रोहिंग्या रिफ्यूजी संकट दिन प्रति दिन गम्भीर होते जा रहा है। संकट की घड़ी में, तमाम राष्ट्र भी रिफ्यूजी संकट पर बने तमाम पाखंडों को नकारकर राष्ट्रहित को पहले रख रहे हैं। तमाम राष्ट्र एक खास समुदाय के संकट को पहचान गए हैं। यूरोप तो खासतौर पर जान गया है कि कैसे एक समुदाय सिर्फ अपने मजहब के नशे में चूर है। इंडोनेशिया भी शायद इस बात को जान गया है शायद इसीलिए उसने रोहिंग्या मुसलमानों को अपने देश में आने से पहले ही बाहर भेज दिया है।
इंडोनेशिया के अधिकारियों ने कहा कि दर्जनों रोहिंग्या शरणार्थियों को इंडोनेशिया के आचे प्रांत के तट पर उनकी नाव के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद रोक लिया गया था और अब उन्हें मलेशियाई जलक्षेत्र में भेजा जा रहा है।
जहाज में कम से कम 100 लोगों, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे है, वह एक लकड़ी के जहाज पर सवार हैं। उन्हें इंडोनेशिया में शरण देने से मना कर दिया गया है और इसके बजाय उन्हें पड़ोसी दक्षिण पूर्व एशियाई देश में धकेल दिया गया है।
शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के आह्वान के बावजूद, इंडोनेशियाई अधिकारी आपूर्ति, कपड़े और ईंधन प्रदान करने के साथ-साथ एक तकनीशियन को उनकी क्षतिग्रस्त नाव को ठीक करने के लिए समूह को वापस भेजने का प्रयास कर रहे हैं।
मंगलवार को पत्रकारों से बात करते हुए, नौसेना के अधिकारी डियान सूर्यस्याह ने कहा कि “रोहिंग्या इंडोनेशियाई नागरिक नहीं हैं और सेना उन्हें केवल शरणार्थी के रूप में नहीं ले सकती है।”
इंडोनेशियाई अधिकारियों ने रोहिंग्या शरणार्थियों को मलेशिया या थाईलैंड की तरह पीछे नहीं धकेला है, बल्कि समुद्र के रास्ते आने पर उन्हें अनिच्छा से स्वीकार किया है।
‘ATS ने मुझे योगी आदित्यनाथ को फंसाने के लिए कहा था’, मालेगांव बम धमाके के गवाह ने किया खुलासा
इन्फो ने दिखाया एमनेस्टी इंटरनेशनल को ठेंगा
एमनेस्टी इंटरनेशनल और UNHRC ने सरकार से रोहिंग्या शरणार्थियों के फंसे हुए समूह को उतरने देने की मांग की है। शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHRC) ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि नाव का इंजन क्षतिग्रस्त हो गया था और इसे उतरने दिया जाना चाहिए।
बयान में कहा गया है, “UNHRC सवार शरणार्थियों की सुरक्षा और जीवन को लेकर चिंतित है।”
ऐसे अपील के बावजूद भी इंडोनेशिया ने ठेंगा दिखा दिया है। कोई देश आज की तारीख में रोहिंग्या मुसलमानों को नहीं स्वीकार करना चाहता है और सबसे बड़ा कारण यह है इनका उग्र, काफिर विरोधी उत्पात, जिसके वजह से इन्हें म्यांमार से बाहर फेंका गया है।