गुरुग्राम में खुले में नमाज को लेकर चल रहे विवाद पर वैश्विक मीडिया की भ्रामक रिपोर्टिंग पुनः देखने को मिली है। एक तो मुस्लिम भीड़ द्वारा सार्वजनिक स्थानों पर जबरन कब्जा करके वहां नमाज पढ़ी जा रही है, वहीं दूसरी ओर जब हिंदुओं द्वारा इसका विरोध हो रहा है, तो इसे वैश्विक स्तर पर हिंदुओं के विरुद्ध ही प्रचार के लिए प्रयोग किया जा रहा है। ब्रिटिश अखबार द गार्जियन ने गुरुग्राम के विवाद पर एक लेख छापा है, जिसका शीर्षक ‛नया शहर, पुराना विवाद: हिंदू समूहों ने गुड़गांव के मुस्लिम प्रार्थना स्थलों को निशाना बनाया’ है।
‛Nowhere left to Pray’ की डफली पीटते इस लेख में बताया गया है कि हिंदू समूहों द्वारा मुस्लिम समुदाय को नमाज के लिए कोई स्थान नहीं दिया जा रहा है। लेख कहता है कि गुरुग्राम में काम करने वाले मुसलमानों के पास नमाज के लिए पर्याप्त मस्जिद मौजूद नही हैं, इसलिए उन्हें मजबूरी में खुले में नमाज करना पड़ रहा है। सार्वजनिक स्थानों के लिए ‛मुस्लिम स्पेस’ शब्द का प्रयोग स्वयं ही बताता है कि लेख कितना पक्षपातपूर्ण है। सिर्फ इसलिए कि किसी सार्वजनिक जगह पर मुसलमानों ने नमाज पढ़ना शुरू कर दिया, उसे मुसलमानों का स्थान कैसे स्वीकार किया जा सकता है।
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सुन्नी वक्फ बोर्ड के बाद काफी जमीन, फिर भी हालात…
लेख में बताया गया है कि साल 2018 में 108 स्थानों पर नमाज के लिए प्रशासनिक अनुमति दी गई थी और तभी से हिंदू समुदाय इसका विरोध कर रहा है। जबकि वास्तविकता यह है कि नमाज की अनुमति अस्थाई रूप से दी गई थी और मुसलमानों द्वारा पिछले 3 वर्षों में इसे स्थाई प्रक्रिया का हिस्सा बना लिया गया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड, भारत में सैन्य सेवाओं और रेलवे के बाद भूमि के मामले में तीसरी सबसे बड़ी संस्था है। इसके अलावा तमाम मुस्लिम NGO विदेशों से आर्थिक सहायता प्राप्त करते हैं। इन सबके बाद भी 3 वर्षों में मुसलमानों को अपने लिए मस्जिद बनाने हेतु पर्याप्त भूमि और संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाए यह कैसे माना जा सकता है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सार्वजनिक स्थान पर नमाज की अनुमति देने का अधिकार सरकार को भी नहीं होना चाहिए। भारत का संविधान धार्मिक मामलों को व्यक्तिगत मानता है और इसमें सरकार का किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होता, जब तक कि वह हस्तक्षेप सार्वजनिक हित में ना हो। अब यदि खेलने और टहलने के लिए बनाए गए पार्क में नमाज पढ़ी जा रही है, तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इसे रोके। क्योंकि सार्वजनिक स्थल किसी एक संप्रदाय की संपत्ति नहीं है। सवाल यह भी है कि अगर किसी सार्वजनिक भवन में मंदिर स्थापित करके पूजा पाठ शुरू होगा तो क्या उसे भी सरकारी संरक्षण मिलेगा?
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मेवात में घुसने से डरती है पुलिस!
यह तो केवल कुछ ही तार्किक आधार हैं, जिन पर सार्वजनिक नमाज का खंडन किया जा सकता है। सत्य तो यह है कि भारत की बहुसंख्यक जनता अल्पसंख्यक समुदाय की विस्तारवादी नीतियों से भयभीत है! आप इस सत्य को स्वीकार करें या ना करें पर स्थिति कुछ ऐसी ही है। कश्मीर से लेकर बंगाल तक, पाकिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक क्या हो रहा है, यह लिखने की आवश्यकता नहीं रह गई है। स्थानों के नाम सुनकर ही वहां के हालात की कल्पना की जा सकती है।
गुरुग्राम से थोड़ी दूरी पर स्थित मेवात में पुलिस घुसने से डरती है। आये दिन क्षेत्र में अपहरण, हत्या और लूट-पाट जैसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, पुलिस को पता है कि इनमें बहुत से लोग मेवात क्षेत्र के गांवो में रहते हैं, लेकिन गिरफ्तारी की हिम्मत नहीं होती! मेवात से कभी लव जिहाद की खबर, तो कभी गौ हत्या की खबरें सामने आती रहती हैं। इस माहौल में गुरुग्राम के हिंदुओं से आप यह अपेक्षा कैसे रखा जा सकता है कि वे किसी सार्वजनिक जगह पर मुसलमानों को नमाज पढ़ने दे और विरोध ना करें!
अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान, विपक्षी दल, भारतीय वामपंथी मीडिया और प्रशासन जिन समस्याओं के प्रति आंख मूंदे है या कहें कि जिन्हें अंधा संरक्षण दिया जा रहा है, वही समस्याएं देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने का असल कारण है! आप मुस्लिम समुदाय की हर गलत बात को सही और हिंदुओं की हर सही बात को गलत कहते रहेंगे, तो भारत अपने दुर्भाग्य की ओर ऐसे ही आगे बढ़ेगा। प्रचार तंत्र का प्रयोग करके हिंदुओं की आवाज को दबाया जाएगा, तो ‘गुरुग्राम का उदाहरण’ किसी बड़ी क्रांति का कारण बन सकता है।
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