वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से देश में राष्ट्रव्यापी सामाजिक सुधार हुए हैं। हाल ही में, केंद्र की भाजपा सरकार ने चुनाव सुधार को लेकर चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची में संकलित डेटा को आधार तंत्र से जोड़ना है। चुनाव कानून विधेयक बीते सोमवार को लोकसभा में पारित किया गया था। वहीं, संसद में विपक्ष के सदस्यों ने इस विधेयक पर कड़ी आपत्ति जताई है। विपक्ष का कहना है कि चुनाव कानून विधेयक निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
वोटर कार्ड को आधार से जोड़ने पर गरमाया विपक्ष
दरअसल, संसद में चुनाव कानून विधेयक के पारित होते हीं विपक्षी पार्टियों के सांसदों को जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि, ‘इसमें आधार को वोटर आईडी कार्ड से जोड़ने का प्रावधान है।” बता दें कि इस स्वैच्छिक संबंधित विधेयक को विपक्षी दल के नेताओं ने स्थायी समिति को भेजने की मांग की थी, जिसको खारिज करते हुए रिजिजू ने विभाग से संबंधित लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति की 105वीं रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि “समिति का विचार है कि आधार को मतदाता सूची से जोड़ने से मतदाता सूची शुद्ध हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप चुनावी कदाचार कम हो जाएगा।” उन्होंने आगे कहा कि “समिति ने निर्देश दिया है कि इस संबंध में संबंधित कानून में जल्द से जल्द संशोधन किया जाना चाहिए।”
रिजिजू ने अपने सम्बोधन में यह भी कहा कि “यह बिल सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का पालन करने के लिए लाया गया है जिसमें निजता के अनुमेय आक्रमण (permissible attack) को परिभाषित करने के लिए कानूनों का सुझाव दिया गया था।” रिजिजू ने प्रस्तावित संशोधनों का विवरण देते हुए आगे कहा कि “जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की विभिन्न धाराओं और कानूनी प्रावधानों में कुछ असमानताएं और कुछ कमियां पाई गई हैं और इसे दूर करने के लिए भारत सरकार, चुनाव आयोग के परामर्श से और चुनाव आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को शामिल करते हुए, हम ये संशोधन लाए हैं।”
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किरेन रिजिजू का विपक्षी सांसदों को जवाब
बताते चलें कि रिजिजू ने विपक्ष के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मतदाता पहचान को आधार से जोड़ने से एक नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि “चुनाव कानून विधेयक फर्जी मतदान और फर्जी वोटों को रोकने के लिए है।” विपक्षी दलों की आलोचना करते हुए रिजिजू ने कहा कि “विपक्षी सांसदों ने या तो विधेयक को नहीं पढ़ा है या वे जानबूझकर विरोध कर रहे हैं। विपक्षी सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या की है।”
आपको बतादें कि चुनाव कानून विधेयक के उद्देश्यों और कारणों के विवरण अनुसार, यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में संशोधन का प्रावधान करता है। वहीं, सरकार का कहना है कि “आधार को मतदाता सूची से जोड़ने से एक ही व्यक्ति के अलग-अलग जगहों पर कई नामांकन की समस्या का समाधान हो जाएगा। एक बार आधार लिंकेज हो जाने के बाद, मतदाता सूची डेटा सिस्टम तुरंत पिछले पंजीकरण के अस्तित्व को सचेत कर देगा जब भी कोई व्यक्ति नए पंजीकरण के लिए आवेदन करेगा।”
साल 2015 में भी उठी थी यह मांग
आपको ज्ञात हो कि मार्च 2015 में चुनाव आयोग ने एक राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम शुरू किया था, जिसमें डुप्लिकेट नामों को हटाने के लिए आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने की मांग की गई थी। चुनाव आयोग ने मई 2015 के एक विज्ञप्ति में कहा था कि “इस कार्यक्रम के तहत आधार डेटा के साथ मतदाताओं के इलेक्टोरल डेटा को जोड़ा जा रहा है और उसका प्रमाणीकरण भी किया जा रहा है।” गौरतलब है कि उस वर्ष, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया था कि “आधार कार्ड योजना विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है और इसे तब तक अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता जब तक कि इसे न्यायालय द्वारा किसी भी तरह से अंतिम रूप से निर्णय नहीं लिया जाता है।”
बहरहाल, चुनाव कानून विधेयक के संसद पटल पर पारित होते हीं विपक्षी और लिबरल मानसिकता वाले नेता विरोध करने लगे हैं। देश में जब भी कोई अच्छा कार्य प्रारंभ होता है तो कुछ कुंठित मानसिकता वाले व्यक्तियों को यह बात नहीं पचती है। यही हाल देश के विपक्षी पार्टी के नेताओं के साथ हो रहा है। दरअसल, इस चुनाव कानून (सुधार) विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस के मनीष तिवारी ने कहा है कि “मतदाता पहचान पत्र और आधार को जोड़ने से निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है जैसा कि फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परिभाषित किया गया है।” वहीं, AIMIM के सर्वेसर्वा असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि “यदि विधेयक एक अधिनियम बन जाता है, तो सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों के प्रोफाइल देखने के लिए मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी।”
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संसद में विपक्ष की एक भी न चली
आपको बता दें कि विपक्षी नेताओं ने अपने मांग में एक सवाल उठाते हुए कहा कि अप्रैल 2019 में, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) ने हैदराबाद स्थित एक सॉफ्टवेयर कंपनी, आईटी ग्रिड्स (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के बारे में पुलिस से शिकायत की, जिसमें आंध्र प्रदेश में 7,82,21,397 आधार धारकों के अवैध रूप से विवरण प्राप्त करने का आरोप लगाया गया था। UIDAI सर्वरों की कथित सुरक्षा कमजोरियों के कारण यह चिंता व्यक्त की गई थी, जिसे प्राधिकरण ने उस समय अस्वीकार कर दिया था। मामला एक विशेष जांच दल को स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन जांच में कोई खास प्रगति नहीं हुई।
इसी मामले का हवाला देते हुए विपक्षी कह रहे हैं कि आधार से Voter Id को जोड़ना निजता का हनन है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार के तरफ से पूरी जानकारी संसद को बताने के बाद कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में जनता को गुमराह करने के लिए विपक्षी सांसदों को खूब धोया, जिसके बाद पूरा विपक्ष मुद्दाविहीन हो गया है!