Shri Sheetla Mata Chalisa Chaupai, शीतला अष्टमी का महत्व एवं पूजा विधि

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Shri Sheetla Mata Chalisa

Shri Sheetla Mata Chalisa Doha 

जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान. होयबिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान।।
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार. शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।।

Shri Sheetla Mata Chalisa Chaupai 1-5 

जय जय श्री शीतला भवानी। जय जग जननि सकल गुणधानी।।

गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती। पूरन शरन चंद्रसा साजती।।

विस्फोटक सी जलत शरीरा। शीतल करत हरत सब पीड़ा।।

मात शीतला तव शुभनामा। सबके काहे आवही कामा।।

 

शोक हरी शंकरी भवानी। बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।

सूचि बार्जनी कलश कर राजै। मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।

चौसट योगिन संग दे दावै। पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।

नंदिनाथ भय रो चिकरावै। सहस शेष शिर पार ना पावै।।

 

धन्य धन्य भात्री महारानी। सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।।

ज्वाला रूप महाबल कारी। दैत्य एक विश्फोटक भारी।।

हर हर प्रविशत कोई दान क्षत। रोग रूप धरी बालक भक्षक।।

हाहाकार मचो जग भारी। सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।

 

तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा। कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।

विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो। मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।

बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा। मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।

अब नही मातु काहू गृह जै हो। जह अपवित्र वही घर रहि हो।।

 

पूजन पाठ मातु जब करी है। भय आनंद सकल दुःख हरी है।।

अब भगतन शीतल भय जै हे। विस्फोटक भय घोर न सै हे।।

श्री शीतल ही बचे कल्याना। बचन सत्य भाषे भगवाना।।

कलश शीतलाका करवावै। वृजसे विधीवत पाठ करावै।।

Shri Sheetla Mata Chalisa Chaupai 5-10

विस्फोटक भय गृह गृह भाई। भजे तेरी सह यही उपाई।।

तुमही शीतला जगकी माता। तुमही पिता जग के सुखदाता।।

तुमही जगका अतिसुख सेवी। नमो नमामी शीतले देवी।।

नमो सूर्य करवी दुख हरणी। नमो नमो जग तारिणी धरणी।।

 

नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी। दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।

श्री शीतला शेखला बहला। गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।

मात शीतला तुम धनुधारी। शोभित पंचनाम असवारी।।

राघव खर बैसाख सुनंदन। कर भग दुरवा कंत निकंदन।।

 

सुनी रत संग शीतला माई। चाही सकल सुख दूर धुराई।।

कलका गन गंगा किछु होई। जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।

हेत मातजी का आराधन। और नही है कोई साधन।।

निश्चय मातु शरण जो आवै। निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।

 

कोढी निर्मल काया धारे। अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।

बंधा नारी पुत्रको पावे। जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।

सुंदरदास नाम गुण गावत। लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।

या दे कोई करे यदी शंका। जग दे मैंय्या काही डंका।।

 

कहत राम सुंदर प्रभुदासा। तट प्रयागसे पूरब पासा।।

ग्राम तिवारी पूर मम बासा। प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।

अब विलंब भय मोही पुकारत। मातृ कृपाकी बाट निहारत।।

बड़ा द्वार सब आस लगाई। अब सुधि लेत शीतला माई।।

 

यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय। सपनें दुख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।

बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू। जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।

 

॥ इतिश्री शीतला माता चालीसा समाप्त॥

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Shri Sheetla Mata Chalisa significance in Hindi

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होली के ठीक आठ दिन बाद ये पर्व मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महाशक्ति के मुख्य स्वरूप शीतला माता की पूजा होती है.साथ ही साथ व्रत आदि भी किया जाता है. प्राचीन काल से ही इनकी अधिक महिमा मानी जाती हैं. स्कंद पुराण में माता शीतला का वर्णन है, जिसमें उन्हें चेचक जैसे रोगों की देवी बताया गया है. उनके स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया गया है कि माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं.

जो सुख समृद्धि और शांति का प्रतीक मानी जाती है. इनकी पूजा से जातक को तमाम तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है. वे गर्दभ की सवारी किए हुए हैं. शीतला माता के साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं. इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणुनाशक जल है. शीतला अष्टमी दो दिन मनाई जाती है कहीं पर लोग सप्तमी के दिन तो कहीं अष्टमी के दिन मनाते है. इसे बूढ़ा बसोड़ा या लसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है.

इनकी पूजा का शुभ मुहूर्त, इन्हें चढ़ाया जाने वाला बसोड़े का प्रसाद तथा अन्य कई महत्वपूर्ण बातें. आज हम इसी कड़ी को आपको बताएंगें. शीतला अष्टमी के साथ-साथ शीतला सप्तमी के दिन इन्हें प्रसन्न करने के लिए किया जाने वाला चालीसा का पाठ. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इससे शीतला माता प्रसन्न तो होती ही हैं, साथ ही साथ जातक को आरोग्य और धन का वरदान प्रदान करती हैं.

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बसोडा का महत्व

भगवती शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है. शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं. शीतला अष्टमी पर महिलाएं भोजन नहीं पकाती है बल्कि शीतला अष्टमी के एक दिन पहले भोजन पका लेती हैं. शीतला अष्टमी पर माता को प्रसाद चढ़ाया जाता है.

बसोड़ा वाले दिन पर घर के सभी सदस्य साथ में मिलकर बासी भोजन करते हैं.लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं. इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए.

क्या है पूजन विधि

शीतला माता की पूजा अर्चना करने के लिए प्रातः सुर्योदय से उठ जाना चाहिए और स्नान कर लेना चाहिए. व्रत का संकल्प लेकर शीतला माता का स्मरण करना चाहिए और शीतलाष्टक का पाठ करना चाहिए. जो प्रसाद आपने बनाया है उसे देवी-देवताओं को चढ़ाना चाहिए.प्रसाद में दही, राबड़ी, गुड़ और कई अन्य आवश्यक वस्तुओं को शामिल करें. पूजा अर्चना करने के बाद भक्त बुजुर्ग लोगों से दिव्य आशीर्वाद लेते हैं. वहीं निर्धन लोग दान-पुण्य का कार्य करें और शाम को पूजा के बाद व्रत खोलें.

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