कृषि कानून को जल्द ही वापस लाया जाएगा, मोदी सरकार का संकेत तो कुछ ऐसा ही है

असली मजा तो अब आएगा!

PM Modi

Source- TFIPOST

कृषि कानूनों की वापसी मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता के रूप देखी जा रही थी। नए कृषि कानून भारत की कृषि क्षेत्र को पूरी तरह से बदल सकते थे। यही कारण था कि वाजपेई सरकार से लेकर मोदी सरकार तक विभिन्न समितियों ने कृषि क्षेत्र में निजी निवेश के लिए मार्ग खोलने की सिफारिश की थी। हालांकि, दिल्ली की सीमा पर 1 वर्ष तक चले आंदोलन तथा पंजाब में नए कृषि कानूनों के कारण बढ़ते असंतोष और अस्थिरता को देखते हुए देशहित में मोदी सरकार को इन कानूनों को वापस लेना पड़ा।

किंतु ऐसा नहीं है कि सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधारों की प्रक्रिया को पूरी तरह रोक दिया है। मोदी सरकार कृषि कानूनों को पुनः वापस ला सकती है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (Narendra Singh Tomar) ने महाराष्ट्र में एक कार्यक्रम में  संकेत दिया है कि पिछले महीने केंद्र सरकार की ओर से लाखों किसानों द्वारा उग्र (कभी-कभी हिंसक) विरोध प्रदर्शन के बाद वापस लिए गए तीनों विवादित कृषि कानूनों को बाद में फिर से पेश किया जा सकता है।

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तोमर ने विपक्ष के प्रोपेगेंडा को ठहराया जिम्मेदार

केंद्रीय कृषि मंत्री ने इन कानूनों के निरस्तीकरण के लिए विपक्ष के प्रोपेगेंडा को जिम्मेदार ठहराया। NDTV पर प्रकाशित खबर के अनुसार, कृषि मंत्री तोमर ने कहा, “हम कृषि संशोधन कानून लेकर आए, लेकिन कुछ लोगों को ये कानून पसंद नहीं आया, जो आजादी के 70 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बड़ा सुधार था।”

उन्होंने कहा, “लेकिन सरकार निराश नहीं है। हम एक कदम पीछे हटे हैं और हम फिर आगे बढ़ेंगे, क्योंकि किसान भारत की रीढ़ हैं और जब रीढ़ मजबूत होगी तो देश भी मजबूत होगा।”

कृषि मंत्री ने पहले भी सरकार का पक्ष रखते हुए किसानों की स्थिति में सुधार के बीच कुछ लोगों को रोड़ा बताया था। कृषि कानूनों को खत्म करने से दो दिन पहले, सरकार ने ‘Objects and Reasons’ पर एक नोट जारी किया था। संसद सदस्यों को जारी इस नोट में किसानों के एक समूह को किसानों की स्थिति के सुधार में रोड़ा बताया गया था, साथ ही सरकार ने यह भी कहा था कि यह कृषि कानून किसानों के महत्व को देखकर ही बनाए गए थे।

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कृषि क्षेत्र में सुधार अवश्य ही लागू होंगे

संसद सदस्यों को जारी नोट में मोदी सरकार ने अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए यह बता दिया था कि कृषि कानूनों को इसलिए वापस नहीं लिया जा रहा क्योंकि यह कानून दोषपूर्ण है, बल्कि इसलिए वापस लिया जा रहा है, क्योंकि किसानों के बीच उपस्थित कुछ वर्गों द्वारा आवश्यक सुधारों को रोका जा रहा है। लोकतंत्र ने जन असंतोष और आंदोलन के दबाव का बहुत महत्व होता है। भले ही यह दबाव सुधारों को रोकने वाला हो, लेकिन लोकतंत्र में सैद्धांतिक रूप से इसे स्वीकार करना पड़ता है।

सरकार के पास तब दो ही मार्ग थे या तो किसानों के आंदोलन को बलपूर्वक कुचलकर इन सुधारों को लागू किया जाए अथवा कुछ समय रुक कर अनुकूल परिस्थितियों में सुधार किए जाए। यदि सरकार बलपूर्वक आंदोलन को दबाकर सुधार लागू भी कर देती, तो भी सरकार को दोषी माना जाता। इसलिए वर्तमान में सरकार भले दो कदम पीछे हुई है, लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि सरकार इस मुद्दे पर हार नहीं मानेगी और कृषि क्षेत्र में सुधार अवश्य ही लागू होंगे।

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