नेता अच्छे होते है, बुरे होते हैं, अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं, सत्तालोभी और महत्वाकांक्षी भी होते हैं। परन्तु, सत्ता के सनक और पद के हनक में राष्ट्र की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए कथित तौर पर एक महिला नेता खतरा बन गई हैं, जिनका नाम है- ममता बनर्जी! दरअसल, भारत के सीमाओं की सुरक्षा हेतु मोदी सरकार ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के गिरफ्तारी, खोज और जब्ती के अधिकार को बढ़ाकर 50 किमी अंदर तक कर दिया, जो पहले मात्र 15 km था। परंतु, ममता की मृत हो चुकी नैतिकता ने उन्हें इस कानून का विरोध करने पर मजबूर कर दिया! अन्तत, तृणमूल सरकार 17 नवंबर को इस कानून के विरोध में बंगाल विधान सभा में प्रस्ताव पारित कर चुकी है।
केंद्र सरकार का राष्ट्र हितैषी कानून
ममता के विरोध के पीछे दो मुख्य कारण हैं। प्रथम, मुस्लिम तुष्टिकरण और दूसरा गायों की तस्करी। कथित तौर पर ममता की जीत के मुख्य कारण मुसलमान रहे हैं। अतः बंगाल में मुसलमानों की संख्या जितनी ज्यादा बढ़ेगी, उनको उतना ही राजनीतिक लाभ मिलेगा, इसीलिए वो रोहिंग्याओं के अवैध घुसपैठ और बढ़वा देना चाहती हैं! ममता बनर्जी कथित तौर पर मुस्लिम मत पाने के लिए राष्ट्रहित की तिलांजलि देने को भी तैयार हैं! जबकि केंद्र सरकार सीमाई रूप से असुरक्षित और संवेदनशील पंजाब, बंगाल और असम जैसे राज्यों को बीएसएफ के कवच से अभेद्य बनाना चाहती है।
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जब मोदी सरकार ममता बनर्जी के विरोध प्रस्ताव से भी नहीं हिली, तो अब उन्होंने कानून-व्यवस्था को राज्य का विषय बताते हुए गुरुवार को बांग्लादेश की सीमा से लगे नादिया जिले में पुलिस को निर्देश दिया कि वह बीएसएफ को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर के इलाकों में प्रवेश न करने दें। परन्तु, ममता भूल गई की राष्ट्र की अखंडता सुनिश्चित करना केंद्र का विषय है।
ममता का अनर्गल विरोध
नादिया में हुई एक प्रशासनिक बैठक में ममता बनर्जी ने जिले के पुलिस अधिकारियों से ‘नाका चेकिंग’ (चौकियों) को बढ़ाने और अतिरिक्त निगरानी रखने को भी कहा। पिछले कुछ दिनों से चार अन्य जिलों में प्रशासनिक समीक्षा बैठकों को संबोधित करने वाली सीएम ममता बनर्जी पुलिस प्रशासन को निर्देश दे रही हैं कि बीएसएफ को अपने अधिकार क्षेत्र की सीमा का उल्लंघन न करने दें और राज्य की कानून व्यवस्था से उन्हें बाहर रखें। ममता बनर्जी ने डीजीपी को इस संबंध में बीएसएफ अधिकारियों से बात करने का निर्देश दिया है।
ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि यह देश के संघीय ढांचे में हस्तक्षेप करने का प्रयास है। उन्होंने यह भी दावा किया है कि इस कदम का मतलब “उन क्षेत्रों में लोगों को प्रताड़ित करना” था। बीते गुरुवार को, सीएम बनर्जी ने घोषणा करते हुए कहा कि राज्य के प्रत्येक जिले में नगरपालिका क्षेत्रों में एक महिला पुलिस गश्ती दल का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हम प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्र में एक महिला बटालियन शुरू करेंगे। कम से कम 10 पुलिसकर्मी बाइक या स्कूटर पर क्षेत्रों में गश्त करेंगी। मैंने पहले ही डीजी को इस पर काम करने के लिए कहा है।”
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नैतिकता का पतन
ममता बनर्जी जैसे नेताओं को देखकर मुख से यही निकलता है कि गिरिए, गिरना स्वाभाविक है! परन्तु, इतना मत गिरिए कि रसातल में पहुंच जाए। ज़मीन पर गिरा इंसान उठ सकता है, जबकि ज़मीन में पड़ा इंसान सिर्फ मुर्दा होता है। राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत हमने कई नेताओं की नैतिकता को गिरते हुए देखा, परंतु नैतिकता के मृत होने का प्रथम उदाहरण पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी में देखने को मिला है।
चाहे सीबीआई हो, बंगाल पुलिस हो, paramilitary हो या फिर राज्य की फोर्स हो, ममता बनर्जी ने हर मामले में राज्य मशीनरी को केंद्र के खिलाफ खड़ा कर दिया है। वो इस कृत्य को अपने राजनीतिक साहस से जोड़कर मोदी विरोध का चेहरा बनना चाहती हैं, पर देश की जनता को समझना होगा कि कहीं ना कहीं उनके मन में जिन्ना के ख्वाब पल रहे हैं! उन्हें समझना होगा बंगाल से ऊपर हिंदुस्तान है और बंगाल हिंदुस्तान का हिस्सा है।
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