Jesus सहस्रनाम – धर्मांतरण का एक बचकाना और हास्यास्पद प्रयास

हां, ये कर लो पहले तुम लोग!

जीसस सहस्रनाम

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भारत में धर्मांतरण पिछले कुछ समय से एक गंभीर मुद्दा बन गया है। देश में बहुसंख्यक हिन्दुओं के धर्मांतरण की साजिश पिछले कुछ समय से चर्चाओं के केंद्र में है। भारत में हिन्दुओं के धर्मांतरण को लेकर सबसे ज्यादा आरोप ईसाई मिशनरियों पर लगते आए हैं। भारत के ईसाई मिशनरी और उसके संगठन स्वास्थ्य सेवा केंद्र, शिक्षा केंद्र और तरह-तरह की सुविधाओं का झांसा देकर गरीबों को ईसाई धर्म में शामिल करने का षड़यंत्र रचते हैं। आये दिन ऐसी खबरें भी सामने आती रहती हैं। आज के परिदृश्य में ईसाई मिशनरियां हिन्दुओं के पुराणों की तर्ज पर जीसस सहस्रनाम की किताब और मंत्र के इस्तेमाल से हिन्दुओं को भ्रमित करने का प्रयास कर रही हैं और हिन्दुओं के शास्त्र से तुलना कर लोगों को ईसाई धर्म में शामिल कराने के लिए बाध्य करती दिख रही हैं।

संस्कृत का शब्द है ‘सहस्रनाम’

दरअसल, जीसस सहस्रनाम की रचना एक ईसाई संस्कृत विद्वान K. U. Chacko ने 1985 में किया था। दक्षिणी क्षेत्र के मिशनरियों का मानना है कि जीसस सहस्रनाम के छंदों में यीशु का उल्लेख किया गया है। आपको बता दें कि चाको की साहित्यिक चोरी के पीछे मिशनरियों ने इस अवसर का लाभ उठाना शुरू कर दिया और वे केरल के स्थानीय मंदिरों के साथ-साथ हिंदू सभ्यता और संस्कृति पर भी सवाल उठाने लगे।

यहां ध्यान देने वाली बात है कि सहस्रनाम एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है “एक हजार नाम”। यह स्तोत्र साहित्य की एक शैली भी है, जिसे आमतौर पर एक देवता के नाम पर पाठ के शीर्षक के रूप में देखा जाता है, जैसे विष्णु सहस्रनाम, जिसमें देवता को 1,000 नामों, विशेषताओं या विशेषणों द्वारा संबोधित किया जाता है।

लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि “यीशु सहस्रनाम” नामक एक वेबसाइट ने सहस्रनाम की उत्पत्ति की एक पूरी तरह से नई कहानी तैयार की है और इसे आसानी से वैदिक भजनों से जोड़ दिया है। वेबसाइट के शुरुआती पृष्ठ में लिखा है, “जीसस सहस्रनाम की जड़ें आदिम ईसाइयों की प्रार्थनाओं में हैं। इसका स्वरूप वैदिक मंत्रों से लिया गया है।”

इस वेबसाइट के मुताबिक जीसस मंत्र का जाप लोगों को उनकी पोषित आशा और इच्छा को प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। इसमें बताया गया है कि जीसस मंत्र क्राइस्टोलॉजी की शाखा में एक नया स्तर है। गौरतलब है कि यह इस समय एक सहज साहित्यिक चोरी के प्रयास की तरह लग सकता है, लेकिन कुछ दशकों बाद, यह भी दावा किया जा सकता है कि ‘सहस्रनाम’ विशेष रूप से अब्राहमिक धर्मों के लिए लिखा गया था!

लॉकडाउन में करीब 1 लाख लोगों का हुआ धर्मांतरण

आपको बता दें कि यूट्यूबर और एक स्वघोषित चिकित्सक पैगंबर बजिंदर सिंह स्पष्ट रूप से धर्मांतरण का एक विशाल नेटवर्क चलाते हैं! ध्यान देने वाली बात है कि बजिंदर सिंह वही आदमी है, जिसका ‘यीशु-यीशु’ वीडियो पूरे इंटरनेट पर एक मीम मटेरियल बन गया था। इसके अलावा, बजिंदर को कथित तौर पर वर्ष 2018 में एक महिला से बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, जो उसकी सुरक्षा टीम की हिस्सा थी। इसके अलावा सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक वीडियो में एक ईसाई टेलीवेंजेलिस्ट ने AIDS से पीड़ित एक व्यक्ति को ‘Hallelujah’ के नारे से ठीक करते देखा गया।

हाल ही में, अभिनेता जॉनी लीवर भी एक उपदेशक के रूप में परिवर्तित हो गए। उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने ऋतिक रोशन और उनके पिता राकेश रोशन की बीमारियों को सिर्फ ईसा मसीह का नाम लेकर खत्म कर दिया। ऐसे ही कई अन्य लोग भी हैं, जो अपने हास्यास्पद तरीकों से लोगों की बीमारी भगाने और भोले भाले लोगों का धर्मांतरण कराने को लेकर चर्चा में हैं। गौरतलब है कि मिशनरियों का धर्मांतरण रैकेट पहले से कहीं ज्यादा बड़ा हो गया है। कई रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले साल लॉकडाउन के बीच ईसाई मिशनरियों ने करीब 1,00,000 लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित किया था।

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बताते चलें कि आज से करीब 500 वर्ष पूर्व सन् 1596 रॉबर्टो डी नोबिली नामक एक इटैलियन युवक ने भारत में ईसाई मिशनरी खोलने का फैसला लिया। उसका मुख्य कार्य लोगों का धर्म परिवर्तन कराना था। भारत में आने के बाद से उसका पहला शिकार एक स्कूल मास्टर बना और मदुरै आने के दो साल के भीतर, उसने कम से कम 10 हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया था।

सन् 1610 के अंत तक यह संख्या 60 तक पहुंच गई। उसने अपने जीवन के अंत तक लगभग 4000 से अधिक हिन्दुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित कर दिया था। ऐसे में ध्यान देने वाली बात है कि भारत में चल रही ईसाई मिशनरियां और पादरी के नाम पर छद्म भेष में छिपे कुछ भेड़िए भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म के लिए किसी बड़े खतरे से कम नहीं है!

सहस्राब्दियों से चला आ रहा है हिंदू धर्म

हिंदू धर्म जीवन जीने का एक गहन तरीका है, एक दर्शन जो सहस्राब्दियों से चला आ रहा है। इसे ‘वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। यह धर्म अपने अन्दर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियां, मत, सम्प्रदाय और दर्शन को समेटे हुए हैं। मौजूदा समय में ऐसी घटनाओं को देखते हुए अब सरकार और हिंदू समाज को ऐसे कट्टरपंथियों को रोकने की जरुरत है, जो हिंदू धर्म और उसकी शिक्षाओं का इस्तेमाल कर निर्दोष और गरीब लोगों को लुभाने का काम करते हैं।

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