सविमय अवज्ञा आंदोलन – Savinay Avagya Andolan Information in Hindi
12 मार्च 1930 में साबरमती आश्रम से महात्मा गाँधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Savinay Avagya Andolan) की शुरुआत की गयी थी। गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 241 मील दूर स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की थी। जिसका प्रारंभ गाँधी जी के प्रसिद्ध दांडी मार्च से हुआ| जिसका उद्देश्य कुछ विशिष्ट प्रकार के ग़ैर-क़ानूनी कार्य सामूहिक रूप से करके ब्रिटिश सरकार को झुका देना था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत नमक कानून के उल्लंघन से हुई. उन्होंने समुद्र तट के एक गाँव दांडी जाकर नमक कानून को तोड़ा. जिससे सारा देश जाग उठा. हर आदमी गाँधीजी के नेतृत्व की राह देख रहा था.
यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध चलाये गय़े आन्दोलनो में से एक था। 1929 ई. तक भारत को ब्रिटेन के इरादों पर शक होने लगा था. 1930 ई. तक कांग्रेस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सरकार से कई माँगें कीं, लेकिन कांग्रेस की सभी माँगें सरकार द्वारा ठुकरा दी जाती थीं. जनता के मन में यह बात घर कर गई थी कि सरकार को कुछ करने के लिए मजबूर किया ही जाना चाहिए.
ब्रिटिश सरकार ने नेहरु रिपोर्ट को भी अस्वीकृत कर भारतीयों को क्रुद्ध कर दिया था. अंततः 1930 ई. में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने महात्मा गाँधी को Savinay Avagya Andolan चलाने का अधिकार प्रदान किया.
ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर नमक पर आबकारी कर लगा देने से उसके खजाने में बहुत अधिक इजाफा होने लगा. वहीं सरकार के पास नमक बनाने का एकाधिकार भी था. गाँधीजी का ध्येय था नमक-कर पर जोरदार वार करना और इस अनावश्यक कानून को ध्वस्त कर देना. 2 मार्च, 1930 को गाँधीजी ने नए वायसराय लॉर्ड इरविन को ब्रिटिश राज में भारत की खेदजनक दशा के बारे में एक लम्बा पत्र भी लिखा, पर उन्हें उस पत्र का कोई जवाब नहीं मिला.
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गाँधीजी ने 6 अप्रैल को नमक उठाकर कानून तोड़ा. सारे देश के समक्ष उन्होंने Savinay Avagya Andolan प्रस्तुत किया –
1. गांधी जी ने कहा कि गाँव-गाँव को नमक बनाने के लिए निकल पड़ना चाहिए.
2. बहनों को शराब, अफीम और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देना चाहिए.
3. विदेशी वस्त्रों को जला देना चाहिए उनका त्याग कर देना चहिए
4. छात्रों को स्कूलों का त्याग करना चाहिए.
5. सरकारी नौकरों को अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे देना चाहिए. 4 मई, 1930 ई. को गाँधीजी की गिरफ्तारी के बाद कर बंदी को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया.
सुभाष चन्द्र बोस ने दांडी मार्च तुलना नेपोलियन के एल्बा से लौटने पर पेरिस यात्रा से की। ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सख़्त क़दम उठाये और गांधी जी सहित अनेक कांग्रेसी नेताओं व उनके समर्थकों को जेल में डाल दिया। आन्दोलनकारियों और सरकारी सिपाहियों के बीच जगह-जगह ज़बर्दस्त संघर्ष हुए। शोलापुर जैसे स्थानों पर औद्योगिक उपद्रव और कानपुर जैसे नगरों में साम्प्रदायिक दंगे भड़क उठे।
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1932 ई. आंदोलन
इस कार्रवाई से 1932 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Savinay Avagya Andolan) फिर से भड़क उठा। क्योंकि गोलमेज सम्मेलन का यह अधिवेशन भारतीयों के लिए निराशा के साथ समाप्त हुआ। इंग्लैण्ड से लौटने के बाद तीन हफ्तों के अन्दर ही गांधी जी को गिरफ़्तार कर लिया गया और कांग्रेस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। यह सब देख आन्दोलन में भाग लेने के लिए हज़ारों लोग फिर से निकल पड़े, पर इस बार ब्रिटिश सरकार ने Savinay Avagya Andolan के इस दूसरे चरण को बर्बरतापूर्वक कुचल दिया।
आन्दोलन तो कुचल दिया गया, लेकिन उसके पीछे छिपी विद्रोह की भावना जीवित रही, जो 1942 ई. में तीसरी बार फिर से भड़क उठी। इस आंदोलन में गांधी जी ने इस बार ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध ‘भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ा। जिसमें गांधी जी सहित कांग्रेस कार्यसमिति के सभी सदस्यों को क़ैद कर लिया। जिससे देश में हिंसक आन्दोलन भड़क उठा। पर इस बार इसने ब्रिटिश सरकार को यह दिखा दिया कि भारत की जनता अब उसकी सत्ता को ठुकराने और उसकी अवज्ञा के लिए कमर कस चुकी है ।जिसका परिणाम यह रहा कि उसके ठीक पाँच वर्षों के बाद अगस्त, 1947 ई. में ब्रिटेन को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
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