A Brief Analysis: Democracy के उद्देश्य को ही मिट्टी में मिला देता है Communism

एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकती!

साम्यवाद लोकतंत्र

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साम्यवाद और लोकतंत्र वैचारिक सिद्धांत है। किसी देश को कैसे चलाया जाना चाहिए, इस बारे में दोनों सिद्धांतों में मत भिन्नता है। साम्यवाद एक आर्थिक प्रणाली है, जो समाज और समुदाय को तथाकथित रूप से प्राथमिक रखती है। जबकि लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है, जिसमें सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक निर्णयों में सभी योग्य नागरिकों की हिस्सेदारी बराबर होती है। नागरिक उन प्रतिनिधियों को चुनने के लिए मतदान करते हैं, जो राष्ट्र संचालन करेंगे और कठोर निर्णय लेंगे। पर, समकालीन युग में जब हम शासन पद्धति के इन दो वैचारिक सिद्धांतों का अवलोकन करेंगे, तो पाएंगे कि साम्यवाद, लोकतंत्र के उत्कृष्टतम स्वप्नों का चोगा ओढ़े उसी के उद्देश्यों को ध्वस्त कर देता है। आइये समझते हैं कैसे?

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क्या है साम्यवाद और लोकतंत्र?

साम्यवाद शब्द लैटिन शब्द “कम्युनिस” से आया है, जिसका अर्थ है “साझा” या “सभी से संबंधित”। यह एक स्वतंत्र समाज का विचार है, जिसमें कोई विभाजन या अलगाव नहीं है, जहां लोग उत्पीड़न और अभाव से मुक्त हैं। डिक्शनरी डॉट कॉम के अनुसार, साम्यवाद की परिभाषा में कहा गया है कि यह सामाजिक संगठन का एक सिद्धांत या प्रणाली है, जो सभी संपत्ति को सामान्य रूप से रखने पर आधारित है, जिसका वास्तविक स्वामित्व पूरे समुदाय को दिया जाता है। साम्यवाद सामाजिक संगठन की एक प्रणाली है, जिसमें सभी आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों को एक अधिनायकवादी राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसमें एक एकल और आत्मनिर्भर राजनीतिक दल का प्रभुत्व होता है।

जबकि लोकतंत्र शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा ‘डेमोक्राटिया’ से हुई है, जिसका अर्थ है- जो लोगों के शासन के लिए खड़ा है। लोकतंत्र लोगों द्वारा चुनी हुई शासन का एक प्रकार है, जिसमें सर्वोच्च शक्ति लोगों में निहित होती है। साम्यवाद के ठीक उलट लोकतंत्र में एक स्वतंत्र चुनावी प्रणाली के तहत मताधिकार का प्रयोग कर लोगों द्वारा जनप्रतिनिधि चुने जाते हैं, जो आम जनता को ही प्रतिबिंबित और परिलक्षित करते हैं। उदाहरण हेतु भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा एक लोकतंत्र हैं। इन देशों में राजनीतिक या सामाजिक समानता एक लोकतांत्रिक भावना के तहत अंतर्निहित होती है।

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साम्यवाद और लोकतंत्र में अंतर

शासन के इस सैद्धांतिक विचारों के बीच मुख्य अंतर यह है कि साम्यवाद मानता है कि केंद्रीयकृत संगठनों द्वारा राज्य विहीनता और वर्गहीनता को स्थापित करने के लिए अर्थव्यवस्था का ऐसा प्रबंधन करना चाहिए, जिसमें सभी समान हों। साम्यवाद, पूंजीवाद और निजी स्वामित्व को समाप्त कर वर्गहीनता लाने में विश्वास करता है। इसमें यह भी कहा गया है कि संपत्ति, कारखाने आदि सहित सब कुछ केंद्र सरकार के स्वामित्व में होना चाहिए, जबकि काम और लाभ को सरकार द्वारा लोगों के बीच समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए। साम्यवाद के मुताबिक काम, आवास, भोजन आदि संसाधनों पर सभी की समान पहुंच होनी चाहिए।

दूसरी ओर लोकतंत्र यह स्वीकार करता है कि हम वर्गहीनता से छुटकारा नहीं पा सकते। यह व्यक्तियों के संपत्ति और उत्पादन के साधन के अधिकार को बढ़ावा देता है। यह पूंजीवाद का समर्थन करता है, जिसमें व्यक्ति अपने खुद की व्यवसाय की शुरुआत कर, उसे चला सकता है। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति समान है और उसे स्वयं को सहारा देने और सामाजिक सीढ़ी को ऊपर या नीचे करने हेतु काम करने का अधिकार है।

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लोकतंत्र नागरिकों के लिए समान अधिकार के बीच राजनीतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, भाषण की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के विचार का समर्थन और प्रचार भी करता है। कानून और सरकार की नजर में सब बराबर हैं। यह पात्र नागरिकों को उनके जीवन को प्रभावित करने वाले प्रस्ताव, विकास और कानूनों के निर्माण सहित निर्णयों में समान रूप से शामिल होने की अनुमति देता है। नागरिक या तो सीधे या निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से ऐसा कर सकते हैं।

पर, वास्तविक दुनिया में विचारधाराएं विकृत हो जाती हैं। आधुनिक शब्दावली में साम्यवाद एक कुलीनतंत्र का पर्याय बन गया है। एक कुलीनतंत्र में, सब कुछ एक कुलीन वर्ग द्वारा शासित होता है। आधुनिक कम्युनिस्ट शासन में एक व्यक्ति या एक पार्टी सत्ता में आती है और राज्यों की नीतियां इन साम्यवादी दलों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं। तत्पश्चात, वे कम्युनिस्ट शासन को तानाशाही में बदल देते हैं!

दुनिया के कई देशों में है साम्यवादी शासन का जड़

आधुनिक साम्यवादी शासन के कुछ उदाहरणों में वियतनाम के समाजवादी गणराज्य, पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी), उत्तर कोरिया, सोवियत संघ, क्यूबा, ​​कंबोडिया और लाओस शामिल हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है, तो विविधताओं के इस देश में आपको दोनों सिद्धांत पल्लवित होते दिख जाएंगे। परंतु, भारतीय लोगों ने साम्यवादी कांटे की जगह लोकतान्त्रिक पुष्प को चुना। भारत में त्रिपुरा, बंगाल और केरल साम्यवाद के गढ़ रहे हैं। परंतु, अपने आर्थिक नीतियों, प्रतिशोध की राजनीति और प्रशासन के दमन के कारण जनता ने साम्यवाद को यहां से उखाड़ फेंका। जिसमें केरल अभी भी लालगढ़ के रुप में बचा हुआ है।

सैद्धांतिक स्तर पर अगर हम निरीक्षण करें, तो लोकतंत्र और साम्यवाद के उद्देश्य में अनेकों समानता है जैसे- आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर समानता। परंतु, इसके प्राप्ति के प्रक्रिया में साम्यवाद न सिर्फ लोकतन्त्र का गला घोंट देता है, बल्कि आपकी अधिकारों को छीनकर आप पर कुछ कुलीन लोगों के शासन को स्थापित कर देता है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इस शासन की वैधानिकता साम्यवाद लोकतान्त्रिक स्वप्नों को दिखाकर ही प्राप्त करता है।

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