भारत में गणित का इतिहास पूरवर्ती काल से जुड़ा हुआ है। प्राचीन भारत की सबसे प्राचीन ज्ञात गणित की खोज लगभग 3000-3200 ई. पू. में हुई थी। भारत में गणित की खोज और उसे वृहत स्वरुप देने में पहले आर्यभट्ट, दूसरे ब्रम्हगुप्त और तीसरे स्थान पर श्रीनिवास रामानुजन का नाम आता है। आधुनिक गणित के महानतम विचारक रहे श्रीनिवास रामानुजन एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने अपने कार्यों से अपने संक्षिप्त जीवन को बड़ा बना दिया। केवल 32 वर्ष की आयु में इन्होंने अपना शरीर त्याग दिया, परंतु अपने कार्यों से इन्होंने सम्पूर्ण संसार पर अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने भारत के गणित धन को न केवल संसार से परिचित कराया, अपितु हमारी संस्कृति के गौरव को भी अक्षुण्ण रखा। श्रीनिवास रामानुजन अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे।
रामानुजन का प्रारंभिक जीवन और उनकी उपलब्धियां
22 दिसंबर 1887 को तत्कालीन मद्रास प्रेज़िडेन्सी के ईरोड में जन्म लेने वाले श्रीनिवास कुंभकोणम में पले बढ़े। धर्म शास्त्रों से उनका बचपन से ही बहुत लगाव था, परंतु वे उतना ही विज्ञान और गणित से भी जुड़े थे। गणित उनके लिए साधना समान थी। उदाहरण के लिए वह जब केवल 13 वर्ष के थे, तो वह प्रसिद्ध त्रिकोणमिति [Trigonometry] विशेषज्ञ S L Loney के पुस्तक को पारंगत कर चुके थे। वह अपने विद्यालय के उन 1200 विद्यार्थियों की विभागों के आवंटन में भी सहायता करते थे, जिसमें बड़े से बड़े विद्वान फेल हो जाते थे। अगर 2 घंटे का गणित का पेपर होता, तो वे केवल एक घंटे में उसे पूरा कर लेते थे।
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उनके किशोरावस्था में पहुंचने तक उन्होंने Cubic equations, geometry aur Infinite Series को कुशलता से हल करने में निपुणता हासिल कर ली थी और उन्होंने Quintic जैसे असाध्य फार्मूला को भी हल करने की कोशिश कर की। उन्होंने Quartic function को सुलझाने के लिए अपना अनोखा फॉर्मूला तैयार किया। परंतु श्रीनिवास रामानुजन केवल उतने पे नहीं रुके। उन्होंने अपने विचारों, विशेषकर नंबर थ्योरी, Infinite Number सीरीज़, Continued Fractions इत्यादि पर अपने अनोखे अनुसंधान से सबको चकित कर दिया।
उनके प्रतिभा से अभिभूत होकर GH Hardy ने उन्हें England के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आमंत्रित किया परंतु प्रारंभ में उन्होंने मना कर दिया क्योंकि उनके लिए अपने संस्कृति का परित्याग करना अशोभनीय था। वे अपने हर सफलता का श्रेय अपनी कुलदेवी और महालक्ष्मी की स्वरूप, नमक्कल की माँ नमागिरी थायर को देते थे। नामगिरी देवी रामानुजन के परिवार की ईष्ट देवी थी। उनका कहना था कि “मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है, जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।” अपने जीवन में रामानुजन ने निम्नलिखित सूत्र प्रतिपादित किया-
श्रीनिवास रामानुजन के आदर्शों को करें आत्मसात
एक व्यक्ति जो देश की संस्कृति और शैक्षणिक तंत्र को नित-नए आयाम तक पंहुचा रहा था, वह बहुत जल्द ही 26 अप्रैल 1920 को इस संसार को अलविदा कह गया। इससे भी बड़े दुर्भाग्य की बात तो यह है कि इस महापुरुष की गौरव गाथा हमारे देश में नहीं, अपितु Hollywood से सुनने को मिली। श्रीनिवास रामानुजन का सर्वप्रथम उल्लेख ‘Goodwill Hunting’ में हुआ, जहां उनकी प्रतिभा के बारे में Matt Damon के किरदार को Robin Williams ने बड़े गर्व से बताया और फिर 2015 में ‘The Man Who Knew Infinity’ में उनकी महिमा का वर्णन किया गया। ऐसे में एक प्रश्न उठाना लाजमी है कि क्या हमारी फिल्म इंडस्ट्री इतनी हीन है कि फिल्मों के माध्यम से उन्हें एक योग्य श्रद्धांजलि भी नहीं दे सकता? इस पर विचार करने की आवश्यकता है।
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वहीं, हाल ही में गुजरात सरकार ने एक ऐसा कार्य किया है, जो श्रीनिवास रामानुजन के आदर्शों को आत्मसात करता है। गुजरात सरकार ने अगले सत्र के लिए कक्षा छह से कक्षा दस के लोगों के लिए वैदिक गणित को पढ़ाने का निर्णय किया है। ऐसे में, यदि आपको प्रगतिशील कहलाना है, तो अपनी संस्कृति का परित्याग करना होगा। नवनिर्माण ही प्रगति का सार माना जाता है। परंतु भारत में नवनिर्माण कभी भी हमारी रीति नहीं है। समय के साथ बदलना और पुनर्निर्माण को बढ़ावा देना हमारी संस्कृति का मूल आधार है और इसी संस्कृति का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है श्रीनिवास रामानुजन, जिनके जन्मदिवस पर हमारे देश में ‘राष्ट्रीय गणित दिवस’ भी मनाया जाता है।