देश में कृषि कानून को लेकर पिछले एक वर्ष से दिल्ली की सीमाओं पर तथाकथित किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कृषि कानून के लिए किसानों के अनैतिक प्रदर्शन को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को राष्ट्र के नाम संबोधन में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करते हुए कहा था कि “इस कृषि कानून को बनाने का उद्देश्य देश के छोटे किसानों को मजबूत करना था लेकिन किसानों को लाभ समझाने के कई प्रयासों के बावजूद, हम असफल रहे हैं।”
साथ ही, पीएम मोदी ने किसानों से वापस घर लौट जाने की अपील की। लगभग तीन हफ्ते और संसद द्वारा आधिकारिक तौर पर कृषि कानून निरस्त करने के कुछ दिनों के बाद, विरोध करने वाले किसानों ने बीते गुरुवार को दिल्ली की सिंघू बॉर्डर पर अपने साल भर के आंदोलन को ख़त्म करने की घोषणा कर दी है।
किसान आंदोलन तो नकली किसानों और देश विरोधियों का जमावड़ा था
दरअसल, इस साल 26 जनवरी 2021 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों के भेष में छुपे खालिस्तानियों ने लाल किला के परिषर में घुस कर भारतीय तिरंगा का अपमान करते हुए धार्मिक झंडा फहराया। हालांकि, यह सब किया-धरा खालिस्तानियों का था। तथाकथित किसान का भयावह रूप तब दिखा जब पूरे विरोध के दौरान, खालिस्तानी नारे लगाए गए और हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ टिप्पणियां की गईं। गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम के लिए SFJ (सिख फॉर जस्टिस ) ने मांग की थी कि गणतंत्र दिवस पर इंडिया गेट पर खालिस्तानी झंडे फहराए जाएं। उन्होंने किसानों से गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान जरनैल सिंह भिंडरावाले और बेअंत सिंह समेत अन्य खालिस्तानियों से आदमकद चित्रों को प्रदर्शित करने का भी आग्रह किया था। यह घटना भारतीय गणराज्य के कुछ सबसे काले क्षणों की याद दिलाती हैं और पुलिस कर्मियों पर हमला करने के दृश्य वास्तव में परेशान करने वाले थे।
देशविरोधी ताकतों पर लगाम लगाना आवश्यक है!
लाल किले पर धार्मिक ध्वज फहराने को लेकर खालिस्तानी संगठन द्वारा पुरस्कारों की भी घोषणा की गई थी। वहीं, इस 26 जनवरी में सबसे बड़ा उन्माद फ़ैलाने का आरोप जिसपर लगा था वह दीप सिद्धू था, जिन्हें विपक्ष द्वारा किसान नेता के रूप में सम्मानित किया गया था पर वह एक घोषित खालिस्तानी था। किसान आंदोलन से सबसे बड़ा नाम जो सामने आया वह थे राकेश टिकैत। राकेश टिकैत पर किसान आंदोलन में खालिस्तानी समर्थकों और देश विरोधी लोगों को शामिल करने का आरोप है। वहीं, खालिस्तानी गतिविधि को लेकर टिकैत की चुप्पी उनकी कुंठित और संकीर्ण मानसिकता को दर्शाती है कि वो खालिस्तान विचारधारा से बच नहीं सके।
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गौरतलब है कि किसान आंदोलन के दौरान विपक्षी दलों के आचरण से यह बात सामने आई कि भारतीय लोकतंत्र के लिए उनका कितना कम सम्मान है। किसानों की भीड़ ने भारत की लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को कमजोर करने का फैसला की भरपूर कोशिश की। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के प्रति अपनी सद्भावना दिखाते हुए तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया, जिसके बाद से यह प्रदर्शनकारी किसान अब घर वापसी कर रहें हैं और वहीं दिल्ली-हरियाणा स्थित सिंघू में किसानों ने अपने धरना-स्थल से धीरे- धीरे हटाना शुरू कर दिया है। ऐसे में, सरकार द्वारा किसानों के पक्ष में लिया गया निर्णय सराहनीय हैं किंतु इस आंदोलन से एक बात स्पष्ट है कि देशविरोधी ताकतों का दायरा बढ़ रहा है और इसपर लगाम लगाना आवश्यक है।