खान-पान के मामले में भारत विविधताओं से भरा है। सिर्फ विविधता ही नहीं, बल्कि पौष्टिकता और शुद्धता के मामले में भी देश काफी आगे है। हमारे खान-पान में एक देशीपने का होना आवश्यक है। इसी आवश्यकता के कारण जब भारत में पहला मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां 1996 में दिल्ली के बसंत लोक में खुला, तो यह बीफ़ या पोर्क उत्पादों की सेवा नहीं करने वाला दुनिया का पहला मैकडॉनल्ड्स बन गया। इसी आवश्यकता के कारण हल्दीराम भुजिया और रेस्टोरेंट श्रृंखला का जन्म हुआ। आज हम आपको भारत के प्रतिष्ठित उद्यम हल्दीराम की बेहतरीन गाथा काफी स्पष्ट शब्दों में बताएंगे।
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बीकानेर के एक छोटी दुकान से हुई थी शुरुआत
हल्दीराम पूरे भारत में एक प्रतिष्ठित ब्रांड बन गया है। इसकी शुरुआत 1937 में बीकानेर के एक छोटी सी दुकान से हुई थी। इसके संस्थापक गंगा बिसेन अग्रवाल थे, जिन्हें उनकी मां प्यार से हल्दीराम बुलाती थी। उन्होंने अपनी चाची से इस भुजिया को बनाने का नुस्खा प्राप्त किया। यह वर्तमान स्नैक का गाढ़ा और नरम प्रारूप था, जिसे दुनिया अब बीकानेरी भुजिया के नाम से जानती है। जब गंगा बिशेन बीकानेर के भुजिया बाजार में अपने पारिवारिक स्नैक का स्टॉल लेकर शामिल हुए, तो उन्होंने अपनी मौसी के व्यापारिक नुस्खे का इस्तेमाल किया।
पवित्रा कुमार ने अपनी पुस्तक ‘भुजिया बैरन्स’ में उल्लेख किया है कि अग्रवाल ने मोठ (एक प्रकार की दाल) का आटा मिलाकर भुजिया को बनाया, जो कि पहले बेसन (छोले के आटे) से बनता था। यह एक अप्रत्याशित प्रयोग था। उन्होंने महीन जाली का उपयोग कर, इसे और भी पतला किया। वो जानते थे कि अपने नए उत्पाद को स्मार्ट तरीके से कैसे ब्रांड किया जाए। उन्होंने बीकानेर के लोकप्रिय महाराजा डूंगर सिंह के नाम पर इसका नाम ‘डूंगर सेव’ रखा।
अपने नए ब्रांड के साथ, उन्होंने अपने दादा के व्यवसाय से नाता तोड़ लिया। उनके उत्पाद ने खरीदारों के साथ तालमेल बिठाया। लगभग एक दशक के बाद, वह हर हफ्ते 200 किलो भुजिया बेच रहे थे और उसकी कीमत 2 पैसे प्रति किलो से बढ़कर 25 पैसे हो गई थी। हल्दीराम सत्तर के दशक में भी एक लंबे, फुर्तीले और फिट आदमी थे। उन्होंने अपने शांत स्वभाव और गंभीर व्यवहार के कारण अपने पुत्रों और पौत्रों में व्यवसायिक उत्कृष्टता को प्रेरित किया। बताया जाता है कि 72 साल की उम्र में भी वो साइकिल ही चलाते थे।
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हल्दीराम के साम्राज्य की शुरुआत
हल्दीराम के साम्राज्य के शुरुआत की एक अनोखी कहानी थी। हल्दीराम तब एक शादी में शामिल होने कोलकाता गए थे, जिससे उन्हें वहां एक दुकान खोलने का विचार आया। बीकानेर भुजिया व्यवसाय की यह पहली शाखा थी। दूसरी पीढ़ी ने कारोबार का और विस्तार नहीं किया। हालांकि, पोते मनोहरलाल और शिव किशन इस व्यवसाय को नागपुर और दिल्ली ले गए। दिल्ली की चांदनी चौक वाली दुकान जनता के बीच एक बड़ी हिट साबित हुई। फिर दिल्ली के साथ-साथ नागपुर में भी विनिर्माण संयंत्र लगाए गए। इसके बाद भारत के प्रमुख शहरों के साथ-साथ विदेशों में भी रेस्तरां खोले गए। उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली स्थित हल्दीराम स्नैक्स और एथनिक फूड्स, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों में नागपुर स्थित हल्दीराम फूड्स इंटरनेशनल और पूर्वी क्षेत्र में कोलकाता स्थित हल्दीराम भुजियावाला के साथ इस कंपनी का संचालन तीन अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित हो गया।
ट्रेडमार्क पर विवाद
विवादों ने यदा कदा इस व्यापारिक साम्राज्य को घेरे रखा है। गंगा विसेन के वंशजों के बीच क्षेत्रीय और ट्रेडमार्क अधिकारों पर लड़ाई चल रही है, जो इस परिवार द्वारा संचालित व्यवसायों के लिए एक विशिष्ट चुनौती बनकर उभरी है। ब्रांड के स्वामित्व और ट्रेडमार्क को लेकर विवाद चल रहा है। मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में सक्रिय कोलकाता गुट ने अन्य दो पक्षों को अदालत में घसीटा है। दशकों से चली आ रही कानूनी लड़ाई फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है। कई सहायक कंपनियों और संस्थाओं के साथ समूह की जटिल कॉरपोरेट संरचना और चल रहे विवाद खरीदार के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करेंगे।
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भुजिया से करोड़ों की कमाई
केलॉग के साथ चल रही विक्रय और निवेश की बातचीत में कंपनी की तीन शाखाओं में से दो शामिल हैं, उसमें एक है दिल्ली स्थित हल्दीराम एथनिक फूड्स और उसके सहयोगी तथा दूसरा नागपुर स्थित हल्दीराम के फूड इंटरनेशनल और सहयोगी। माना जाता है कि दोनों व्यवसायों का मूल्य लगभग 3 बिलियन डॉलर (20,000 करोड़ रुपये) है, जिसमें रेस्तरां व्यवसाय शामिल नहीं है। दोनों डिविजनों ने 4,500-5,000 करोड़ रुपये की बिक्री और 450-550 करोड़ रुपये के लाभ के साथ वित्त वर्ष 2019-20 की समाप्ति की थी। इनका मुनाफा 2021-22 में 600 करोड़ पहुंचने का अनुमान है।
वित्त वर्ष 2016 में जब हल्दीराम का राजस्व 4,000 करोड़ रुपये को पार कर गया, तब इसने हिंदुस्तान यूनिलीवर के पैकेज्ड फूड डिवीजन या नेस्ले मैगी से दोगुना लाभ कमाया था। यह दो अमेरिकी फास्ट फूड प्रतिद्वंद्वियों डोमिनोज और मैकडॉनल्ड्स के भारतीय कारोबार से भी बड़ा हो गया। सितंबर 2017 में, हल्दीराम ने दो दशकों के बाद देश की सबसे बड़ी स्नैक कंपनी के रूप में शीर्ष स्थान हासिल किया और बिक्री में पेप्सिको को पीछे छोड़ दिया। सितंबर 2017 में हल्दीराम की बिक्री 4,224.8 करोड़ रुपये रही, जबकि लेज, कुरकुरे और अंकल चिप्स जैसे ब्रांडों से पेप्सिको की 3,990.7 करोड़ रुपये की बिक्री हुई थी।
बीकानेर की दुकान से फ्रेंच बेकरी तक
वर्ष 1937 में जब गंगा बिसेन अग्रवाल ने बीकानेर में अपनी भुजिया की दुकान खोली होगी, तो उन्होंने शायद ही कभी सोचा होगा कि हल्दीराम वेज शामी कबाब, सोया शामी कबाब, दही कबाब और हरा भरा कबाब बेचेगा। डिब्बाबंद रसगुल्ले और सोन पापड़ी, पानी पुरी और अब देसी रैप जैसी मिठाइयों को शामिल करके हल्दीराम ने अपने नमकीन स्नैक्स की रेंज में विविधता लाई है। हाल ही में, हल्दीराम ने परिवार के बाहर अपनी पहली व्यापारिक सौदे पर हस्ताक्षर किए और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बेकरी श्रृंखला, फ्रेंच बेकरी कैफे ‘ब्रियोच डोरी’ के साथ एक विशेष मास्टर फ्रेंचाइज़ी साझेदारी में प्रवेश किया। पहली बार, ब्रियोच डोरी कैफे में केवल शाकाहारी भोजन परोसा जाएगा।
हल्दीराम की कहानी से पता चलता है कि विदेशी खाद्य व्यवसाय, चाहे वे कितने भी बड़े हों, भारतीय बाजार में सफल होने के लिए उन्हें देसी होना होगा। वर्षों बाद, हल्दीराम ने मैकआलू टिक्की बर्गर पेश करके एक और अजूबा किया। जिसके बाद में, बिग मैक को मैक महाराजा के रूप में पुनर्जन्म लेना पड़ा। कोई भी विदेशी पिज्जा श्रृंखला शाकाहारी उत्पादों की पेशकश के बिना भारत में अपनी पहचान बनाने की उम्मीद नहीं कर सकती है। वर्ष 2013 में पहली बार अमेरिकी रेस्तरां फ्रेंचाइज़ी सबवे ने अहमदाबाद में अपने पहले ऑल-वेज आउटलेट में एक जैन काउंटर खोला। हल्दीराम विदेशी खरीदारों के लिए एक आकर्षक विकल्प है, क्योंकि एक विदेशी खाद्य कंपनी के लिए एकदम से देसी खाद्य ब्रांड बनना मुश्किल है पर ‘हल्दीराम’ तो भारत के ‘हर घर की भुजिया’ है।
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