काशी विश्वनाथ परिसर के शुभारंभ हेतु PM मोदी ने 13 जैसी अशुभ तारीख़ चुनी क्योंकि वो अशुभ नहीं

अंधविश्वास के विरुद्ध नरेंद्र मोदी का अविश्वसनीय प्रहार!

13 अशुभ

‘हर हर महादेव शम्भो, काशी विश्वनाथ गंगे!’

ये संकल्प केवल एक उद्घोष मात्र नहीं, करोड़ों सनातनियों की आस्था और उनके संस्कृति का प्रतीक चिन्ह है। आज इसी के एक और गौरवशाली प्रतिबिंब, काशी विश्वनाथ धाम का पुनरुत्थान सम्पूर्ण हुआ है, जिसके अंतर्गत हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के नए स्वरूप का उद्घाटन करने काशी पहुंचे थे। वहीं, इस उद्घाटन से न केवल पीएम मोदी ने एक नए भारत के उदय का स्पष्ट संदेश दिया, अपितु एक ऐसे भारत से परिचित कराया, जो अनावश्यक अंधविश्वासों में विश्वास नहीं रखता है।  पीएम मोदी ने न केवल काशी विश्वनाथ धाम की गरिमा को पुनर्स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, अपितु पाश्चात्य जगत द्वारा थोपे गए कुरीतियों से नाता तोड़ने की दिशा में भी कदम बढ़ाया है।

वास्तविक संस्कृति की ओर लौट रहा है भारत

हाल ही में, काशी विश्वनाथ के भव्य परिसर का उदघाटन किया गया है, जिसके लिए स्वयं पीएम मोदी वाराणसी आए। उन्होंने न केवल भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई, अपितु काशी विश्वनाथ धाम के वास्तविक निर्माताओं, यानि उसके श्रमिकों और सफाई कर्मचारियों के साथ प्रसाद भी ग्रहण किया।

लिहाजा, पीएम मोदी ने काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन 13 दिसंबर को करके यह सिद्ध किया है कि भारत पाश्चात्य संस्कृति के अनावश्यक कुरीतियों का बोझा ढोता हुआ अब और नहीं चलेगा। अब भारत अपनी वास्तविक संस्कृति को गले लगाएगा और निस्संकोच होकर संसार में अपनी संस्कृति का प्रचार भी करेगा।

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भारत में ’13’ शुभ है या अशुभ?

वहीं, इस पूरे प्रकरण में एक बात पर शायद ही किसी का ध्यान गया होगा कि ये शुभ काम 13 दिसंबर को हुआ। 13 को भारत में अशुभ माना जाता है, और तो और 13 दिसंबर वो दिन है, जब 2001 में लोकतंत्र के आधारस्तम्भ यानि भारतीय संसद पर हथियार सहित आतंकियों ने आक्रमण किया था। इस पूरे प्रकरण में आतंकियों की मौत हुई थी जबकि 5 सुरक्षा कर्मचारी वीरगति को प्राप्त हुए थे परंतु 13 को अशुभ क्यों माना जाता है? इसका वास्तविक कारण क्या है?

दरअसल, 13 को अशुभ ईसाई रीतियों के अनुसार माना जाता है। अंग्रेज़ी में एक प्रचलित कथन भी है, ‘Friday the 13th’, यानि जब 13 तारीख हो और दिन शुक्रवार हो, तो कुछ भी अच्छा नहीं होता। ऐसा अंधविश्वास कोरी बकवास है, जिसका न कोई वैज्ञानिक प्रमाण है और न ही कोई ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य है, परंतु इसे भारत पर ऐसे थोपा गया, मानो 13 से अशुभ कुछ नहीं है इस संसार में।

अगर बात करें, सनातन शास्त्र में 13 का क्या महत्व है? तो इसके सन्दर्भ में सनातन शास्त्र में कहा जाता है कि पाश्चात्य जगत के ठीक उलट 13 भारत में बहुत शुभ अंक है। इस दिन अक्सर महिलायें अपने पति की मंगल कामना के लिए कभी कभी प्रदोष का व्रत भी रखती है। त्रयोदशी का दिन भारतीय पंचांग में बेहद शुभ होता है और इसी दिन कार्तिक मास में धनतेरस का पावन पर्व पड़ता है, जिस दिन से दीपावली के लिए खरीददारी प्रारंभ होती है।

अंधविश्वास से जागृत होने की है आवश्यकता

यदि 13 वास्तव में इतना अशुभ होता, तो फिर 2002 में लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड में खेला जाने वाला त्रिकोणीय क्रिकेट टूर्नामेंट (Natwest Series) भारत के हाथ लगनी ही नहीं चाहिए थी क्योंकि वो भी 13 जुलाई 2002 को ही खेला गया था। लेकिन न केवल भारत ने वो फाइनल जीता अपितु भारतीयों ने सौरव गांगुली की प्रसन्नता का अद्भुत दृश्य भी देखा।

भारतीय हॉकी के लौहस्तम्भ माने जाने बलबीर सिंह दोसांझ, जिन्होंने लगातार तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल भारत को जिताए, वो भी नंबर 13 की जर्सी पहनकर ही खेले। उन्हें जब सुझाव दिया गया कि ये अंक अशुभ है, तो उन्होंने हंसते हुए कहा कि “मैं ऐसे बकवास में नहीं मानता और वैसे भी 13 तो उनके लिए उनके आराध्य, वाहे गुरु का बुलावा समान था।”  हेलसिंकी ओलंपिक में 13 नंबर की जर्सी पहनकर इन्होंने एक के बाद एक पांच गोल किए, उनका रिकॉर्ड आज तक कोई खिलाड़ी नहीं तोड़ पाया है। क्या आप अब भी 13 को अशुभ मानते हैं? अगर हां, तो फिर आपको अंधविश्वास की दुनिया से जागृत होने की आवश्यकता है!

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