दुनिया में आर्थिक रूप से ग्रस्त इस्लामिक देशों की स्थिति गंभीर होती जा रही है। ये देश धीरे- धीरे आर्थिक दिवालियेपन का शिकार हो रहे हैं। यदि पाकिस्तान और तुर्की की आर्थिक स्थित को देखा जाये तो दोनों ही देशों ने व्यापारिक तंगी से ऊपर उठने की बजाए राजनीतिक बयानबाजी पर अधिक ध्यान दिया है। अब स्थिति ऐसी हो गई है कि इस्लामिक देश तुर्की का बाजार आर्थिक तंगी के शिकंजे में कसता जा रहा है। बीते शनिवार को शेयर बाजार खुलते तुर्की के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई है और हालात यह है कि वहां की केंद्रीय बैंक स्थानीय मुद्रा टर्किश लीरा के अवमूल्यन को भी नहीं रोक पा रही है।
तुर्की की चरमराती हुई अर्थव्यवस्था
दरअसल, बीते दिन तुर्की ने सभी सूचीबद्ध शेयरों पर ट्रेडों को रोक दिया क्योंकि तेज गिरावट के बाद बाजार में व्यापक सर्किट ब्रेकर शुरू हो गया था और उसमें टर्किश लीरा की गिरावट निचले स्तर पर पहुंच गई है। वहीं, बोर्सा इस्तांबुल जो तुर्की की एकमात्र एक्सचेंज इकाई है, जिसमें 100 नैस्डैक (स्टॉक मार्केट इंडेक्स) के 7% तक गिरने के बाद इक्विटी, इक्विटी डेरिवेटिव और डेट रेपो लेनदेन का कारोबार एक घंटे के भीतर दो बार अपने आप रुक गया। वहीं, शेयर बाज़ार के दोबारा शुरू होने के बाद और संचालन के पहले दो मिनट के भीतर सूचकांक 9.1% तक गिर गया, जिसके बाद भी सर्किट ब्रेक किया गया।
और पढ़ें : उधर तुर्की कश्मीर-कश्मीर करता रहा, इधर भारत ने निकाला ‘साइप्रस कार्ड’
बता दें कि मुद्रा बाजार में केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के कारण टर्किश लीरा की गिरावट को रोकने में विफल रहने से पहले सूचकांक 5.6 प्रतिशत तक बढ़ गया था। मुद्रास्फीति के 21% से अधिक होने के बावजूद, केंद्रीय बैंक द्वारा बीते गुरुवार को बेंचमार्क रेपो दर में 14% की कटौती करने के बाद मुद्रा दबाव में आ गई है, अर्थात एक ओर पैसा कमजोर हो रहा है, दूसरी ओर महंगाई बढ़ रही है। तुर्की की स्तिथि मंदी के घेरे में फंसे देश वेनेजुएला और ज़िम्बाब्वे जैसी हो सकती है, जहां कुछ इस तरह के घटनाक्रम ने ही तबाही की नीवं रखी थी।
पाकिस्तान अब आर्थिक तंगी से दिवालियेपन के कगार पर
वहीं, इस्लामिक देश पाकिस्तान से बड़ी खबर आ रही है कि वहां के पूर्व वित्त मंत्री ने स्वीकार कर लिया है कि पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है। उन्होंने ना सिर्फ इस बात को माना है, बल्कि पाकिस्तानी सरकार को भी इस बात को स्वीकारने के लिए सलाह दी है। पाकिस्तान के फेडरल बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के पूर्व अध्यक्ष शब्बर जैदी ने कहा है कि “देश ‘दिवालिया’ है और ‘भ्रम में रहने’ की तुलना में वास्तविकता को पहचानना बेहतर है।”
जैदी, जो 10 मई 2019 से 6 जनवरी 2020 तक शीर्ष कर प्राधिकरण के अध्यक्ष थे, उन्होंने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) परियोजना में पारदर्शिता का आह्वान करते हुए कहा था कि “वह खुद अभी तक पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं कि यह क्या है?” बताते चलें कि बीते बुधवार को हमदर्द विश्वविद्यालय में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि “शासन में हर कोई कहता रहा कि सब कुछ अच्छा है और देश अच्छा चल रहा है। वे कहते हैं कि हमने बड़ी सफलता हासिल की है और हम तबदीली (परिवर्तन) लाए हैं, लेकिन यह गलत है। मेरे विचार में, देश इस समय दिवालिया है और चिंता का विषय है।”
जैदी ने आगे कहा कि, “यह बेहतर है कि आप पहले यह तय कर लें कि हम दिवालियेपन तक पहुंच गए हैं और हमें यह कहने की तुलना में आगे बढ़ना है कि सब कुछ ठीक चल रहा है और मैं यह और वह करूंगा, हमें इस समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए। ये सभी चीजें लोगों को धोखा देने के लिए हैं।”
और पढ़ें : पाकिस्तान में ‘ईशनिंदा’ से गुस्साई भीड़ ने की हैवानियत की सभी हदें पार
इस्लामिक देशों को आर्थिक अस्थिरता से उबरना होगा
आपको बता दें कि बीते गुरुवार को ट्वीट में, पूर्व FBR प्रमुख ने कहा है कि पाकिस्तान का कुल विदेशी ऋण 115 बिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक है, जबकि उसका चालू खाता घाटा 5 बिलियन अमरीकी डॉलर से 8 बिलियन अमरीकी डॉलर के बीच है। उन्होंने कहा “हम उस कर्ज का भुगतान कब कर पाएंगे? भ्रम में रहने की तुलना में वास्तविकता को पहचानना बेहतर है। हमें वास्तविकता की जांच करने की आवश्यकता है।” ऐसे में, इन दोनों इस्लामिक देशों को अपने यहां उत्पन्न हुई आर्थिक अस्थिरता से जल्द उबरने की आवश्यकता है।