गूलर का फूल की पहचान
दोस्तों एक कहावत तो आपने सुनी होगी जिसमें कहा गया है कि जिसने गूलर का फूल देख लिया, उसका भाग्य चमक जाता है. वहीं कई लोग यह भी कहते हैं कि गूलर का सेवन करने वाला वृद्ध भी युवा हो जाता है. गूलर का फूल बरगद, पीपल और अंजीर के वर्ग का वृक्ष होता है. जोकि 20 से 30 फुट तक ऊंचा हो सकता है. इसके पत्ते बरगद के पत्तों से मिलते जुलते हुए होतें हैं पर उससे छोटे रहते हैं.
अगर हम गूलर का फूल के किसी भी अंग में चीरा लगाते हैं तो उसमें से दूध निकलता है. इसके फल अंजीर के फलों से मिलते जुलते हैं. जो कि हरे और पकने के बाद लाल हो जाते हैं. इनके पक्के फलो के अंदर से छोटे मच्छर भी निकलते हैं. वहीं आदिवासी लोगों का कहना है कि ये किट इसके फल को श्रेष्ठ और औषध गुण प्रदान करते हैं.
गूलर का फूल
कई लोगों का गूलर के फूल को लेकर अलग अलग मत है.जिसमें कुछ लोग का कहना है कि गूलर का फूल लगता ही नहीं. वहीं कुछ का मानना है कि गूलर का फूल होता है. जो कि एक विशेष समय पर ही लगता है. यह सफेद रंग का फूल होता है जो रात को लगता है.वहीं सुबह सूरज के उगने पर यह धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है.
जिसकी वजह से यह सुबह के वक्त दिखाई नहीं देता है. ऐसा भी कहा जाता है कि गूलर के फूल से एक विशेष प्रकार की काजल बनाया जाता है. जिसे लगाने पर अगर आपके सामने कोई बी आता है तो वह वशीभूत हो जाता है. अब इस बात में कितनी सच्चाई है यह कुछ कह नहीं सकते हैं. क्योंकि इस समय ऐसे कोई भी सबूत प्राप्त नहीं होते हैं जिनसे निर्णय हो पाए कि गूलर का फूल वास्तव में होता भी है या नहीं.
गूलर के अन्य भाषाओं में नाम
संस्कृत- औदुम्बरम् (odumbram), उदुम्बर (odumbar), हेमदुग्ध (hemdugdh), जंतुफल (jantufal), क्षीर वृक्ष (chirvarksh).
हिंदी- गूलर (gular), ऊमर (umar), परोआ (paroaa).
गुजराती- उमरो (umaro.
मराठी- ऊंबर (unbar), गूलर (goolar).
बंगाली- यज्ञ डुम्बर (yagh dumbar), जगनो डुम्बर (jagno dumbar).
पंजाब- ददुरि (daduri), काकमाल (kakmal).
अरबी- जमीक्षा (jamiksha).
तमिल- अतिमरम (atimaram).
तेलुगू- आत्तिमाणू (attimanu).
फारसी- अंजीरे आदम (anjire aadam).
लेटिन- Ficus Glomerata (फिकस ग्लोमीरेटा)
गूलर का फूल के गुण-दोष और प्रभाव
आयुर्वेदिक दृष्टि सेगूलर बहुत ही लाभदायक है.यह शीतल, गर्भ रक्षक, व्रण को भरने वाला, मधुर, रूखा, कसैला, भारी, हड्डी को जोड़ने वाला, वर्ण को उज्जवल करने वाला तथा कफ, पित्त, अतिसार और योनि रोग को नष्ट करने वाला होता है. इसकी छाल भी अत्यंत शीतल, दुग्ध वर्धक, कसेली, गर्भ को हितकारी और वर्ण विनाशक होती है.वहीं इसके कोमल फल स्तम्भक, कसैले, खून के रोगों को नष्ट करने वाला और तृषा, पित्त तथा कफ को दूर करने वाले होते हैं. तमिल बोलने वाले लोग इसकी छाल के सीतनिर्यास को अत्यधिक रजस्त्राव की बीमारी में काम में लेते हैं.वहीं कई प्रकार की खुबियां गूलर में पाई जाती हैं.
गूलर कहाँ पाया या उगाया जाता है?
गूलर के पेड़ वैसे तो कहीं भी मिल सकते हैं पर ज्यादातर यह खेतों तथा जंगलों में पाए जाते हैं. दोनों स्थानों में 2000 मीटर की ऊंचाई तक गूलर के पेड़ मिलते हैं. जंगलों एवं नदी-नालों के किनारे इसके वृक्ष अधिक पाए जाते हैं.
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फायदे
पित्त के रोग
इसके पत्तों को पीसकर शहद के साथ मिलाकर देने से पित्त के रोग दूर होते हैं.
अल्सर से राहत दिलाने में लाभकारी गूलर
गूलर में पाए जाने वाले शीत गुण के कारण यह अल्सर जैसी परेशानी में भी लाभ पहुंचाता है. शीत होने के कारण यह अल्सर के स्थान पर ठंडक प्रदान कर घाव को जल्दी ठीक होने में मदद करता है.
मूत्र कच्छ
गूलर का 70 ग्राम मद्द रोज पिलाने से मूत्रकच्छ मिट जाता है.
निमोनिया के इलाज में फायदेमंद गूलर
निमोनिया होने का एक कारण कफ दोष का अनियमित रूप से काम करना होता है. गूलर में कफ शामक गुण पाए जाने के कारण यह निमोनिया जैसी स्थिति में भी लाभदायक होता है.
वहीं कई तरह की बिमारियो में भी गूलक का प्रयोग किया जाता है.जिनमें-चेचक,दंत रोग,सूजन ,रक्त प्रदर ,बवासीर खून की उल्टी,गूलर की जड़े,रज स्त्राव ,नकसीर ,नासूर ,गर्भ का ना ठहरना,मूत्र रोग ,भिलावें की सूजन,गुलर का रस,पीत्त ज्वर,श्वेत प्रदर, बच्चों का भस्मक रोग ,चेचक,मधुमेह प्रमेह,श्वेत कुष्ठ ,रक्तपित्त,बच्चों के सूखा रोग, पशुओं की महामारी, गूलर और नेत्र रोग आदि.
गूलर का फूल से नुकसान
1.गूलर का अधिक मात्रा में सेवन करने से बुखार भी हो सकता है.
2.पके हुए फलों को अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे आंतों में कीड़ों भी हो जाते हैं.
3.गर्भवती महिलाओं को इसका सेवन करने से पहले अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
नोट : इसका सेवन करने से पहले अपने निजी चिकित्सक की सलाह अवश्य ले, और यह लेख सिर्फ सामान्य ज्ञान के निमित्त से ही लिखा गया है.
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