रिकी पोंटिंग: टीम इंडिया के सबसे कट्टर विरोधियों में से एक

इनका विवादों से रहा है गहरा नाता!

Ricky Ponting

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अपनी पीढ़ी के सबसे बेहतरीन बल्लेबाजों में से एक रिकी पोंटिंग को ऑस्ट्रेलिया में ब्रैडमैन के बाद सबसे बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में देखा जाता है। उनकी उपलब्धियों को देखा जाए, तो भारत के सचिन तेंदुलकर की तरह ही उन्होंने भी ऑस्ट्रेलिया के लिए हर श्रृंखला में नए रिकॉर्ड बनाए हैं। जब भारतीय टीम सौरव गांगुली के दौर में अपने उत्थान पर थी, तब उस समय ऑस्ट्रेलिया टीम के कप्तान रिकी पोंटिंग ही थे। ऑस्ट्रेलिया की आक्रामक क्रिकेट को भारत ने भी अपनाया और ऑस्ट्रेलिया को उनके ही अंदाज में टक्कर दी। एक तरह से रिकी पोंटिंग को भारत के लिए बेहतरीन प्रतिद्वंदी कहा जाए तो गलत नहीं होगा।

आज रिकी पोंटिंग का जन्मदिन है और एक सेलिब्रिटी की तरह, पोंटिंग का विश्लेषण करते समय दो बातों पर ध्यान देना अति आवश्यक है। पहला आधुनिक बल्लेबाज के रूप में, फिर ऑस्ट्रेलिया के 42वें टेस्ट कप्तान के रूप में। बेहतरीन तकनीक और फ्रंटफुट पर पुल शॉट खेलने वाले पोंटिंग की बल्लेबाजी अपने दौर के खिलाड़ियों में टॉप-3 में जानी जाती थी। वहीं, अगर कप्तानी की बात करें, तो उन्होंने स्टीव वॉ के बाद उस अजेय ऑस्ट्रेलिया टीम का नेतृत्व किया, जिसमें एक से बढ़ कर एक महान मैच विनर मौजूद थे, जिनमें से अधिकतर की आपस में नहीं बनती थी।

महान बल्लेबाजों की श्रेणी में पोंटिंग

बल्लेबाजी में रिकी पोंटिंग की महानता के बारे में कोई संदेह नहीं है। पोंटिंग ने वर्ष 1995 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में प्रवेश किया और दोनों प्रारूपों में पदार्पण किया था। लगातार रन बनाने की क्षमता के कारण वो घरेलू सर्किट में प्रतिष्ठा हासिल कर चुके थे और अधिकतर लोग उनके कौशल से प्रभावित थे। क्रिकेट मैदान में एक बल्लेबाज के रूप में उनका फ्री-स्ट्रोक प्ले, अपनी इच्छा से रन बनाना और विपक्षी गेंदबाजों की धुनाई करना एक दर्शनीय पल होते थे।

वर्ष 2002-2007 तक रिकी पोंटिंग ने सभी प्रारूपों में 41 अंतरराष्ट्रीय शतक जड़े, जो गेंदबाजों पर उनके प्रभुत्व का प्रमाण है। यही नहीं, ऑस्ट्रेलियाई एकदिवसीय क्रिकेट के इतिहास में सभी टेस्ट खेलने वाले देशों के खिलाफ शतक बनाने वाले वो पहले बल्लेबाज भी हैं। वो अपने समय में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षकों में से एक रह चुके हैं। पोंटिंग वर्ष 2003 में विश्व के विजडन लीडिंग क्रिकेटर थे और वर्ष 2006 में उस साल के पांच विजडन क्रिकेटरों में से एक थे। दुनिया में हुक और पुल शॉट्स के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में व्यापक रूप से प्रसिद्ध होने के बावजूद पोंटिंग फ्रंटफुट और बैकफुट दोनों पर समान रूप से कुशल थे।

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कप्तानी में नंबर एक

जब बात कप्तानी की आती है, तो पोंटिंग विश्व से सबसे सफल कप्तानों की सूची में सबसे ऊपर आते हैं। सीमित ओवरों के गौरव के अलावा, स्टीव वॉ द्वारा बनाई गई विरासत को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने ऑस्ट्रेलिया टेस्ट टीम को भी नई ऊंचाई प्रदान की। अपने कप्तानी के पहले तीन वर्षों के लिए तो वह एक सुपरस्टार टीम के कप्तान थे। उस दौरान खिलड़ियों के प्रदर्शन से अधिक उनके बीच अनबन की खबरें सामने आती रहती थी और पोंटिंग को पूरी टीम को साथ में लेकर चलना पड़ता था।

एडम गिलक्रिस्ट और शेन वार्न के बीच की आपसी लड़ाई विश्व विख्यात है। जहां तक शेन वार्न की बात है, तो वो कभी भी विवादों से कतराते नहीं थे। वो अपने पदार्पण के बाद से ही एडम गिलक्रिस्ट की कंपनी को पसंद नहीं करते थे। वार्न ने एक घरेलू मैच में एडम गिलक्रिस्ट का मज़ाक उड़ाया था, उन्हें व्यंग्यात्मक रूप से “गुडी-टू-शूज़” कहा था। हालात बद से बदतर हो गए, जब शेन वार्न की जगह एडम गिलक्रिस्ट को ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम का उप-कप्तान चुना गया। अब जबकि दोनों सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ऐसे में उन्हें फॉक्स स्पोर्ट्स पर अक्सर एक साथ कमेंट्री करते देखा जाता है।

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लेकिन जब इन दोनों खिलाड़ियों के बीच विवाद अपने चरम पर था, उस समय भी इन दोनों को टीम में एक साथ चुन कर पोंटिंग ने टीम के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ने दिया। यही नहीं, ग्लेन मैक्ग्रा जिस स्तर के खिलाड़ी थे उन्हें भी संभालना कठिन था। यह स्वयं रिकी पोंटिंग भी स्वीकार कर चुके हैं। एंड्रयू साइमंड्स की अनुशासनहीनता विश्व विख्यात है। ऐसे खिलाड़ियों के साथ विश्व चैंपियन बनना किसी कप्तान के लिए आसान नहीं है। तीन विश्व कप खिताब के साथ दो चैंपियंस ट्रॉफी खिताब और नंबर-1 टेस्ट रैंकिंग से पता चलता है कि उन्होंने कैसे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी कप्तानी का लोहा मनवाया। उनकी कप्तानी में आस्ट्रेलियाई टीम ने लगातार 2 बार विश्व कप पर कब्जा जमाया था। हालांकि, उनके नेतृत्व में इंग्लैंड में दो और ऑस्ट्रेलिया में एक यानी कुल तीन एशेज हार सबसे कठिन पल थे। यही नहीं, दक्षिण अफ्रीका और भारत में भी उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली थी।

क्रिकेट के Legend

रिकी पोंटिंग ने ऑस्ट्रेलिया को लगातार 26 विश्व कप मैचों में जीत दिलाई। वर्ष 2011 विश्व कप में जब जीत का लय टूटा, तब उन्होंने कप्तानी भी छोड़ दी। आंकड़ों को देखें, तो टेस्ट की कप्तानी में 62.34 का जीत प्रतिशत और एकदिवसीय में 71.62 का जीत प्रतिशत उन्हें एक अलग श्रेणी में खड़ा कर देता है। अपनी संन्यास के समय, पोंटिंग कुल अंतरराष्ट्रीय रनों और शतकों के मामले में सचिन तेंदुलकर के बाद दूसरे स्थान पर थे। ऐसे में उन्हें Legend की उपाधि दी जाए, तो वह भी कम नहीं होगी।

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विवादों से गहरा नाता

बताते चलें कि रिकी पोंटिंग में आक्रामक, मुखर और दबाव की स्थितियों से निपटने के लिए मानसिक रूप से मजबूत एक ठेठ ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी की सभी विशेषता मौजूद थी। यही नहीं, वो जिस ऑस्ट्रेलिया टीम के कप्तान थे, उस टीम को एक साथ लेकर चलना और उसे नई ऊंचाई तक पहुंचाना उनकी महानता को स्थापित करता है। पोंटिंग के बारे में सबसे अच्छा गुण मैच जीतने की उनकी ज्वलंत इच्छा थी।

हालांकि, अनुशासनात्मक मुद्दे पर रिकी शुरू से ही कुख्यात थे और इसी के कारण उन्हें कई बार परेशानी का सामना भी करना पड़ा था। कई बार हताशा के कारण वो कुख्यात और विवादित घटनाओं में संलिप्त रहे हैं। वर्ष 2006 की शुरुआत में, चैपल-हेडली ट्रॉफी में पोंटिंग का अंपायर बिली बोडेन के साथ एक नो-बॉल का संकेत देने को लेकर उनकी बहस हो गयी थी। यही नहीं, वर्ष 2006 के मध्य में बांग्लादेश के दौरे के दौरान, पोंटिंग पर अंपायरों को परेशान करने का आरोप लगाया गया था। भारत के साथ वर्ष 2008 में सिडनी टेस्ट के दौरान हुए विवाद के कारण आज भी रिकी पोंटिंग को विलेन माना जाता है। जिस प्रकार से पोंटिंग के नेतृत्व में पूरी ऑस्ट्रेलिया की टीम ने क्रिकेट खेला, आज भी विश्व क्रिकेट में उसकी आलोचना की जाती है।

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