नेता अच्छे होते है, बुरे होते हैं, अलग-अलग विचारधाराओं के होते हैं, सत्तालोभी और महत्वाकांक्षी भी होते हैं। परन्तु, सत्ता की सनक में राष्ट्र की एकता से समझौता करने में कथित तौर पर एक नेता का नाम सबसे अग्रणी हैं, और वो हैं- ममता बनर्जी!
राष्ट्र के लिए सबसे ख़तरनाक एक लोभी और स्वार्थी नेता है क्योंकि वो लोकतंत्र को व्यापार बनाकर शाश्वत सत्ता सुख के लिए देश की तिलांजलि देने लगता है। राजनीति को व्यापार और देश को विक्रय की वस्तु समझने लगता है।
ममता बनर्जी ने हाल ही में उन्हें मिशनरी ऑफ चैरिटी वाले प्रकरण में उन्हें अपना वोट बैंक बनाने का अवसर दिखा। दरअसल, उनका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन फिर भी अपने वोट बैंक निर्माण के लिए राष्ट्रहित से समझौता करते हुए वो जांच और कार्रवाई को प्रभावित करना चाह रही हैं। लेकिन, वो कहते हैं न “सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं” और अंततः हुआ भी वही। ममता जिसे इतने दिनों से बचा रही थी, उस मिशनरी फॉर चैरिटी दोनों का झूठ पकड़ा गया है।
आइए सबसे पहले आपको साधारण भाषा में समझाते हैं कि मिशनरीज आफ चैरिटी क्या है?
मिशनरी ऑफ चैरिटी एक रोमन कैथोलिक स्वयंसेवी धार्मिक संगठन है, जो कहने के लिए तो विश्व-भर में मानवीय कार्यों में संमग्न है पर असल में भारत में धर्मान्तरण को बढ़ावा देने के लिए यह मदर टेरेसा द्वारा सृजित एक हथियार है जिसे समाज सेवा का चोगा ओढ़ा दिया गया है। इसकी शुरुआत एवं स्थापना कलकत्ता की संत मदर टेरेसा ने 1950 में की थी। आज यह विश्व के 120 से भी अधिक देशों में कार्यरत 4500 से भी अधिक ईसाई मिशनरियों का समूह है।
उनपर मरते हुए लोगों का ज़बरन धर्मपरिवर्तन कर, गर्भपात समेत अन्य महिलाधिकारों का विरोध कर, विवादास्पद लोगों का समर्थन करने, जैसे कई आरोप शामिल हैं। 2017 में, खोजी पत्रकार जियानलुइगी नुज़ी ने बताया कि वेटिकन के एक बैंक में मदर टेरेसा के नाम पर उनकी चैरिटी द्वारा जुटाई गई धनराशि अरबों डॉलर में थी।
उनपर धोखाधड़ी का आरोप भी लगाया जाता है क्योंकि उन्होंने ग़रीबों को अपनी पीड़ा सहन करने के लिए तो कहा, लेकिन जब वे स्वयं बीमार पड़ीं तो उन्होंने सबसे उच्च-गुणवत्ता वाले महँगे अस्पताल में अपना इलाज कराया। भारी मात्रा में दुनिया भर से दान में पैसा मिलने के बावजूद उनके संस्थानों की हालत दयनीय थी। उनके धर्मान्तरण के विशेष तरीके के अलावा कई चिकित्सा पत्रिकाओं में उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई और दान का धन खर्च करने के अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए।
दुर्भाग्यवश, इस प्रकार की व्यवस्था आज भी इस संगठन में जस की तस व्याप्त है और ममता बनर्जी के कार्यकाल में फल-फूल भी रही है। परंतु, नागरिकता कानून और किसान आंदोलन से यह साबित हो गया है कि विदेशी ताकतें कैसे अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय NGO को दान देकर अव्यवस्था और अराजकता फैलाने का कार्य करती है? SDPI और Justice for Sikh इसका मानद उदाहरण हैऔर मोदी सरकार इस बात को समझ चुकी है।
हाल के दिनों में FCRA ने देश भर में संचालित ऐसे फर्जी और विदेशी फंडिंग प्राप्त करने वाले तथाकथित समाजसेवी संस्थाओं पर नकेल कसने शुरू कर दी। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से सभी समाजसेवी संगठन सकते में हैं। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए विदेश से चंदा लेने के मामले में अब वह अत्यधिक सतर्कता बरत रहे ताकि पकड़े ना जाए। ऐसी ही सतर्कता बरतते हुए मिशनरीज ऑफ चैरिटी ने भी सरकार से निवेदन किया कि उनके विदेशी खाते फ्रीज कर दिया जाए क्योंकि विदेशी फंडिंग प्राप्त करने की निर्धारित नियमों और मानकों को वो पूरा करने में असमर्थ है।
सरकार ने उनके निवेदन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए FCRA के माध्यम से एसबीआई में मौजूद उनके खाते को बंद कर दिया। परन्तु, उनके द्वारा स्वेच्छा से किए गए इस निवेदन को ममता बनर्जी ने सरकारी तानाशाही में परिवर्तित कर वोट बैंक के लिए भ्रम फैलाया। परंतु, उनके इस भ्रम की जगह संदेह फैला और इस संगठन में व्याप्त भ्रष्टाचार सतह पर आने लगा है। एक अध्ययन में पता चला है की मिशनरी ऑफ चैरिटी को 15 सालों में कुल 1099 करोड़ का विदेशी चंदा प्राप्त हुआ है जिसमें विगत 5 वर्षों में 426 करोड़ और इस वित्तीय वर्ष में अब तक 75 करोड़ प्राप्त हो चूकें हैं। इन दानदाताओं में 59 विदेशी नागरिक या संगठन है। आपको जानकार हैरानी होगी की इस संगठन के कुल 250 बैंक खाते है।
76 पृष्ठ के इस FCRA रिपोर्ट का विश्लेषण करते समय आप पाएंगे की मिशनरी ऑफ चैरिटी को 2021 के वित्तीय वर्ष में प्राप्त 75Cr के दान में से 44Cr सिर्फ में इसके USA शाखा से प्राप्त हुआ है। दूसरे नंबर के दानदाता तो और आश्चर्यचकित करते है। उनका नाम कृति फाइनेंस एसए है और उन्होने 13.5 करोड़ का दान दिया है।
अब दिलचस्प बात यह है कि कृति फाइनेंस के अध्यक्ष और निदेशक एडगार्डो ई. डियाज़ संयोग से फरवुड इन्वेस्टमेंट कंपनी सहित कई ऐसी कंपनियों में भी निदेशक जैसे पद पर आरूढ़ हैं। यह वही फर्म है जिसका नाम हाल ही में जारी पेंडोरा पेपर्स में ‘कर चोरी’ में शामिल है। एक और पकड़ यह है कि इन दोनों पनामा फर्मों का प्रबंधन एक ही कानूनी फर्म (एलेमेन, कोर्डेरो, गैलिंडो और ली) द्वारा किया जाता है। इस अजीबोगरीब 18% दान को उजागर नहीं किया है? जिसके कारण कुछ उनसुलझे प्रश्न अभी भी रह गए है जैसे वास्तविक दाता कौन है? क्या यह मनी लॉन्ड्रिंग का मामला है? ऐसी टैक्स हेवन कंट्री फाइनेंस फर्म भारत में एक ईसाई मिशनरी संगठन को दान क्यों दे रही है?
मिशनरी ऑफ चैरिटी का बचाव करने वाली एक लॉबी पहले से ही गुजरात में धर्मांतरण प्राथमिकी और रांची में तस्करी के मामले का सामना कर रही है तो मन में अचानक से कौंधता है क्या नोबेल लॉरेल नाम आपको कानूनों से छूट दे सकता है? ये सब शक्तियां परजीवी के भांति हो गई हैं जिन्हें अपना अस्तित्व बचाने के लिए एक दूसरे की जरूरत पड़ रहीं है। सबसे अच्छी बात ममता बनर्जी के भ्रम ने ना चाहते हुए भी इस संगठन का पर्दाफाश किया।
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