भूदान आंदोलन क्या था, इसका उद्देश्य एवं स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

भूदान आंदोलन

किसने शुरू किया था भूदान आंदोलन

आचार्य विनोबाभावे के द्वारा सन् 1951 में भूदान आंदोलन की शुरुआत की गई थी. आचार्य विनोबा भावे महात्मा गांधी के अनुयायी थे. वह एक धर्मगुरु के साथ-साथ एक समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी भी थे. विनोबा जी ने गांधीजी के साथ स्वतंत्रता संग्रामा में भाग लिया था और लगभग 5 वर्ष जेल में बिताये थे. विनोबा की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसकी सफल कोशिश की जाए.

विनोबा ने भूदान आंदोलन को सफल बनाने के लिए गांधीवादी विचारों पर चलते हुए रचनात्मक कार्यों और ट्रस्टीशिप जैसे विचारों को प्रयोग में लाया. विनोबा भावे ने सर्वोदय समाज की स्थापना की. यह रचनात्मक कार्यकर्ताओं का अखिल भारतीय संघ था. इसका एकमात्र उद्देश्य अहिंसात्मक तरीके से देश में सामाजिक परिवर्तन लाना था.

भूदान आंदोलन

1951 में भूदान आंदोलन के लिए विनोबाभावे ने हजारों मीलों की पदयात्रा की थी और भू-दाताओं से जमीन दान करने की अपील की थी. 18 अप्रैल, 1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने विनोबाभावे जी से भेंट की,साथ ही उन्होने अपने जीवन यापन करने के लिए विनोबाभावे जी से 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया . विनोबाभावे ने गांव के जमीनदारों से हरिजनों के लिए अपनी जमीन दान करने और हरिजनों को बचाने की अपील की. विनोबाभावे जी की अपील का असर एक जमीनदार पर हुआ. जिसने अपनी जमीन दान देने का प्रस्ताव रखा. यहीं से आचार्य विनोबाभावे का भूदान आंदोलन शुरू हो गया.

यह आंदोलन 13 सालों तक चला. जिसमें विनोबा जी ने देश के कोने-कोने का भ्रमण किया. इस दौरान उन्होंने करीब 58,741 किलोमीटर सफर तय किया. इस आंदोलन के तहत विनोबाभावे जी गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिल करने में सफल हो सके. दान के रुप में प्राप्त जमीनों में से 13 लाख एकड़ जमीन उन किसानों को बांटी गई जो भूमिहीन थे. विनोबाभावे के इस आंदोलन विश्वभर में काफी प्रशंसा हुई.

भावे की प्रेरणा से जयप्रकाश नारायण जैसे कई बड़े समाजवादी नेता इस आंदोलन से जुड़े.सामुदायिक नेतृत्व के लिए 1958 में अंतरराष्ट्रीय रमन मेग्सेसे पुरस्कार पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे. 1983 में मरणोपरांत उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया. विनोबाभावे का निधन 15 नवंबर, 1982 को हुआ था.

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भूदान आंदोलन का उद्देश्य

1. इस भूदान आंदोलन का उद्देश्य पूरे देश में पिछड़े और शोषित वर्ग को मुख्यधारा में लाना था.
2. इस भूदान आंदोलन का उद्देश्य समाज में सबको साथ लेकर आगे बढना था.
3. इस भूदान आंदोलन के अतंर्गत समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा करना था.
4. सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से इस आंदोलन का घोषित उद्देश्य शक्ति का विकेंद्रीकरण करना था.

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

गांधीजी के प्रभाव में विनोबाभावे ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया. ब्रिटिश शासन का विरोध करने के आरोप में विनोबा जी को छह महीने के लिए जेल भेज दिया. जहां उन्होंने कैदियों को मराठी में ‘भगवद गीता’ के विभिन्न विषयों को पढ़ाया.

सामाजिक कार्य

विनोबाभावे ने सामाजिक बुराइयों जैसे असमानता और गरीबी को खत्म करने के लिए अथक प्रयास किया. उन्होंने समाज के दबे-कुचले तबके लिए काम करना शुरू किया. उन्होंने सर्वोदय शब्द को उछाला जिसका मतलब सबका विकास था. 1950 के दौरान उनके सर्वोदय आंदोलन के तहत कई कार्यक्रमों को लागू किया गया जिनमें से एक भूदान आंदोलन था. आशा करते है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा ऐसे ही लेख और न्यूज पढ़ने के लिए कृपया हमारा ट्विटर फॉलो करें.

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