महिलाओं की विवाह की आयु 21 करने का प्रभाव बहुत गहरा होगा

काम बोलता है!

शादी उम्र

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अगर कोई आपसे पूछे कि भारत की सबसे बड़ी ताकत क्या है तो आप क्या जवाब देंगे? निसंदेह आप “भारत की युवा आबादी” का उदाहरण देंगे। यही आबादी इस राष्ट्र की रीढ़ है। सेना, स्वास्थ्य, शिक्षा और सरकार से लेकर समाज स्थापना कि नींव यही रखेंगे, ये बात सभी जानते हैं। मोदी सरकार ने भी इनके महत्व को समझते हुए अनेकों योजनाएं लागू की है। परंतु, एक बात जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया, वो ये है कि इस युवा आबादी की रीढ़ लड़कियां है। सामाजिक मानसिकता और दरिद्रता का चक्रव्यूह ऐसा है कि एक बाप अपनी बेटी के कन्यादान को अपने जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य और सफलता मानता है। अगर बाप नहीं है, तो यही बात उसका भाई मानेगा और उसके स्वपनों की तिलांजलि देते हुए कम उम्र में ही उसकी शादी कर अपना पीछा छुड़ा लेगा! ऐसा अक्सर देखने को मिलता रहता है।

एक लड़की के स्वप्न का मरना, समस्त भारत के स्वप्न के मरने के समान है। भारत की यह संभावित संसाधन व्यर्थ चली जाती है। इसका मतलब यह है कि भारत कि श्रेष्ठता स्थापित करने के इस वैश्विक समर में हम अपने सबसे श्रेष्ठ सैनिकों और संसाधनों का उपयोग ही नहीं कर रहे हैं। देश का सौभाग्य है कि मोदी सरकार ने न सिर्फ इन स्वप्नों को मरने से रोका, अपितु उनमें पंख भी लगा दिया है।

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मातृ मृत्यु अनुपात में होगी कमी

खबर है कि केंद्र सरकार ने लड़कियों कि शादी करने की न्यूनतम सीमा को 18 साल से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में ही महिलाओं की शादी की उम्र सीमा बढ़ाने का वादा किया था। महिलाओं की शादी के लिए कानूनी उम्र बढ़ाने से सामाजिक और आर्थिक मोर्चों पर भारी लाभ होता है, जिसमें मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) को कम करना, पोषण स्तर में सुधार और महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा और करियर को आगे बढ़ाने के अधिक अवसर शामिल हैं। परंतु, भारत में ऐसे बहुतायत लोग हैं, जो राष्ट्र उत्थान से पहले स्वयं का स्वार्थ देखते हैं। वो इस तरह के कल्याणकारी नियमों में भी खामियां गिनने लगे। कांग्रेस और वामपंथियों ने इस बहाने मुसलमानों के जनसंख्या को नियंत्रित करने का आरोप भी लगा दिया।

सरकार ने इसका जवाब देते हुए कहा कि इस कानून के लिए टास्क फोर्स महिला और बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा विवाह की आयु, स्वास्थ्य और सामाजिक सूचकांकों जैसे शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर और माताओं एवं बच्चों के बीच पोषण स्तर के साथ इनके संबंध की फिर से जांच करने के लिए किया गया था। इसकी अध्यक्ष जया जेटली ने कहा है कि ‘यह सिफारिश जनसंख्या नियंत्रण के तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता पर आधारित है। जो लोग यह आरोप लगा रहें है सरकार उन्हें बता दे कि भारत की कुल प्रजनन दर पहले से ही घट रही है।’

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अब लड़कियों को मिलेगा संबल, श्रम शक्ति में होगा सुधार

खबरों के मुताबिक कानून के प्रभावी होने तथा शिक्षा और आजीविका तक पहुंच एक साथ बढ़ाने के लिए सरकारी समिति काम करेगी। साथ ही शादी की उम्र बढ़ने से शादी की औसत उम्र बढ़ जाएगी और इससे अधिक महिलाएं स्नातक कर सकेंगी और इससे भारत की श्रम शक्ति में सुधार होगा। इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वीमेन के एक अध्ययन में पाया गया है कि स्कूल न जानेवाली लड़कियों की शादी होने की संभावना 3.4 गुना अधिक है।

70% कम उम्र में विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे वंचित समुदायों में होते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, एक सामान्य वर्ग की लड़की का विवाह औसतन 19.5 वर्ष में, ओबीसी का 18.5 वर्ष में, जबकि एसटी और एससी का क्रमशः 18.4  और 18.1 वर्ष की आयु में हो जाता है। ऐसा इसलिए था, क्योंकि अब तक लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 थी, जिसे सरकार ने बढ़ाकर अब 21 वर्ष कर दिया है। सरकार के इस नियम से समाज के हर वर्ग की लड़कियों को संबल मिलेगा और उनके अभिभावक उनके विवाह से ज्यादा उनके सर्वागिड़ विकास की ओर उन्मुख होंगे।

सरकार के इस कदम के दिखेंगे दूरगामी परिणाम

समय के साथ धरातल पर सरकार के इस कदम के भी परिणाम दिखेंगे, जैसे “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं” 2021 में महिला-पुरुष अनुपात में वृद्धि के रूप में दिखी। समाज को सिर्फ महिला शिक्षा और विवाह के बारे में लोगों की मानसिकता में बदलाव करने की आवश्यकता है। भारत का मातृ मृत्यु अनुपात 2016-18 में 113 हो गया, जो 2014-2016 में 130 था। हालांकि, यह अभी भी संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के लक्ष्य 70 प्रति लाख के दर से काफी नीचे है। मातृ मृत्यु दर के प्रमुख संकेतकों में से एक मातृ मृत्यु अनुपात है, जिसे प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु (Maternal death) की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है।

UNFPA द्वारा स्टेट ऑफ द वर्ल्ड रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत में बिना शिक्षा वाली 51 फीसदी युवा महिलाओं और केवल प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं में से 47 फीसदी ने 18 वर्ष की आयु में शादी कर ली थी। अब मोदी सरकार के इस कदम से न सिर्फ भारत के श्रम शक्ति में सुधार होगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत एक सॉफ्ट पॉवर बनकर उभरेगा। केंद्र सरकार के इस कदम के बहुआयामी परिणाम देखने को मिलेंगे। महिलाएं सशक्त होंगी, उनकी शिक्षा में सुधार होगा, स्वास्थ्य में सुधार होगा, उनके स्वप्न साकार होंगे। सवाल तो यह भी है कि अगर लड़को की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल है, तो लड़कियों की न्यूनतम उम्र अब तक 18 क्यों थी?

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