पूरे देश ने बीते 13 दिसम्बर को त्रिपुंड लगाए, कुर्ता पहने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखा। काशी के घाट पर यह दिन एक छोटी दीपावली की तरह था। सभी लोगों ने भव्य महाकाल का दर्शन किया। 13 दिसंबर, 2021 को वाराणसी में पुनर्विकसित काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी के काशी विश्वनाथ के अतीत से लेकर भविष्य तक की बातों को बताया। उस बड़े कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बताया कि कैसे काशी के गौरवशाली इतिहास को मुस्लिम आक्रांताओं ने बार-बार तार करने की कोशिश की है? इसी बीच काशी की भव्यता को देख लिबरल गैंग अपना पुराना अलाप उठाये प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने लगे।
काशी विश्वनाथ धाम पर 52 पन्नों की पुस्तिका क्या कहती है?
वहीं, सूबे की योगी सरकार ने लिबरल गैंग को करारा जवाब देते हुए हाल ही में ‘काशी विश्वनाथ धाम’ परियोजना पर 52 पन्नों की एक पुस्तिका तैयार की है, जिसमें कई बार काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब , मोहम्मद गौरी और सुल्तान मोहम्मद शाह जैसे मुस्लिम शासकों द्वारा तोड़ा गया था और कैसे गर्भगृह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था, इसका वर्णन किया गया है।
‘श्री काशी विश्वनाथ धाम का गौरवशाली इतिहास और वर्तमान भव्य स्वरूप’ शीर्षक वाली इस पुस्तिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संदेश है, जिसमें पीएम ने कहा है कि “इस परियोजना से गंगा से सीधे मंदिर जाना संभव हुआ है, जैसा कि ऐतिहासिक समय में हुआ करता था।” इस पुस्तिका के संस्करण का 37 पृष्ठ वाराणसी के सभी घरों में वितरित किया जा रहा है। पुस्तिका को काशी के महत्व, काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास, पीएम मोदी के नेतृत्व में काशी का विकास, काशी विश्वनाथ धाम का नया रूप, काशी विश्वनाथ धाम का महत्व और अन्य मंदिरों के बारे में कुल छह अध्यायों में बांटा गया है।
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काशी के विनाश का षड़यंत्र रच रहे थे मुस्लिम शासक
13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ धाम में अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने यह बताने की कोशिश की थी कि कैसे आक्रमणकारियों ने काशी शहर को नष्ट करने की कोशिश की थी? पुस्तिका में कहा गया है कि “18 अप्रैल, 1669 को औरंगज़ेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने का आदेश जारी किया था और कोलकाता में एशियाई पुस्तकालय में वह आदेश संरक्षित है।” पुस्तिका में दावा किया गया है, “तब लेखक साकी मुस्तैद खान ने एक पुस्तक में विध्वंस का वर्णन किया है। औरंगज़ेब ने आदेश दिया था कि मंदिर को न केवल तोड़ा जाए बल्कि यह सुनिश्चित किया जाए कि मंदिर फिर कभी न बन पाए। औरंगज़ेब के आदेश पर यहां ज्ञानवापी मस्जिद बनाने के लिए मंदिर के गर्भगृह को भी तोड़ा गया था। औरंगज़ेब को 2 सितंबर, 1669 को मंदिर के विनाश की सूचना दी गई थी।”
1669 में औरंगज़ेब ने जब मंदिर…
पुस्तिका में कहा गया है कि “इससे पहले 1194 में मोहम्मद गौरी ने अपने लेफ्टिनेंट सैयद जमालुद्दीन के जरिए मंदिर को ढहा दिया था।” इसमें कहा गया है कि सनातन समाज ने बाद में मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। पुस्तिका में कहा गया है कि मंदिर को एक बार फिर 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जिसे 1585 में राजा टोडरमल की मदद से बनाया गया था, जो अकबर शासन में मंत्री था। “नारायण भट्ट ने तब मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था। टोडरमल के पुत्र को इस धार्मिक कार्य के लिए श्रेय दिया जाता है।”
पुस्तिका में आगे यह भी कहा गया है कि “1632 में शाहजहाँ ने भी मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया था और सेना भेज दी थी, लेकिन हिंदुओं के विरोध के कारण वे मुख्य मंदिर को को छू भी नहीं पाए। हालांकि, उसी समय में काशी के 63 अन्य मंदिरों को नष्ट कर दिया गया था। 1669 में औरंगज़ेब के मंदिर के विनाश के बाद, 1770 में महादजी सिंधिया ने सम्राट शाह आलम से मंदिर को नुकसान की लागत वसूलने का आदेश जारी किया था।
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भारत के लोग वास्तविक इतिहास को करें आत्मसार
पुस्तिका में आगे लिखा है, “लेकिन तब काशी ईस्ट इंडिया कंपनी के नियंत्रण में थी और मंदिर के पुनर्विकास के प्रयास बंद हो गए थे। 1770 और 1780 के बीच, इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के गुंबद को सोने की चादर से ढक दिया, ग्वालियर की महारानी बैजबाई ने परिसर के मंडप को बनवाया और नेपाल के महाराजा ने यहां एक बड़ी नंदी प्रतिमा स्थापित की थी।” पुस्तिका में दावा किया गया है कि 1810 में, वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट एम वाटसन ने ‘वाइस-प्रेसिडेंट इन काउंसल’ को लिखा कि काशी विश्वनाथ मंदिर के लिए ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए “लेकिन यह कभी संभव नहीं हो सका।
अंततः एक तरीके से पूरे इतिहास को बदलने वाले सच्चे तथ्यों के साथ योगी आदित्यनाथ ने लिबरल गैंग को सीधे करारा जवाब दिया है। ऐसे में, यह कहना उचित है कि वामपंथी इतिहासकारों के नक्शे कदम पर अब इतिहास नहीं लिखा जा रहा है। अब उचित समय आ गया है कि भारत के लोग भारत के वास्तविक इतिहास को आत्मसार करें और लिबरल गैंग की दकियानूसी बातों पर ध्यान न दें।