नीतीश कुमार के सुशासन में यदि बिहार में आपकी भूमि पर कोई मंदिर है, जहां लोग जाते हैं तो स्वागत है आपका ऐसे बिहार में जहां आपको अब मंदिर पर 4% टैक्स देने की आवश्यकता है। ये सब मध्यकाल की बात नहीं है। यह 21वी सदी में हो रहा है और उस देश में हो रहा है, जहां कहने को तो 80 प्रतिशत हिन्दू है लेकिन सुनने को 5 प्रतिशत भी नहीं है।
हाल ही में बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड ने निजी प्रकृति के मंदिरों के पंजीकरण के लिए एक विशेष अभियान चलाने और कुल आय पर चार प्रतिशत का कर लगाने का निर्णय लिया है।
इस नए कानून के तहत बिहार में सभी मंदिरों को अपना पंजीकरण कराना होगा और टैक्स देना होगा। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा लिए गए इस फैसले पर दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
आपको बताते चलें कि BSBRT, 1950 से मंदिरों से कर वसूलता रहा है लेकिन छोटे और निजी मंदिरों को कर के दायरे में शामिल किए जाने के बाद विवाद फिर से शुरू हो गया है।अबतक इसमें आपके व्यक्तिगत मंदिरों को शामिल नहीं किया गया था लेकिन अब उन्हें भी शामिल कर लिया गया है। मतलब कि व्यक्तियों द्वारा अपने आवासीय परिसर में बनाए गए और जनता के लिए खुले मंदिर भी इस नए फरमान के दायरे में आएंगे।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यदि कोई मंदिर किसी घर की चारदीवारी के भीतर स्थित है और परिवार के सदस्य वहां पूजा-अर्चना करते हैं तो उसे निजी मंदिर माना जाएगा। हालांकि, अगर कोई मंदिर किसी घर या घर की चारदीवारी के बाहर है या किसी की अपनी भूमि पर स्थित है और वहां एक से अधिक परिवार पूजा करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं, तो इसे सार्वजनिक माना जाएगा और उसे भी कर देना पड़ जाएगा।
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नीतीश कुमार ने मंदिरों पर फिर से एक प्रकार का ‘जजिया कर’ लगा दिया है। नए नियम के अनुसार प्रत्येक सार्वजनिक मंदिर को अपना पंजीकरण कराना अनिवार्य है और एक बार पंजीकरण पूरा हो जाने के बाद कुल आय का चार प्रतिशत कर भुगतान करना पड़ता है।
जनता में है आक्रोश लेकिन दोगले है नेता-
मंदिरों पर सेवा शुल्क लगाने के फैसले से भक्तों में आक्रोश है क्योंकि बहुत से लोगों के आवासीय परिसर के भीतर कई मंदिर बने हैं।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य कामेश्वर चौपाल ने सेवा शुल्क के नाम पर नई कराधान नीति को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साधा और इसे जजिया कर के बराबर बता दिया।
मामलें की गम्भीरता को देखते हुए, बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के सहायक अधीक्षक तुलसयान सहगल ने कहा कि यह कर नहीं बल्कि वार्षिक सेवा शुल्क है।
बिहार के भूमि सुधार और राजस्व मंत्री रामसूरत राय ने कहा कि इस फैसले का गलत विरोध शुरू हो गया है और कुछ लोग भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में धार्मिक स्थलों के बेहतर प्रबंधन के लिए बीएसबीआरटी, कानून विभाग और भू-राजस्व विभाग ने बैठक की थी।
उन्होंने कहा, “बिहार में मंदिर प्रबंधन बहुत खराब है और यह देखा गया है कि हमारे पूर्वजों द्वारा मंदिरों के लिए दान की गई संपत्ति को देखभाल करने वालों द्वारा बेचा जा रहा है। इसलिए हम मंदिरों की संपत्तियों की रक्षा के लिए कानून को मजबूत करना चाहते हैं ताकि मंदिर के रखरखाव के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सके।”
BJP जहां एक ओर सिर्फ सॉफ्ट राजनीति कर रही है और इस घटना के लिए कार्यकर्ता रोड पर नहीं है। दूसरी ओर राजद विधायक आलोक मेहता ने 4% टैक्स का समर्थन किया और कहा कि पैसे का उपयोग बिहार के जनकल्याण और विकास के लिए किया जाना चाहिए।
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4600 मंदिरों में जारी है जजिया कर-
बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद के अध्यक्ष एके जैन का कहना है कि बोर्ड की ओर से कुल 4,600 मंदिरों का निबंधन हुआ है। अभी भी राज्य के कई प्रमुख मंदिर हैं, जिनका निबंधन नहीं है। कुछ बड़े मंदिर निबंधन के बावजूद नियमित बोर्ड को टैक्स नहीं दे रहे हैं।
वाह रे हिंदुओ का देश! ये कैसा कानून है? ईसाई चर्चों के लिए ऐसा कानून लाया जा सकता है क्या? फिर हिन्दू ही क्यों? वह भी एक तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में? क्या हिंदुओ की अस्मिता नहीं है? क्यों अतीत के पन्नों से हिन्दू विरोधी कानूनों को वापस लेकर हमें परोसा जा रहा हूं। ये आधुनिक जजिया कर क्या मध्यकालीन शोषण का प्रतीक नहीं है? क्यों दे हिन्दू अपनी आस्था के लिए पैसा? नीतीश कुमार सत्ता के नशे में इतना डूब गए हैं कि गलत सही की समझ खत्म हो गई है लेकिन बिहार की जनता, सरकार की ऐसी मंशा को भली-भांति समझती है।