चीन एक बार फिर से फन उठा रहा है और कारण है पश्चिमी देशों की बेवकूफी। कोरोना के बाद सकते में आया यह कम्युनिस्ट देश एक बार फिर से अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए अपने पड़ोसी देशों पर हावी होने की कोशिश कर रहा है और पश्चिमी देश एक बार फिर से मूकदर्शक बने हुए हैं। कुछ ही दिनों पहले दक्षिण पूर्वी एशियाई देश म्यांमार में तख्तापलट हुआ था और तब से यह देश चीन के चंगुल में फंसता जा रहा है। इस देश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए चीनी चंगुल में जाना भारत के लिए खतरे का संदेश है। म्यांमार की जूंटा सरकार और CCP के बीच बढ़ती नज़दीकियों पर पश्चिमी देशों की अकर्मण्यता, चीन के खिलाफ भारत के युद्ध को और कमजोर करती जा रही है।
चीनी हथियारों से लैस हो रहा म्यांमार
दरअसल, म्यांमार में तख्तापलट के बाद से ही चीन ने म्यांमार को अपने चंगुल में फंसाने पर विशेष ध्यान दिया है। इसी क्रम में अब चीन इस देश को अपने हथियारों से लैस कर रहा है। म्यांमार नौसेना ने 24 दिसंबर को एक चीनी टाइप 035 मिंग-क्लास पनडुब्बी को अपने बेड़े में शामिल किया। बीजिंग का यह तोहफा म्यांमार की स्थिति को प्रदर्शित करता है कि कैसे यह देश तख्तापलट के बाद चीन की गोद में बैठ चुका है।
जब से इस देश में सत्ता परिवर्तन हुआ है, तब से चीनी निवेश कई गुना बढ़ चुका है। म्यांमार में मचे राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद चीन की BRI परियोजना सैन्य सरकार के आश्वासन के साथ आगे बढ़ रही है। जूंटा सरकार ने चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (CMEC) के तहत महत्वपूर्ण कई विकास परियोजनाओं की कार्य समितियों को पुनर्गठित किया है। यह बीजिंग और Naypyidaw के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए कई परियोजनाओं को गति दे रहा है और योजना बना रहा है।
ऐसे निवेशों के दोगुने परिणाम देखने को मिल रहे हैं। म्यांमार में कई विकास परियोजनाओं में भारी निवेश के साथ, चीन न केवल देश के बुनियादी ढांचे और आर्थिक मामलों में, बल्कि बड़े पैमाने पर रणनीतिक स्तर पर भी अपनी पकड़ को मजबूत कर रहा है। ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि बीजिंग एक बार फिर से म्यांमार के ऊपर अपना आधिपत्य स्थापित कर चुका है।
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चीन के लिए महत्वपूर्ण है म्यांमार की भौगोलिक स्थिति
देखा जाए तो जब से म्यांमार में तख़्तापलट हुआ है, किसी भी पश्चिमी देशों ने न ही कोई एक्शन लेने की बात कही है और न ही चीन के इस बढ़ते प्रभाव पर चिंता जाहिर की है। म्यांमार में चीन की उपस्थिति का अर्थ है कि चीन को सबसे अधिक Bay Of Bengal से सीधे जुड़ने की महत्वकांक्षा को पंख लग जाएंगे। भौगोलिक दृष्टि से हिंद महासागर में भारत के पास विशेष रूप से Malacca Strait के आसपास नौसैनिक क्षमताएं हैं, जो हिंद महासागर को पश्चिमी प्रशांत महासागर से जोड़ता है।
ये जलक्षेत्र चीन के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि पश्चिमी दुनिया से जुड़ने का यही रास्ता है, जिसका इस्तेमाल वह अपने ऊर्जा और व्यापार के लिए करता है। एक तरह से यह चीन के लिए चोक पॉइंट्स की तरह है, जिसका इस्तेमाल भारत, चीन के व्यापार को रोकने के लिए कर सकता है। इसी से बचने के लिए या विकल्प ढूंढ़ने के लिए चीन कभी बांग्लादेश, तो कभी म्यांमार के जरिए Bay Of Bengal में पहुंच बनाने की कोशिश करता रहता है।
BRI के तहत बीजिंग, म्यांमार में कई तरह के प्रोजेक्ट चला रहा है, जैसे The New Yangon City, Kyaukphyu Deep-Sea Port and Industrial Zone और China-Myanmar Cross-Border Economic Cooperation Zone प्रोजेक्ट आदि। शी जिनपिंग ने इन प्रोजेक्ट्स को “priority among priorities” बताया था। म्यांमार के Kyaukphyu Deep-Sea Port और Industrial Zone से रणनीतिक तौर पर बीजिंग को ही फायदा पहुंचता है। म्यांमार और पाकिस्तान दोनों ही देशों में बीजिंग के निवेश का एक ही मकसद है और वह है भारत को String of Pearls से घेरना। इससे चीन को Malacca Strait वाले लंबे रास्ते से छुटकारा मिल जायेगा है और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के रास्ते चीन अपने तेल और व्यापार वस्तुओं का कम लागत में ट्रांजिट कर पाएगा।
यही नहीं, म्यांमार और पाकिस्तान ऐसे बन्दरगाह प्रदान करते हैं, जिनका उपयोग सैन्य ठिकानों के रूप में किया जा सकता है, जो चीन भारत के खिलाफ कर सकता है। म्यांमार में चीनी निवेश का मुख्य उद्देश्य अपने Yunnan प्रांत को बंगाल की खाड़ी से जोड़ना है, जो चीन के लिए हिंद महासागर में प्रवेश द्वार के रूप में काम कर सकता है।
म्यांमार के जरिए हिंद महासागर में प्रवेश करने से चीन को भारत द्वारा Malacca Strait में Naval Blockade से बचने में मदद मिल सकती है। अब म्यांमार में सत्ता परिवर्तन होते ही चीन ने वही प्रयास फिर से आरंभ कर दिया है। तख्तापलट से पहले म्यांमार की सरकारें भारत और जापान जैसे अन्य देशों को अपनी विकास रणनीतियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती थी, जिससे चीन पर लगाम लगा रहता था और बीजिंग की भागीदारी संतुलित रहती थी। वर्तमान में तख्तापलट और पश्चिमी देशों की अकर्मण्यता ने जूंटा सरकार को चीन के करीब ला दिया है।
पश्चिमी देशों की बेवकूफी
इसी वर्ष पश्चिमी देशों ने जूंटा सरकार के खिलाफ प्रतिबंध लगा दिया था, जिससे म्यांमार में कोई भी कंपनी निवेश नहीं कर पा रही है। इनमें अमेरिकी प्रतिबंध सबसे कड़े हैं। हाल ही में यह खबर सामने आई कि अडानी समूह म्यांमार में किए गए निवेश को वापस लेने वाला है। इसका कारण कुछ और नहीं, बल्कि अमेरिकी प्रतिबंध हैं। यही नहीं, भारत के महत्वपूर्ण 484 मिलियन डॉलर के कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट परियोजना के लिए खतरा बना हुआ है।
इससे चीनी कंपनियों को निवेश करने का मौका मिल गया है और वे लगातार निवेश कर म्यांमार को पूरी तरह से अपने कब्जे में कर चुके हैं। चीनी हस्तक्षेप के बढ़ने से न सिर्फ घाटा हुआ, बल्कि भारत के Act East Policy पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। चीन के बढ़ते प्रभुत्व से म्यांमार में भारत का पक्ष भी कमजोर हुआ है। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि किस तरह से पश्चिमी देशों की बेवकूफी के कारण म्यांमार, चीन के चंगुल में फंस चुका है, जिससे सबसे अधिक नुकसान भारत को हो सकता है।