पश्चिम बंगाल देश का ऐसा सूबा जहां से वामपंथ विचारधारा का उदय हुआ। पश्चिम बंगाल पिछले कुछ वर्षों से अपनी राजनीतक माहौल के लिए चर्चाओं में रहा है। वर्तमान में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर धार्मिक ध्रुवीकरण का आरोप लगता आया है। इस साल की शुरुआत में जब पश्चिम बंगाल का विधान सभा चुनाव चल रहा था तो केंद्र की भाजपा सरकार ने बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों को लेकर ममता बनर्जी पर ताबड़तोड़ राजनितिक हमला किया था और यही नहीं भाजपा ने ममता को हिन्दुओं से ज्यादा मुसलमानों का हितैसी बताया था।
ममता बनर्जी राजनीति का वो चेहरा है जिनका पूरा राजनितिक जीवन विवादों में रहा है। ममता बनर्जी ने जब से 2021 बंगाल विधान सभा चुनाव में अपने मुख्य प्रतिद्वंदी भाजपा को हराया है, तभी से वो केंद्र की सत्ता पर काबिज़ होने का सपना देखने लगी हैं। पिछले कुछ वर्षों से गुजरातियों को भला बूरा कहने वाली ममता बनर्जी आज उन्हीं गुजराती उद्योगपति गौतम अडानी से मुलाक़ात कर पश्चिम बंगाल के औद्योगिक विकास की बात कर रहीं हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वहीं ममता बनर्जी हैं जिन्होंने सिंगूर में टाटा के फैक्ट्री के खिलाफ आंदोलन किया था।
‘Socialist’ ममता मिल रही हैं ‘Capitalist’ अडानी से
दरअसल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को कोलकाता में राज्य सचिवालय ‘नबन्ना’ में उद्योगपति गौतम अडानी से मुलाकात की। दोनों ने पश्चिम बंगाल में अडानी ग्रुप के निवेश विकल्पों पर चर्चा की। गौतम अडानी ने अपनी इस मुलाक़ात को लेकर पुष्टि की कि वह अगले साल अप्रैल में बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में भाग लेंगे। उन्होंने आगे अपने वक्तव्य में कहा कि वह ममता बनर्जी से मिलकर और विभिन्न निवेश पर चर्चा की है।
https://twitter.com/gautam_adani/status/1466409022970499073?s=20
लेकिन अब आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं जब ममता बनर्जी ने गुजरातियों को लेकर बहुत बार नकारात्मक टिप्पणी की थी। यही नहीं उन्होंने पश्चिम बंगाल के सिंगूर से टाटा मोटर्स का नैनो प्लांट को बहार कर दिया था जिसके बाद टाटा मोटर्स ने अपने निवेश को गुजरात में स्थानांतरित कर दिया। पश्चिम बंगाल चुनावों से पहले, प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, दोनों गुजरातियों पर हमला करने के लिए, ममता बनर्जी ने क्षेत्रवाद और संप्रदायवाद को बढ़ावा दिया और गुजरातियों के खिलाफ घृणा का स्पष्ट प्रदर्शन किया। ममता बनर्जी ने अपने राज्य को गुजरात नहीं बनने देने की कसम खाई थी। पश्चिम बंगाल के सीएम ने जोर देकर कहा था, ”हम बंगाल को गुजरात जैसा नहीं बनने देंगे।”
Gujaratis are trying to capture Bengal by bringing goons from UP and Bihar. We will not allow Bengal to become like Gujarat. BJP tries to create communal disturbance: West Bengal CM & TMC chief Mamata Banerjee in Howrah pic.twitter.com/nd8TfiYaS3
— ANI (@ANI) April 4, 2021
पश्चिम बंगाल से टाटा मोटर्स का प्लांट अहमदाबाद के साणंद में कैसे और क्यों आया?
मूल रूप से टाटा नैनो कार पश्चिम बंगाल के सिंगुर में निर्मित होने वाली थी लेकिन, प्लांट के लिए जमीन अधिग्रहण में कंपनी को किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा। मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया। इसी दौरान इस प्लांट को लेकर वहां छोटे-मोटे आंदोलन होने लगे, जिसका बड़ा चेहरा बनी ममता बनर्जी। सिंगूर में Tata के प्लांट लगाने को लेकर ममता बनर्जी धरने पर बैठ गईं। इसके बाद टाटा को गुजरात में सानंद में इसका प्लांट लगाने का फैसला लेना पड़ा।
ममता बनर्जी विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहीं थी और उन्होंने “खेत बचाओ” नामक एक आंदोलन शुरू किया। जल्द ही, मेधा पाटकर, अरुंधति रॉय और अनुराधा तलवार जैसे हाई-प्रोफाइल पेशेवर प्रदर्शनकारी टाटा मोटर्स को राज्य से खदेड़ने के विरोध में शामिल हो गए। हंगामे के बाद, टाटा मोटर्स ने अंततः सितंबर 2008 में पश्चिम बंगाल में परियोजना को रद्द करने का फैसला किया और गुजरात के साणंद में इसके लिए प्रक्रिया शुरू की। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
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हालांकि, वर्षों बाद विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले स्थानीय लोगों ने उसी के बारे में खेद व्यक्त किया। उनमें से एक ने कहा था, “हमें आंदोलन से कुछ नहीं मिला। हमें इस्तेमाल किया गया और बाद में राजनीतिक दलों द्वारा अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए खुद को बचाने के लिए हमें बलि का बकरा बनाया गया। इसके बाद से हीं इस क्षेत्र में कोई उद्योग नहीं आया और न ही 2016 में हमें जो जमीन लौटाई गई, वह खेती योग्य है। हम अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं।”
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने टाटा मोटर्स को न केवल आकर्षक दरों पर एक विशाल, अत्याधुनिक निर्माण कारखाना बनाने का आश्वासन दिया था, उनकी सरकार ने यह भी सुनिश्चित किया था कि संयंत्र का निर्माण हो और जल्द ही निर्माण शुरू हो जाए।
जब वर्ष 2011 में ममता बनर्जी कम्युनिस्ट पार्टी को हटाकर खुद सत्ता में आई थीं, तब उनसे उम्मीद की गयी थी कि वे राज्य को प्रगति की ओर ले जाएंगी। परंतु ममता बनर्जी ने सभी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए एक -एक कर के असंख्य कंपनियों को पश्चिम बंगाल से बाहर भागने पर मजबूर कर दिया। जैसे कि- टाटा मोटर्स, Dunlop इंडिया Ltd, शाहगंज प्लांट और हिंदुस्तान मोटर्स। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद 97 प्रतिशत कंपनियाँ पश्चिम बंगाल छोड़ चुकी हैं।
समाजवाद की आग में कारखानों को जलाने के बाद ममता बनर्जी जिस तरह से पूंजीवादी अडानी के साथ अपनी तालमेल बढ़ा रही हैं उस बात से यह तय हो गया है कि उद्योगपतियों के सहारे अब उनकी केंद्र की राजनितिक महत्वकांक्षा उफान मार रही है और वो देशव्यापी नेता बनने का सपना पाले बैठे हुई है।