Google, एप्पल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न, अमेरिकी टेक इंडस्ट्री की 5 सबसे बड़ी कंपनियां हैं। इन कंपनियों को विश्व में सबसे प्रभावी शक्ति के रूप में पहचाना जाता है। अपने आर्थिक प्रभुत्व का प्रयोग करके यह कंपनियां किसी देश की संप्रभु सरकार को चुनौती दे सकती हैं, पद पर रहते हुए भी अमेरिकी राष्ट्रपति की आवाज बंद कर सकती हैं, दुनिया भर के लोगों का डाटा चोरी कर सकती हैं। किंतु भारत में अपनी दोषपूर्ण नीतियों के कारण इन कंपनियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
कंपटीशन कमिशन ऑफ इंडिया (CCI) ने अमेजन के बाद गूगल के विरुद्ध कार्रवाई शुरू की है। सीसीआई ने कहा, ‘‘सुचारू रूप से काम कर रहे लोकतंत्र में समाचार मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कम कर के नहीं आंका जा सकता है। और, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि डिजिटल कंपनी सभी स्टेक होल्डर्स के बीच आय का उचित वितरण निर्धारित करने की प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने के लिए अपनी मजबूत स्थिति का दुरुपयोग न करे।’’ डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने CCI के पास गूगल की मातृ संस्था अल्फाबेट inc, गूगल एलएलसी, गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और गूगल आयरलैंड लिमिटेड के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई है।
एकाधिकार का प्रयोग कर रहा गूगल
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, “CCI ने ताजा आदेश में माना है कि गूगल एकाधिकार का दुरुपयाेग कर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स पर अनुचित शर्तें थाेप रहा है। आयाेग ने गूगल और इसकी मूल कंपनी अल्फाबेट के विरुद्ध जांच रिपाेर्ट 60 दिन के भीतर तलब की है। डिजिटल न्यूज़ पब्लिशर्स एसोसिएशन ने शिकायत में कहा कि गूगल एल्गोरिदम मनमाने तरीके से तय कर देता है कि कोई जानकारी खोजने पर कौन सी वेबसाइट सबसे ऊपर दिखेगी। यही नहीं, भारतीय न्यूज प्रकाशक गुणवत्तापूर्ण कंटेंट के लिए बड़ा निवेश करते हैं, लेकिन विज्ञापन राशि का काफी बड़ा हिस्सा गूगल रख लेता है, जबकि वह कंटेंट क्रिएट नहीं करता।”
अर्थात् कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया ने जिन दो मामलों में जांच शुरू की है, उनमें प्रथम यह है कि गूगल मनमाने ढंग से कुछ वेबसाइट को अपने सर्च इंजन के माध्यम से बढ़ावा देता है और कुछ वेबसाइट तक लोगों की पहुंच सीमित करता है। दूसरा मामला यह है कि गूगल पर हम जो कंटेंट पढ़ते हैं, उसे कोई मीडिया समूह अथवा रिसर्च फाउंडेशन तैयार करती है, किंतु उस कंटेंट को पढ़ते समय उस पर चलने वाले ऐड से जो आर्थिक लाभ होता है, वह गूगल को मिलता है। ऐसे में मूल कंटेंट राइटर को उसकी मेहनत के बदले रॉयल्टी शेयर कम मिलता है, जबकि गूगल को केवल मंच उपलब्ध कराने के लिए अधिक शेयर मिलता है।
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आस्ट्रेलिया में भी हुआ था विवाद
बताते चलें कि ऑस्ट्रेलिया में पिछले वर्ष रॉयल्टी को लेकर Google और डिजिटल पब्लिशर्स के बीच विवाद हुआ था, जिसमें ऑस्ट्रेलियाई सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा था। जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने गूगल से सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म को उनके हिस्से की रॉयल्टी देने को कहा, तो शुरू में गूगल ने इस निर्णय को अस्वीकार कर दिया था। बाद में ऑस्ट्रेलिया सरकार के कड़े रुख के कारण गूगल को ऑस्ट्रेलिया की शर्तें माननी पड़ी थी।
Google के विरुद्ध कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया की जांच इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि गूगल द्वारा प्रायः अपने सर्च इंजन के माध्यम से वामपंथी मीडिया पोर्टल्स को बढ़ावा दिया जाता है। हाल ही में गूगल ने हिंदी मीडिया पोर्टल को बढ़ावा देने के लिए DigiPub फाउंडेशन के साथ करार किया है। इस करार का मुख्य उद्देश्य हिंदी पत्रकारिता को बढ़ावा देने के बजाय वामपंथी मीडिया संस्थाओं को मंच प्रदान करना है, क्योंकि DigiPub उन कंपनियों द्वारा वित्त पोषित है, जिन पर फेक न्यूज फैलाने से लेकर देश में वैमनस्य स्थापित करने और अराजकता फैलाने के आरोप लगते रहे हैं।
गौरतलब है कि दिग्गज कंपनी अमेज़न द्वारा फ्यूचर ग्रुप और रिलायंस के समझौते को रोकने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए गए। किंतु CCI के हस्तक्षेप ने अमेज़न के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया। अब CCI ने गूगल को जांच के दायरे में लिया है। निश्चित रूप से भारत सरकार अमेरिकी कंपनियों को यह संदेश दे रही है कि भारत में उन्हें व्यापार करना है, तो नियमों का पालन करना ही पड़ेगा।