मुख्य बिंदु
- हिन्दू धर्म और भारत माता पर अपशब्द बोलने के तहत मद्रास हाई कोर्ट ने एक ईसाई पादरी को फटकार लगाई है
- पादरी जॉर्ज पोन्नैया के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहात करने पर कई धाराओं के तहत दर्ज हुआ मामला
- अपने निर्णय से न्यायालय ने ऐसे समूहों को कड़ा संदेश दिया, जो भारत में चुपचाप धर्मांतरण करने में सक्रिय हैं
दक्षिण भारत धर्मांतरण के पीड़ा से पीड़ित है। एक लंबे समय से दक्षिण भारत में ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक संस्थाओ ने जनजातीय समुदाय और हिन्दू धर्म के अनुसूचित जातियों को अपने धर्म में बदलने की कोशिश की है। दक्षिण भारत में दस्तावेजों के अनुसार तो बहुत सारे हिन्दू हैं लेकिन असल में वह दूसरे धर्म को मानते हैं। वहीं, ईसाई धर्म के लोग हिंदुओ को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं और उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हैं। ऐसे में, इस पर लगाम लगाते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने दक्षिण भारत में हिंदू समुदाय के साथ हो रहे धर्मांतरण एवं भेदभावों को लेकर ईसाई मिशनरियों और इस्मालिक संस्थाओं को फटकार लगाई है!
मद्रास हाई कोर्ट ने ईसाई पादरी को लगाई फटकार
इस मामले पर संज्ञान लेते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि “जो लोग धर्मांतरण करते हैं, वे अभी भी आधिकारिक रिकॉर्ड पर लाभ लेने के लिए खुद को हिंदू बताते हैं और ऐसे लोगों को ‘क्रिप्टो-ईसाई’ कहते हैं। मद्रास उच्च न्यायालय ने देखा है कि कन्याकुमारी में हिंदू आबादी ‘अल्पसंख्यक’ है क्योंकि परिवर्तित ईसाई अभी भी लाभ प्राप्त करने के लिए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हिंदू होने का दावा करते हैं।
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न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन एक बेंच ने कहा, “जनगणना इस तथ्य को ध्यान में नहीं रखती है कि बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति के हिंदू, ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं और उक्त धर्म को मानते हैं, सिर्फ आरक्षण का लाभ उठाने के उद्देश्य से वह खुद को हिंदू कहते हैं।”अदालत ने एक अज्ञात दिवंगत न्यायाधीश का भी उल्लेख किया जो ऐसी श्रेणी के थे जबकि उन्होंने एक हिंदू होने का दावा किया था। बाद में उन्हें कब्रिस्तान में ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया गया था।
न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन की एकल-न्यायाधीश पीठ ने आगे कहा कि “धार्मिक जनसांख्यिकी के मामले में यथास्थिति को बनाये रखने के लिए हमारे संस्थापकों ने जानबूझकर धर्मनिरपेक्षता को नए गणतंत्र के मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में अपनाया था और उसे उसी रूप में बनाए रखा जाना चाहिए।” अदालत के आदेश में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन एक व्यक्तिगत निर्णय है लेकिन यह एक ‘समूह एजेंडा’ नहीं हो सकता। वहीं, संगीत निर्देशकों ए.आर. रहमान, युवान शंकर राजा और अभिनेता टी राजेंद्र के बेटे कुरालारासन राजेन्द्र के हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में परिवर्तित होना और फिर इस्लाम को अपनाना पूरी तरह से समझने योग्य है।
पादरी ने की थी FIR रद्द करने की मांग
बता दें कि मद्रास हाईकोर्ट की यह पीठ कैथोलिक पादरी फादर जॉर्ज पोन्नैया की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो अपने खिलाफ दायर घृणास्पद भाषण मामले को रद्द करने की मांग कर रहे थे। पश्चिमी कन्याकुमारी के अरुमनई गांव के रहने वाले पोन्नैया ने कहा कि ईसाइयों ने 62 प्रतिशत आबादी को पार कर लिया है और जल्द ही इनकी संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि और होगी। इससे पहले पोन्नैया ने कथित तौर पर कहा था, “मैं हिंदुओं को चेतावनी देता हूं कि हमारे विकास को कोई नहीं रोक सकता।” अदालत ने अभद्र भाषा के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा, “यदि यथास्थिति का एक गंभीर बदलाव होता है, तो इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। राज्य कानून के शासन को बनाए रखने के लिए मौजूद है लेकिन मामले की गम्भीरता अंतिम बिंदु पर पहुंच जाएंगी तो चीजें अपरिवर्तनीय हो सकती हैं।”
गौरतलब है कि कन्याकुमारी जिले के अरुमनई शहर में पिछले साल 18 जुलाई को दिवंगत कार्यकर्ता फादर स्टेन स्वामी को श्रद्धांजलि देने के लिए बुलाई गई एक बैठक के दौरान एक अपमानजनक और भड़काऊ भाषण के लिए इस पादरी पर मामला दर्ज किया गया था। भाषण सोशल मीडिया में वायरल हो गया, जिसके कारण पुलिस ने जॉर्ज पोन्नैया पर FIR दर्ज की थी। बाद में, इस पादरी ने FIR रद्द करने की मांग करते हुए दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 482 के तहत मद्रास हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
आस्था के साथ खिलवाड़ करना नहीं होगा स्वीकार्य
जब यह मामला मद्रास हाई कोर्ट पंहुचा तब न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने याचिका पर विचार करते हुए कहा, “याचिकाकर्ता ने उन लोगों का मजाक उड़ाया जो धरती माता के सम्मान में नंगे पैर चलते हैं। उन्होंने कहा कि “ईसाई जूते पहनते हैं, ताकि उन्हें तकलीफ न हो। उन्होंने भूमा देवी और भारत माता को संक्रमण और गंदगी के स्रोत के रूप में चित्रित किया। आस्था रखने वाले हिंदुओं की भावनाओं के लिए इससे ज्यादा अपमानजनक कुछ नहीं हो सकता।”
न्यायाधीश ने आगे कहा, “IPC की धारा 295 A तब लागू होती है, जब किसी भी वर्ग के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं और आस्था पर हमला होता है। यह आवश्यक नहीं है कि सभी हिंदू नाराज हों, यदि अपमानजनक शब्द हिंदुओं के एक वर्ग की धार्मिक भावनाओं या आस्था को आहत करते हैं, तो दंडात्मक प्रावधान लागू होगा।”
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ऐसे में, न्यायालय ने अपने इस निर्णय से ऐसे समूहों को कड़ा संदेश दिया है, जो भारत के विभिन्न कोने में चुपचाप धर्मांतरण करने में सक्रिय हैं।वहीं, धर्मांतरण की स्थिति धीरे-धीरे जटिल होते जा रही है। यह सत्य है कि जनसांख्यिकी में जब हिन्दू बाहुल्य होते हैं तो कोई भी समस्या नहीं होती है लेकिन हिंदुओ के अल्पसंख्यक होते ही उन्हें पलायन करने पर मजबूर होना पड़ता है। लिहाजा, न्यायालय ने अपने निर्णय से स्पष्ट कर दिया है कि धर्मान्तरण की आड़ में हिंदुओं एवं अन्य समुदायों की आस्था के साथ खिलवाड़ करना कतई स्वीकार्य नहीं होगा।