राजनीति में कुर्सी एक बहुत बड़ी कमजोरी है। इसमें आदर्श और वसूल जैसा कुछ नहीं होता है। आज जो आपका पराया है, वो कल आपका सगा हो सकता है। यह भारतीय लोकतंत्र की समस्या है। इससे भी ज्यादा दुःखद यह है कि एक पार्टी को, कैसे अपने ही विचारों को बदलना पड़ता है और वह इसलिए क्योंकि उसे सत्ता में बने रहना है।शिवसेना एक ऐसी ही पार्टी है। स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना एक आग थी। उनके बेटे द्वारा सत्ता संभालते ही पार्टी ने भाजपा के साथ पहले गठबंधन तोड़ा, फिर काँग्रेस के साथ गठबंधन किया और आज उसी शिवसेना ने महान वीर सावरकर की तुलना जावेद अख्तर से कर दी है।
जावेद अख्तर ने फिर रोया ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का रोना
हर मुद्दे पर मुखर राय रखने वाले जावेद अख्तर ने नासिक में साहित्य सम्मेलन के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी पर अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान उन्होंने अभिव्यक्ति के क्षेत्र में लेखकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला और उनके सम्भावित समाधानों को बताया है।
इसके अलावा उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने वाले लेखकों से अभिव्यक्ति की मशाल को आगे बढ़ाने का आह्वान भी किया और उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ आज खतरे में है। यह वहीं रोना है जो पिछले कई वर्षों से गाया जा रहा है।
आगे जावेद ने बताया कि कई पत्रकारों को दबाया जा रहा है। कमल कार्यकर्ताओं की कलम गुलाम हो गई है। कई मीडिया संगठनों को बंद कर दिया गया है और बाकी पत्रकार संगठन दबाव में काम करने को मजबूर हैं और यह आश्चर्य की बात है कि हमारे समाज में कुछ लोग इस दबाव प्रणाली के नाम पर प्रशंसा के शब्द पढ़ते हैं। वह खुद भी कई बार प्रेशर मैकेनिज्म के शिकार हो चुके हैं, जिसका दर्द उनकी जुबान पर साफ नजर आ रहा है।
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मतलब वही असहिष्णुता और भीड़तंत्र का रोना शुरू किया गया। ये तो खैर एक व्यक्ति की बात है। जावेद की बातों को एक अप्रत्याशित रूप से सहारा मिला और वह समर्थन दिया शिवसेना ने।
सामना ने की वीर सावरकर से तुलना
अपने बयानों को प्रकाशित करते हुए ‘सामना’ ने अपने लेख में शिवसेना ने जावेद अख्तर के लिए प्रशंसा का पुल बना दिया। ‘सामना’ ने जावेद अख्तर के संदर्भ में लिखा कि वह मुखर किस्म के व्यक्ति हैं। आपको बता दें कि जावेद अख्तर ने अपनी कांफ्रेंस में कहा था कि, ”जो बोलने से डरता है, तुम वो बात लिखो, इतना अंधेरा था और रात पहले कभी नहीं लिखी।”
सामना ने जावेद अख्तर के इस संबोधन को वीर सावरकर को सच्ची श्रद्धांजलि बताया है। स्वतंत्रता से पहले वीर सावरकर के उद्धरणों का उल्लेख किया गया है।
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सामना में लिखा है कि जावेद अख्तर आज भी उसी तरह से आगे चल रहे हैं। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह वही सामना है जिसने जावेद की RSS और विश्व हिंदू परिषद की तालिबानियों से तुलना करने के लिए आलोचना की थी और आज वही सामना उनका गुणगान कर रहा है।
आपको बताते चलें कि गीतकार कवि जावेद अख्तर अपने टिप्पणियों के लिए शिवसेना और विहिप के निशाने पर आ गए थे। उनके हिसाब से तालिबान के साथ RSS और अन्य दक्षिणपंथी संगठनों की तुलना होती है।
जावेद अख्तर ने उस समय बयान दिया था, “तालिबान एक इस्लामी देश चाहता है। ये लोग एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं,” उन्होने RSS का नाम लिए बिना यह कहा था।
इतनी नफरत होने के बाद भी सामना ने जावेद अख्तर की तुलना सावरकर से कर दी है। मतलब सावरकर और जावेद लिखते हैं तो एक जैसे हैं? यह तुलना निंदनीय है। यह तुष्टिकरण के राजनीति की पराकाष्ठा है। यह कहीं नहीं होना चाहिए। एक व्यक्ति ने अपने वामपंथ के प्यार को बताया और दूसरा एक घोषित दक्षिणपंथी उन्हीं की तारीफ में लग गया। यह हो इसलिए रहा है क्योंकि शिवसेना को सत्ता का नशा चढ़ गया है और यह तुष्टिकरण उनके हो रहे विनाश की एक निशानी है।