मुख्य बिंदु
- अमेरिका के डॉक्टरों ने सूअर के दिल को 57 वर्षीय व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया, उनका दावा था कि यह अब तक पहला ट्रांसप्लांट है
- भारत में असम के रहने वाले डॉ. धनीराम बरुआ ने वर्ष 1997 में एक सूअर के अंगों को एक मानव शरीर में ट्रांसप्लांट किया था
- डॉ. धनीराम बरुआ 25 साल पहले सूअर के दिल को सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट करने वाले पहले व्यक्ति थे
मेडिकल साइंस आज के समय में बहुत आगे बढ़ चूका है। बीते 7 जनवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल स्कूल के डॉक्टरों ने दुनिया में एक ऐसा कारनामा कर दिखाया जब उन्होंने आनुवंशिक रूप से संशोधित सूअर के दिल को 57 वर्षीय व्यक्ति में ट्रांसप्लांट किया। इन डॉक्टरों ने दावा किया कि यह दुनिया अब तक पहला ट्रांसप्लांट है। अमेरिका के डॉक्टरों इस तथ्य को भूल गए कि उनके इस दावे को चुनौती दी जा सकती है। दरअसल, गुवाहाटी के पास सोनपुर में स्थित एक कार्डियो-थोरेसिक सर्जन डॉ. धनीराम बरुआ ने वर्ष 1997 में एक सूअर के अंगों को एक मानव शरीर में ट्रांसप्लांट किया था।
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सूअर के दिल का हुआ मानव शरीर में ट्रांसप्लांट
अमेरिका में सर्जनों ने ट्रांसप्लांट के तीन दिन बाद यानी 10 जनवरी को घोषणा की कि उन्होंने आनुवंशिक रूप से संशोधित सूअर के दिल को 57 वर्षीय रोगी में सफल रूप से ट्रांसप्लांट किया है। भारत में प्रकाशित कई समाचार रिपोर्टों में असमिया के ‘योगदानों की अनदेखी’ के लिए मैरीलैंड मेडिकल स्कूल विश्वविद्यालय की आलोचना की गई थी। वहीं, कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि डॉ. धनीराम बरुआ 25 साल पहले सूअर के दिल को सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट करने वाले पहले व्यक्ति थे और उन्हें एक ट्रेलब्लेज़र के रूप में पेश किया था। हालांकि, डॉ. धनीराम बरुआ की एक्सनोट्रांसप्लांटेशन प्रक्रिया बुरी तरह से पीट गई।
आपको बता दें कि ज़ेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) विभिन्न प्रजातियों के सदस्यों के बीच अंगों या ऊतकों (organs or tissues) को ग्राफ्टिंग या ट्रांसप्लांट करने की प्रक्रिया है। वर्ष 1995 में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में डॉ. धनीराम बरुआ ने कहा था कि सूअर विभिन्न पहलुओं में इंसानों के करीब हैं। उन्होंने उस समय एक इलेक्ट्रिक मोटर चालित कृत्रिम जैविक हृदय विकसित किया था, जो बैल पेरीकार्डियम से बना था, जिसे एक सूअर में ट्रांसप्लांट किया गया था।
डॉ. धनीराम बरुआ ने कहा कि मैंने xenotransplantation पर 102 पशु प्रयोग किए हैं। उन्होंने 1 जनवरी, 1997 को एक 32 वर्षीय End-Stage Organ Failure Patient पूर्णो सैकिया के शरीर में एक सूअर के हृदय, फेफड़े और गुर्दे का ट्रांसप्लांट किया था। वहीं, हांगकांग के एक डॉक्टर डॉ जोनाथन हो केई-शिंग ने अपने अनुसंधान केंद्र में उनके ट्रांसप्लांट में उनकी सहायता की थी। बरुआ की ओर से सोनापुर में डॉ. धनीराम बरुआ हार्ट इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर खोला गया, जहां उन्होंने विभिन्न बीमारियों के इलाज पर शोध जारी रखा है। डॉ. धनीराम बरुआ की सहयोगी रही दलीमी बरुआ ने कहा, “मैरीलैंड में हुए ट्रांसप्लांट को लेकर वह बहुत प्रभावित नहीं थे।”
गैर-क़ानूनी ट्रांसप्लांट में डॉ. धनीराम बरुआ को हुई थी जेल
लेकिन एक हफ्ते बाद सैकिया की मौत हो गई, जिससे हंगामा मच गया। दोनों डॉक्टरों को मानव अंग ट्रांसप्लांट अधिनियम, 1994 के तहत गिरफ्तार किया गया और उन पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया। साथ ही उन दोनों को 40 दिनों के लिए जेल में रखा गया था। इसके बाद, असम सरकार ने एक जांच समिति का गठन किया, जिसमें सूअर के हृदय ट्रांसप्लांट को अनैतिक और गैरकानूनी पाया गया।
बताते चलें कि प्रत्यारोपण से पहले एक इंटरव्यू में डॉ धनी राम बरुआ ने कहा था, “मैंने जर्मनी 9 सितंबर 1995 में कहा था कि सूअर एकमात्र ऐसा जानवर है जो ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए सूटेबल है। एक्सपेरिमेंटल स्टडी के लिए भी। साइंटिस्ट दो तरह के होते हैं- मेड साइंटिस्ट, रियल साइंटिस्ट। रियल साइंटिस्ट हमेशा विवादास्पद होते हैं। साइंस एक परिकल्पना से शुरू होती है और जब परिकल्पना सच्चाई बन जाती है तो साइंटिस्ट और उसका काम कंट्रोवर्शियल बन जाता है।”
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ऐसे में, आज अमेरिका के डॉक्टर्स अपनी इस ट्रांसप्लांट उपलब्धि पर दुनिया में सुर्खियां बटोर रहे हैं। यही उपलब्धि 25 वर्ष पहले डॉ. धनीराम बरुआ ने हासिल की थी किन्तु तत्कालीन सरकार ने उन्हें गैर-क़ानूनी ट्रांसप्लांट के मामले में जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। उनके साथ हुआ अपमान से वे आज भी ग्रसित हैं।