Witch Hunting: पश्चिम द्वारा शुरू की गई एक प्रथा, जिसने भारत में भी पसारे पैर

वो चुड़ैल है.....

जादू टोना

धर्म शाश्वत है। अपरिवर्तनीय है। परंतु, परंपरा, साधना पद्दती, सामाजिक संस्कृतियाँ तदनुसार परिवर्तित होती रहती है। यही परिवर्तन और परंपरा हमारी सभ्यता को विविधता से भर देती है। कालांतर में जब ये परम्पराएँ पाश्चात्य और पश्चिम के संक्रामण में आयीं तब इन्होने विकराल रूप धरण कर लिया। जैसे अघोर को मुर्दाखोर बता दिया गया। देवदासियों को वेश्या और जैसे तंत्र-विद्या और महासिद्धि को जादू-टोने का नाम दे दिया गया। हम भारतीयों को अपने संस्कृति का ज्ञान नहीं था। अतः, पाश्चात्य ने विज्ञान, गणित, कला तो हमसे चुरा ली और काले जादू-टोने का कलंक हमारे धर्म और संस्कृति पर मढ़ दिया अर्थात उनकी विकृतियों के बदले में हमने अपनी संस्कृति दान में दे दी। पश्चिम के दिये इन्ही विकृत परंपरा में से एक है “डायन, जादू टोना और चुड़ैल की परिकल्पना।

अंग्रेज़ी में इन्हे “witch” कहते है। Witch अर्थात चुड़ैल/डायन द्वारा किए जानेवाले जादू टोने को “witchcraft” कहते है। Witchcraft के लिए हिन्दी में कोई निर्धारित शब्दावली नहीं है। ऐसा इस लिए भी है क्योंकि डायन/चुड़ैल द्वारा किए जानेवाले जादू-टोने पश्चिमी अवधारणा की उपज है जिनहोने कालांतर में भारतीय संस्कृति को भी इससे संक्रमित कर दिया। कई संस्कृतियों में, पारंपरिक रूप से जादू-टोने का अर्थ अलौकिक शक्तियों का उपयोग कर दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए होता है। इस अलौकिक शक्तियों की अभ्यासी को चुड़ैल कहते है। मध्ययुगीन और प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में Witch (जादू टोना करने वाली स्त्री) शब्द की उत्पत्ति हुई। इनका उपयोग दूसरों को नुकसान पहुंचाने के लिए होता था ना की भारतीय तंत्र विद्या की तरह मानव कल्याण के लिए। आरोपी चुड़ैलें आमतौर पर ऐसी महिलाएं थीं जिनके बारे में माना जाता था कि उन्होंने अपने ही समुदाय पर हमला किया था। जादू टोने को अनैतिक के रूप में देखा जाता था और अक्सर यह माना जाता था कि इसमें दुष्ट प्राणियों की सहभागिता शामिल है। जादू टोना के विभिन्न रूपों का उल्लेख हिब्रू बाइबिल (तनाख या ओल्ड टेस्टामेंट) में किया गया है।

जादू टोना के विभिन्न रूपों को प्रतिबंधित करने वाले कानून  Exodus, Leviticus और Deuteronomy की पुस्तकों में पाए जा सकते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

इंग्लैंड में Witch-Hunting

17वीं सदी के इंग्लैंड में काफी अंधविश्वास और अज्ञानता थी। 1563 से जादू टोना अवैध था। सैकड़ों महिलाओं पर गलत आरोप लगाया गया और उन्हें दंडित किया गया। डायन होने का ‘सबूत’ एक असामान्य निशान या जन्मचिह्न, एक फोड़ा, एक वृद्धि, या यहां तक ​​कि एक बिल्ली या अन्य पालतू जानवर का मालिक भी हो सकता था। स्वीकारोक्ति अक्सर यातना देकर ली जाती थी और संदिग्धों को बांधकर नदी या तालाब में फेंक दिया जाता था। तैरना अपराध बोध का प्रमाण था। उसके बाद पीड़िता को फांसी पर लटका दिया जाता था।

चुड़ैलों का पर्दाफाश करने वाले पेशेवर बहुत पैसा कमा सकते थे। स्थानीय मजिस्ट्रेट ने डायन खोजने वाले को एक महीने के वेतन के बराबर भुगतान करते थे। उनमे सबसे व्यस्त व्यापारी मैथ्यू हॉपकिंस था जिसने खुद को ‘विचफाइंडर जनरल’ कहा था और 1645 से 1646 तक अंग्रेजी गृहयुद्ध की उथल-पुथल के दौरान ईस्ट एंग्लिया में उसने लगभग 300 महिलाओं को मार डाला था। पुस्तक ‘द डिस्कवरी ऑफ विच्स’ में उसने अपने गंभीर पेशे का वर्णन किया है। जर्मनी कभी दुनिया की जादू टोना करने वाली राजधानी हुआ करती थी।

पश्चिम में जादू-टोने का फैलाव

ऐतिहासिक रूप से जादू टोना की प्रमुख अवधारणा ईसाई धर्मानुशंषित कानूनों से निकली और फिर इन्होने मुख्यधारा में प्रवेश किया। कलांतर में जादू-टोने में विश्वास ने प्रारंभिक आधुनिक काल में चर्च की मंजूरी भी प्राप्त की। यह अच्छाई और बुराई के बीच एक अलौकिक संघर्ष था, जहां जादू टोना आम तौर पर बुरा था और अक्सर शैतान की पूजा से जुड़ा होता था। तथाकथित शैतान की इस पुजा को सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक, पारिवारिक और हर प्रकार की विपदा का कारण माना गया। उसके बाद जादू टोना करने वाले ये लोग धर्म के ठेकेदारों के निशाने पर आ गए। इन्हे खूब यतनाएं दी गईं। पश्चिम और मुख्य रूप से यूरोप का इतिहास इनके खून से भरा पड़ा है। इस Witch-hunting के आड़ में राजनीतिक प्रतिशोध से लेकर निजी बदले पूरे किए जाने लगे। लाखों लोगों को बर्बर तरीके से मौत के घाट उतार दिया गया।

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कालांतर में ये विकृत परंपरा विदेशी ईसाई धर्मावलम्बियों के साथ भारत आ गयी। हिन्दू धर्म पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए इन विदेशीयों ने तंत्र साधना के गौरवशाली परंपरा को विकृत करते हुए अपने जादू-टोने की परंपरा से संक्रमित कर दिया। इसे काला जादू जैसे अलग-अलग नाम दे दिये गए। पर, पश्चिम से ठीक उलट भारत में Witch सिर्फ औरतें ही हुईं। इसके अपने कारण थे। औरतें धार्मिक रूप से ज्यादा संवेदनशील होती है और उन्हे निशाना बनाना भी आसान होता है। दूसरे, औरतों को चुड़ैल का तमगा देने के पीछे उनके हत्या कर उनके संपति को हड़पने की नियत होती थी अन्यथा भारत में कभी भी तंत्र विद्या का ये स्वरूप मौजूद नहीं था। ये जादूगरी जल्द ही अपराधों की श्रेणी में आ गई जो बाद में नरसंहार का कारण बनी।

डायन को अक्सर भारतीय लोककथाओं में एक चुड़ैल अर्थात काले जादू के अभ्यासकर्ता के रूप में माना जाता है। यह शब्द संस्कृत शब्द डाकिनी से लिया गया है, जो पाताल से उतपतित एक शैतानी महिला को संदर्भित करता है। भागवत पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कंडेय पुराण, और कथासरितसागर जैसे मध्ययुगीन हिंदू ग्रंथों में डाकिनियों का वर्णन एक महिला पैशाचिक आत्मा के रूप में किया गया है जो मानव मांस का भोजन करती है।

स्वतंत्रता के बाद से अब तक भारत में महिलाओं को डायन बता कर मार डालने के कई मामले सामने आए हैं । 25 जनवरी को, ओड़ीसा के एक गाँव में पुरुषों का एक समूह देर रात सुश्री मुंडा के घर में घुस गया, तब वह और उनके दो बेटे और दो बेटियां सो रहे थे। उनके शवों को कुएं के अंदर फेंकने से पहले उन्होंने उन पर लकड़ी के डंडे और कुल्हाड़ी से हमला किया था। कारण लोगों को लगता था की वो एक डायन है।

भारत में डायन पंथ एक गुप्त समाज को भी संदर्भित करता है जो 15 वीं शताब्दी के दौरान महाराष्ट्र के परभणी जिले के एक गांव हरंगुल में उभरा। डायन में विश्वास भारत के अधिकांश गरीब और अशिक्षित क्षेत्रों, विशेषकर झारखंड और बिहार में मौजूद है। झारखंड महिला आयोग की एक सदस्य वासवी किरो ने कहा, ‘डायन-शिकार की शिकार आमतौर पर बूढ़ी या विधवा महिलाएं होती हैं। इन महिलाओं को उनकी संपत्ति के लिए, या परिवार में समस्याओं के कारण या यौन शोषण के लिए पीड़ित किया जाता है।”

अब समय आ गया है कि भारत इस पश्चिमी विकृति को नकारते हुए अपने तंत्र विद्या को परिष्कृत करे।

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