पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरुद्ध प्रभावशाली चुनावी जीत के साथ तृणमूल कांग्रेस की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी खुद को साल 2024 के चुनावों में नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए तैयार एकमात्र राजनेता के रूप में देख रही हैं। वह गोवा जैसे दूर-दराज के राज्यों में जीतने और लोगों को प्रभावित करने के लिए निकली हैं, जहां हाल के दिनों तक उनकी कोई उपस्थिति नहीं थी।
वहीं, उन्हें त्रिपुरा निकाय चुनावों में एक सीट से संतोष करना पड़ा, जहां भाजपा ने 334 सीटों में से पांच को छोड़कर सभी पर जीत हासिल की। ममता बनर्जी दिल्ली की गद्दी पर बैठने का सपना इसलिए देख रही है क्योकिं प्रशांत किशोर ने उनको यह झूठा सपना दिखा दिया है।
पैंतरे पर पैंतरे आजमा रही हैं ममता
हाल ही के दिनों में, जब से ममता ने विधानसभा चुनाव जीता है, उन्होंने राष्ट्रीय मानचित्र पर कांग्रेस के विकल्प के रूप में अपना दावा पेश करने के लिए देश के दुसरे राज्यों का दौरा करना भी शुरू कर दिया है। वहीं, लगातार दो चुनावों में 44 सीटों और 52 सीटों के साथ, कांग्रेस को हाशिये पर धकेलने का सही आह्वान प्रतीत होता है। हालांकि, ममता का दिल्ली की गद्दी पर काबिज़ होने का सपना इतना आसान नहीं हैं। इस बीच देश के तमाम राजनीतिक पार्टियों ने एक सूर में कहा है कि “बिना कांग्रेस के साथ गठबंधन के कोई भी पार्टी भाजपा को नहीं हरा सकती है।”
दरअसल, गोवा विधानसभा चुनाव पर ममता और उनकी पार्टी का फोकस कर रहा है, जिसके बाद से ममता ने अपने राजनीतिक रणनीतिकारों को तटीय राज्य में भेजा है, चुनावी प्रचार के लिए लिएंडर पेस जैसे बड़े नामों को शामिल किया गया है और अपने पोस्टरों के साथ गोवा में स्थित ताड़ के पेड़ों को व्यावहारिक रूप से दिखाया है। वहीं, इस तरह के PR से तृणमूल कांग्रेस ने गोवा में स्थानीय लोग चकित किया है। गोवा के लोग सोच में हैं कि आखिरकार, एक ऐसी पार्टी जिसकी राज्य में कोई मौजूदगी नहीं थी, स्थानीय लोग TMC नामक पार्टी के अस्तित्व से बेखबर हैं, वे आशंकित हैं।
झूठे सपने देख रही हैं ममता
बता दें कि ममता ने हाल ही में, मेघालय में कांग्रेस पार्टी धराशायी किया था, जिसके बाद ममता सोच रही है कि गोवा में भी यही जादू चल सकता है। इसके बाद वह महाराष्ट्र गईं जहां वो उद्धव ठाकरे से मिली और कांग्रेस के बिना गठबंधन की साजिश रचने की कोशिश की। हालांकि, शिवसेना ने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया कि वह कांग्रेस के बिना गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी क्योंकि उद्धव ठाकरे पिछले दिनों गठबंधन को लेकर सोनिया गांधी से मिलने गए थे।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी दिल्ली तक पहुँचाने के लिए ढेरों पैतरें आजमा रही हैं किन्तु उनके सभी प्रयास कल्पनाओं में ही साकार हो रहें जबकि हकीकत उससे बिलकुल भिन्न है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि हर जगह से नकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद ममता बनर्जी का दिल्ली की गद्दी पर बैठने का झूठा सपना कठिन प्रतीत होता है।
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