विनम्र अभिवादन Vinamra Abhivadan क्या है?
भारत की सभ्यता सदियों पुरानी है। माता पिता द्वारा दिये गये ज्ञान और संस्कृति से वह अपने साथ साथ आने वाली पीढ़ी का भी मार्गदर्शन करता है। बड़ो का आदर – सम्मान के साथ विनम्र अभिवादन (Vinamra Abhivadan) करना और छोटो से प्यार करना यह सभी बाते उस व्यक्ति के संस्कारों को दर्शाता है। प्रणाम करने वाले व्यक्ति में , वृद्ध पुरुषों की सेवा करने वाले पुरुष की आयु, विद्या, र्कीत और शक्ति इन चारों की वृद्धि होती है।
हमेशा अपने दोनो हाथों को ऊपर की ओर सीधा रखते हुए दाहिने हाथ से दाहिने पैर का और बाएं हाथ से बाएं पैर का स्पर्श करते हुए अभिवादन करें। वृद्ध पुरुषों को नियमित रुप से प्रणाम करने से वह प्रसन्न होते है और भेंट स्वरुप अपने पूरे जीवन में प्राप्त ज्ञान का दान प्राणान करने वाले को देते हैं। जिसका सदुपयोग करके वह नई बुलंदियों को प्राप्त कर सकता है। इसीलिए वृद्धों के विनम्र अभिवादन (Vinamra Abhivadan) का फल विद्या, आयु, यश और बल की वृद्धि बताया गया है।
आज का व्यक्ति अपनी पुरानी सभ्यता को छोड़ कर आज की मॉर्डन सभ्यता को अपनाता जा रहा है। विनम्र अभिवादन Vinamra Abhivadan करना तो मानो भूल सा गया है या यूं कहें की उसे अभिवादन करने में शर्म सी आने लगी है।अपने बड़ों को प्रणाम करने की वजह वो बस दो शब्द HELLO , HI बोल कर वहां से छुटकारा पा लेता है।
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Vinamra Abhivadan (Pranam) Benefits and Reason in Hindi
ऐसे व्यक्ति के लिए अपनी संस्कृति का ज्ञान होना बहुत जरुरी है। उसे पता होना चाहिए कि प्रणाम करने से विद्युत शक्ति के साथ वृद्ध पुरुष के ज्ञान आदि सद्गुणों का भी प्रवेश हो जाता है। इस प्रकार ज्ञानदान द्वारा प्रत्यक्ष रूप में और विद्युत शक्ति प्रवेश द्वारा अप्रत्यक्ष रूप में उनके गुणों की प्राप्ति प्रणाम करने वाले व्यक्ति को होती है। विद्युत शक्ति मुख्य रूप से पैरों द्वारा निकलती है, इसलिए पैर ही छुए जाते हैं सिर आदि नहीं।
जब कोई वृद्ध पुरुष हमारे समीप होता हैं, तब उस स्थिती में हम उनके पैरों को छूते हैं एवं जब कोई वृद्ध पुरुष हमसे दूर होता है तो उस स्थिती में हाथ जोड़कर सिर झुका कर प्रणाम करते हैं। इसका तात्पर्य यह होता है कि हमारी क्रियाशक्ति और ज्ञानशक्ति आपके अधीन है आप जो आज्ञा देंगे उसे सिर से स्वीकार करेंगे और हाथों से करेंगे। अन्य सभी जीवों में चलना, फिरना, खाना-पीना, तैरना आदि जीवनोपयोगी चेष्टाएं प्राय: बिना शिक्षा के ही प्राप्त हो जाती हैं, किन्तु मनुष्य को इनकी भी शिक्षा द्वारा ही प्राप्ति होती है।
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हम प्रणाम क्यों करते है?
इस दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य अन्य सभी प्राणियों से गया-बीता प्राणी सिद्ध होता है। इसका एकमात्र कारण यह है कि मनुष्य को जैसा ज्ञान मिला है वैसा अन्य किसी भी प्राणी को नहीं मिला। इस विशेष ज्ञान के बल से ही यह लघुकायमानव विशालकाय हाथी जैसे-प्राणियों को इस लोक में अपने वश में रखता है। कर्म करने के लिए जैसे दो हाथ मनुष्य को मिले हैं, वैसे किसी प्राणी को नहीं मिले।इसलिए मनुष्य को सदैव अपने दोनो हाथों को बड़ो की सेवा एवं अच्छे कामों में लगाना चाहिए।
जो व्यक्ति प्रणाम करते समय हाथ नहीं जोड़ते, सिर नहीं झुकाते इतना ही नहीं नम्र वाणी से नहीं किन्तु कठोर वाणी से ‘महाराज प्रणाम’ ऐसे शब्द मात्र बोल कर प्रणाम करते हैं वे वस्तुत: प्रणाम शब्द के अर्थ को भी नहीं जानते। वंदनीय वृद्ध महापुरुषों के अतिरिक्त अब अन्य व्यक्तियों से मिलते हैं जो परस्पर ‘जय राम जी’ की कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य भगवत्प्राप्ति ही है।
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इस सत्य का एक-दूसरे को स्मरण कराते रहना चाहिए। इसी प्रकार कृष्ण भक्त ‘जय श्री कृष्ण’ कहते हैं। संन्यासियों के प्रति गृहस्थ मनुष्य ॐ नमो नारायणाय’ कह कर विनम्र अभिवादन (Vinamra Abhivadan) करते हैं और संन्यासी महात्मा जय नारायण कहते हैं। यहां भी परस्पर में एक-दूसरे को नारायण रूप में देखना चाहिए।
संसार में सभी गुरुजन वंदनीय हैं। पर शास्त्र कहते है कि उन सबसे माता का गौरव पिता से हजार गुणा अधिक है। सारे संसार द्वारा वंदनीय संन्यासी को भी माता की वंदना प्रयत्नपूर्वक करनी चाहिए। माता को इतना अधिक गौरव देने का कारण यह है कि संतान को गर्भ में धारण करने तथा पालन करने में माता को बहुत कष्ट उठाना पड़ता है। और सभी जानते हैं कि माता संतान के लिए कितना अधिक कष्ट सहती है।