कॉमिक्स उद्योग अपने चरम पर था और बिक्री का तो पूछना ही नहीं। लेकिन भारत में आज कॉमिक्स की दशा इतनी खराब है कि आज के मिलेनियल्स को यह पता भी नहीं होता कि उस दौरान के कॉमिक कैरेक्टर कौन-कौन से थे। इस आर्टिकल में हम विस्तार से समझेंगे कि आखिर कॉमिक इंडस्ट्री के बर्बाद होने के मुख्य कारक क्या रहें।

और पढ़ें: विंडलास स्टील: Batman Begins और POTC जैसी फिल्मों के लिए परिधान की आपूर्ति करती है देहरादून की फर्म

टेलीविजन के आगमन से लगा धक्का

भारतीय कॉमिक्स की लोकप्रियता तेजी से घटी और एक या दो दशक में इसकी बिक्री इतनी कम हो गयी है कि शायद ही महीने में कभी कोई नई कॉमिक्स एक बार प्रकाशित होती है। कॉमिक्स के प्रकाशन के इस गिरावट के कई कारक हैं। 70 और 80 के दशक में, भारत में बहुत सारे कॉमिक्स प्रकाशक थे, जिनमें चम्पक, डायमंड कॉमिक्स, राधा कॉमिक्स, तुलसी कॉमिक्स, किंग कॉमिक्स, राज कॉमिक्स जैसे कई प्रकाशक प्रमुख थे।

हालांकि, 2000 के बाद भारतीय कॉमिक बुक की बिक्री को मध्यम वर्गीय परिवारों में वीडियो गेम की शुरुआत के साथ-साथ लगभग सभी घरों में टेलीविजन के आगमन के कारण एक बड़ा धक्का लगा। बिक्री और प्रचलन में गिरावट आई और कॉमिक बुक प्रकाशन कंपनियों को या तो तोड़ दिया गया या विलय कर दिया गया। यह ‘करो या मरो’ की स्थिति थी और जैसा कि कहा जाता है, यदि आप उन्हें हरा नहीं सकते हैं, तो उन्हीं के साथ शामिल हो जाओ।

अब कॉमिक पुस्तकों के डिजिटल संस्करण को खोजना आम बात है, चाहे वे भारतीय हों या विदेशी प्रकाशक, हर किसी के पास ऑनलाइन खरीदारी का विकल्प होता है जो पाठकों को उनकी पसंद के डिवाइस – मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप आदि पर अपनी कॉमिक एक्सेस करने में सक्षम बनाता है।

और पढ़ें: मिलिए ‘Bisexual’ सुपरमैन से – Woke Culture की नवीनतम पेशकश

TV और इंटरनेट की वजह से घटी लोकप्रियता

90 के दशक की शुरुआत में, राज कॉमिक्स उन सभी में सबसे बड़ी कॉमिक्स प्रकाशक बनकर उभरी। जल्द ही अन्य प्रकाशकों को या तो अधिग्रहित कर लिया गया या पूरी तरह से बंद कर दिया गया। इससे राज कॉमिक्स भारतीय कॉमिक्स उद्योग का एकमात्र पर्याय बन गया। राज कॉमिक्स में हर बच्चे की पसंद और नापसंद को पूरा करने वाले सुपरहीरो की एक विस्तृत कहानी थी, उदाहरण नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव, शक्ति, परमाणु, बांकेलाल, डोगा आदि। न केवल नायक, बल्कि उनके पास नागपाशा, ग्रैंड मास्टर रोबो, काल पहेली, वामन आदि जैसे खलनायक भी थे। समय के साथ-साथ अधिक सुसज्जित और लड़ाकू पात्रों के बजाय, राज कॉमिक्स ने पौराणिक कथाओं और फिर कहानी में एक ही पात्र के साथ Time Traveling आधारित कर दिया। इससे पहले ही TV और इंटरनेट के वजह से घटती लोकप्रियता के बाद कॉमिक्स पढ़ने वाले और बोर होते गए।

कॉमिक बिक्री में गिरावट का एक अन्य कारण कीमत है, जहां एक किताब का मूल्य 190 रुपये से लेकर 4,000 रुपये तक है। राज कॉमिक्स के मालिक मनोज गुप्ता का कहना है कि बढ़ती कीमतों ने निस्संदेह बिक्री को प्रभावित किया है, जिसमें 1997 से 2003 तक काफी गिरावट आई है। जब इसका उद्योग अपने उत्कर्ष पर था, तब एक कॉमिक्स की 500,000 से अधिक प्रिंट आसानी से कई हफ्ते तक बेची जाती थी। आज इसके समकक्ष समान अवधि में 50,000 और 60,000 प्रतियों के बीच भी बड़ी मुश्किल से बिकता है।

90 के दशक में केवल निन्टेंडो गेम हुआ करते थे, वह भी काफी कम घरों तक सीमित था। बच्चे उन्हें खेलने के लिए अपने दोस्त के घर गए और यहां तक कि गेम के साथ गेमिंग कैसेट 3 या 4 लोगों के साथ शेयर किए गए। अगर ये कंपनियां इन कॉमिक्स के आधार पर इन पात्रों पर वीडियो गेम भी बनाती, तो लोकप्रियता बरकरार रहती। पर ऐसा हुआ नहीं और कॉमिक्स की लोकप्रियता कम होती गयी।

मार्वल और डीसी ने जमा लिया भारतीय बाजार पर कब्जा

वैश्विक बाजार के विस्तार के साथ, पश्चिमी प्रकाशकों ने भारतीय बाजार में बड़े अवसर को महसूस किया और कॉमिक्स को सीधे भारत में प्रकाशित करना शुरू कर दिया। 80 और 90 के दशक में, भारतीय बच्चों की पश्चिमी सुपरहीरो कॉमिक्स तक पहुंच बहुत कम थी। हालांकि, सुपरमैन, स्पाइडरमैन और बैटमैन जैसे सुपरहीरो तब भी लोकप्रिय थे, लेकिन उनकी कॉमिक्स काफी कम संख्या में प्रकाशित हुई और वह भी भारतीय प्रकाशकों द्वारा केवल कुछ साझेदारी के माध्यम से। 2000 के बाद पश्चिमी कॉमिक्स प्रकाशक भारत में ही प्रकाशन करने लगे, इससे उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी। अब तो भारतीय कॉमिक्स को प्रकाशक भी नहीं मिलते।

अचानक से मार्वल और डीसी कॉमिक्स में बच्चों को एक विशाल और पूरी तरह से अलग आकर्षक सुपरहीरो ब्रह्मांड मिला। उन्हें इन सुपरहीरो और उनकी शक्तियों के देसी सुपरहीरो के साथ जुड़ाव का भी एहसास होने लगा। परमाणु को अब कैप्टन ATOM के वर्जन के रूप में देखा जाने लगा। इंस्पेक्टर स्टील, रोबोकॉप की फर्स्ट-हैंड कॉपी थी। नागराज, स्पाइडरमैन के साथ, ध्रुव, बैटमैन और डोगा को लोगों ने पनीशर के साथ जोड़ा। यहां तक ​​कि मल्टीस्टारर कॉमिक्स का एकीकरण भी एवेंजर्स से संबंधित था। कई लोगों को यह भी लगता है कि भारतीय कॉमिक्स उन्हीं सुपर हीरो की कॉपी थे। यह अलग मुद्दा है, लेकिन सवाल वही है कि एक ने आज अपना एक अलग काल्पनिक ब्रह्मांड बना लिया है और दूसरी ओर भारतीय कॉमिक्स कहीं नहीं है।

और पढ़ें: सुपरमैन की फिल्म कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र और भारतीय सेना को हमलावरों के रूप में दिखा रही है

भारतीय कॉमिक्स की नहीं हुई प्रगति

इसका कारण है डिजिटलीकरण और पात्रों को वीडियो गेम, फिल्म तथा सीरीज के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना। अगर हम नागराज टीवी श्रृंखला और डोगा पर असफल फिल्मों को छोड़ दें, तो भारतीय कॉमिक्स का फिल्म या टीवी श्रृंखला के निर्माण के क्षेत्र में कोई प्रगति नहीं हुई है। भारतीय दर्शकों के पास इन देसी सुपरहीरो के किरदारों को कार्टून के रूप में देखने का विकल्प भी नहीं है। दूसरी ओर, डीसी और मार्वल की सैकड़ों और हजारों फिल्म, टीवी सीरीज, कार्टून सीरीज और अब यहां तक वेबसीरीज भी OTT प्लेटफॉर्म पर मौजूद है। अगर वेस्टर्न डायरेक्टर कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं। अंतर बस इतना है कि पश्चिमी प्रकाशकों ने समय के घूमते पहिये और बदलते माध्यम को महसूस किया और अपने प्रतिपादन के क्षेत्र में उसी के साथ परिवर्तन किया।

कभी दिवालिया होने के करीब थे मार्वल और डीसी

यदि आप ध्यान दें, तो मार्वल और डीसी भी मुश्किल दौर से गुजर चुके हैं और कभी वो दिवालिया होने के करीब भी थे। हालांकि, उन्होंने एक मजबूत बौद्धिक संपदा प्रणाली की स्थापना की, जिसने उन्हें अन्य चैनलों जैसे गेम, मर्चेंडाइजिंग, टेलीविजन और लाइव एक्शन फीचर फिल्मों से राजस्व जुटाने की अनुमति दी। एक जापानी कॉमिक आर्ट फॉर्म मंगा और एनीमे ने भारत में लोकप्रियता हासिल की है। कई युवा भारतीय मंगा और कॉसप्ले (जैसे ड्रेस अप) पात्रों पर चर्चा करने के लिए ग्रुप भी बना चुके हैं।

अगर ये भारत में लोकप्रियता हासिल कर सकते हैं, तो भारतीय कॉमिक्स क्यों नहीं। अगर फेसबुक पेज जैसे RVCJ या YouTubers जैसे BB ki Vines अपना सामान बेच सकते हैं, तो पहले से ही स्थापित और लोकप्रिय राज कॉमिक्स क्या नहीं कर सकता है, लेकिन उसके लिए आवश्यकता होगी माध्यम को बदलने की और आज के समय के अनुसार उन कैरेक्टर्स में बदलाव लाने की और साथ ही उनके आज के दौर के अनुसार गेम्स और OTT सीरीज से जोड़ने की।

और पढ़ें: हरीश पटेल को अपनी बात कहने के लिए Bollywood ने दरकिनार कर दिया था, अब वह Hollywood में जलवा दिखा रहे हैं

Exit mobile version