वर्ष 2007, नई दिल्ली, लोकतंत्र के प्रांगण यानी संसद में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए एक सांसद बोले, “सत्ता का संरक्षण प्राप्त होने के साथ-साथ एक सत्ता द्वारा प्रायोजित उपद्रव किस तरीके से निर्दोष लोगों को जेल में ठूंसने का काम करता था, इसका मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं। 11 दिन तक मैं जेल में रहा। मुझे 27 जनवरी को जेल में डाला जाता है। संसद को सूचना दी जाती है कि मेरे ख़िलाफ 107/16 के तहत FIR की जा रही है। 31 जनवरी को मेरे ख़िलाफ बैक डेट पर फिर से FIR दर्ज की जाती है। 10 हज़ार से ज़्यादा निर्दोष नागरिकों को जेल के अंदर डाला गया था। मैं देखकर ताज्जुब में हूं कि जब मुझे न्याय नहीं मिल सकता तो देश के उन लोगों पर क्या बीत रही होगी, जो इस आशा में हैं कि कोई सांसद या विधायक उनको न्याय दिला पाएगा।”
यात्रा योगी आदित्यनाथ के अद्वितीय उत्थान की
इसके पश्चात वे फूट-फूट कर रो पड़े और वे बड़ी मुश्किल से शांत हो पाए। गोरखपुर से आए इस आक्रामक युवा सांसद से ऐसे भावुक क्षण की किसी को आशा नहीं थी परंतु शायद इसी क्षण से एक ऐसा नेता उत्पन्न हुआ, जिसने उत्तर प्रदेश का भाग्य बदलने का दृढ़ संकल्प लिया। ये कथा है योगी आदित्यनाथ के अद्वितीय उत्थान की, जो आज उत्तर प्रदेश के सबसे सफलतम मुख्यमंत्रियों में से एक हैं। वहीं, योगी आदित्यनाथ एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने और मुख्यमंत्री बनने के साथ-साथ इतिहास रचने की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं।
5 जून 1972 को अविभाजित उत्तर प्रदेश [अब उत्तराखंड] के पौड़ी गढ़वाल के पंचुर ग्राम में जन्में अजय मोहन बिष्ट (योगी आदित्यनाथ) अपने सात भाई-बहनों में पांचवे थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक की उपाधि (डिग्री) प्राप्त की। उसके बाद उनका मन आध्यात्म की ओर जाने लगा और जिस समय अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन अपने शिखर पर था, उसी समय युवा अजय ने जीवन से सन्यास लेने का निर्णय किया।
जब योगी आदित्यनाथ गोरक्षनाथ पीठ से जुड़े
जब वह इस दौर से गुजर रहे थे तब उन्हें महंत दिग्विजय नाथ और महंत अवैद्यनाथ का संरक्षण मिला, जो गोरखपुर के गोरक्षनाथ पीठ से जुड़े हुए थे। वे भली-भांति परिचित थे कि वर्तमान परिस्थितियों में संसार से विरक्ति उचित मार्ग नहीं है और उन्हें हर तरह से योगदान देने के लिए तैयार होना होगा। ऐसे में, महंत अवैद्यनाथ ने अजय को राजनीतिक दीक्षा देना प्रारंभ किया और जल्द ही शिष्टाचारी अजय योगी आदित्यनाथ के रूप में सबके सामने आए। उन्होंने हिन्दू युवा वाहिनी जैसे संगठनों को बढ़ावा देना प्रारंभ किया और आक्रामक राष्ट्रवाद का प्रचार किया। 1998 में जब भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार सरकार बनाई तब योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर से बतौर लोकसभा सांसद विजय प्राप्त की, और 2014 तक वे निर्विरोध इस क्षेत्र से सांसद चुने गए।
योगी के पुनः विजयी होते ही तय है सपा का अंत
इस बीच योगी आदित्यनाथ का जीवन कई चुनातियों से भी गुजरा। 2007 ऐसा समय था जब देश राजनीतिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। देश में तब कांग्रेस की सरकार थी और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर तुष्टीकरण की कुत्सित राजनीति व्याप्त थी। इसी बीच माओवाद और इस्लामिक आतंकवाद के गठजोड़ के विरुद्ध जब हिन्दू युवा वाहिनी ने आवाज़ उठाई, तो जनवरी में एक छात्र नेता अजीत सिंह की हत्या हुई कर दी गई, जिसके बाद गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।
योगी आदित्यनाथ सांसद होने के नाते स्थिति को संभालने पहुंचे, लेकिन दंगाइयों ने उलटे उन्हीं पर दंगे भड़काने का झूठा आरोप लगाया, जिसके तत्पश्चात तत्कालीन प्रशासन ने योगी आदित्यनाथ को 11 दिन के लिए जेल में डाला दिया। उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। कहा जाता है कि समय और परिस्थितियां बदलती हैं। ठीक ऐसा ही हुआ, एक वो दिन था और एक आज का दिन है। आज समाजवादी पार्टी अपने अस्तित्व के लिए जूझती हुई दिखाई पड़ रही है।
जिस योगी आदित्यनाथ को रोने के लिए विवश होना पड़ा था, आज वे उत्तर प्रदेश के अपराधियों को रुलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ऐसे में, उनको रुलाने वाला यादव परिवार अपने भाग्य को अवश्य कोस रहे होगा क्योंकि आज योगी आदित्यनाथ ने न केवल उत्तर प्रदेश का कायाकल्प कर दिया है अपितु उनके राजनीतिक विनाश की नींव भी स्थापित की है। यदि वे पुनः विजयी हुए, तो समाजवादी पार्टी का अस्तित्व नष्ट होने में अधिक समय नहीं लगेगा!