कुछ महीने पहले, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत राज्य के प्रभारी महासचिव के रूप में पंजाब कांग्रेस में व्याप्त असंतोष को दबाने में व्यस्त थे। उनकी निगरानी में ही अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटा कर, कट्टर पाक समर्थक नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी की राज्य इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसके अलावा चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री के रूप में पदोन्नत किया गया था। हालांकि, यह असंतोष तो दबा नहीं, उल्टे पंजाब को और अशांत और अस्थिर कर गया। सत्ता के लालच में कांग्रेस द्वारा लिए गए इस फैसले पर अमरिंदर सिंह ने कहा था की एक दिन आप भी इस परिस्थिति में फसेंगे, क्योंकि आप ही ने इस संक्रमण को चुपचाप फैलने दिया है। आज वक्त का पहिया पूरा चक्कर लगा चुका है और हरीश रावत की स्थिति भी कुछ वैसी ही हो गई है।
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कांग्रेस पार्टी में रावत की उपेक्षा
उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारी करते हुए, उन्होंने सार्वजनिक रूप से पार्टी से समर्थन की कमी के बारे में शिकायत की थी। रावत आगामी चुनाव के लिए कांग्रेस के चुनाव प्रचार प्रमुख हैं। उन्होंने हाल ही में ट्वीट्स की एक श्रृंखला डाली, जिसमें कहा गया था कि ऐसे समय में जब उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, पार्टी उनकी अनदेखी करके नकारात्मक भूमिका निभा रही है। ये ट्वीट स्पष्ट रूप से गांधी परिवार और उनके दूतों जैसे उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव और कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर संकेत कर रहे थे।
दरअसल, पार्टी में चल रही अंदरुनी उठापटक को लेकर रावत पिछले कुछ समय से उबल रहे हैं। टिकट बंटवारे में नजरअंदाज किए जाने के कारण वो और अधिक उबल गए है। पार्टी ने आने वाले चुनावों के लिए पहले ही उन्हें बिना बताए 35 उम्मीदवारों की सूची को अंतिम रूप दे दिया। इससे रावत नाराज हो गए। खबरों की मानें तो कांग्रेस नेतृत्व पर वो खुद को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने के लिए दबाव डाल रहे हैं। रावत चाहते थे कि उनके समर्थकों को बड़ी संख्या में टिकट मिले, लेकिन पार्टी ने न केवल उनकी मांगों को नजरअंदाज किया, बल्कि उन्हें राज्य इकाई से भी कोई समर्थन नहीं मिला है।
जमीनी नेता हैं रावत
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल और देवेंद्र यादव विशेष रूप से रावत के निशाने पर हैं, क्योंकि राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले ये दोनों नेता मुख्य खलनायक के रूप में उभरे हैं, जिन पर राज्य के वरिष्ठ नेताओं से सलाह लिए बिना टिकट बांटने का आरोप है। ये स्पष्ट है कि रावत के विरोध से पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री पहाड़ी राज्य में पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं और राजनीतिक क्षमता भी रखते हैं। वो राज्य में पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते है, खासकर कुमाऊं क्षेत्र में, जहां पूर्व मुख्यमंत्री के काफी फॉलोअर्स हैं।
हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उत्तराखंड दल से मुलाकात की। रावत को पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया गया। हालांकि, हरीश रावत ने पार्टी के सत्ता में आने पर अपने पूर्ण समर्थन का आश्वासन दिया है। इसी बीच, रावत से चुनाव प्रचार पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया गया, जबकि देवेंद्र यादव, प्रीतम सिंह और किशोर उपाध्याय सहित राज्य के नेताओं को चुनाव में संयुक्त मोर्चा पेश करने के लिए रावत के साथ संयुक्त अभियान चलाने का निर्देश दिया गया।
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रावत का भी होगा अमरिंदर जैसा हश्र!
राजनीतिक पंडितों के अनुमान के मुताबिक हरीश रावत अब बुरी तरह से फंस गए हैं। इतिहास गवाह रहा है कि कांग्रेस पार्टी का आलाकमान सिर्फ अपना राजनीतिक हित और स्वार्थ देखता है, न कि राष्ट्रहित और वचनबद्धता। रावत अवश्य ही छले जायेंगे। कांग्रेस पार्टी आलाकमान ने उन्हें सिर्फ झूठा आश्वासन दिया है, ताकि पार्टी में विरोध के स्वर न उभरे। कांग्रेस पार्टी भी जानती है कि रावत के बगावत से उसे नुकसान हो सकता है, अतः चुनाव तक सभी चुप्पी साधे रखेंगे। परन्तु, कांग्रेस की चुप्पी का एक और मतलब भी है।
कांग्रेस पार्टी जानती है कि रावत एक मजबूत क्षत्रप हैं, इसीलिए चुनाव में उन्हें आगे रखकर उनकी छवि अंजोर की जाएगी और चुनाव जीतने के पश्चात कांग्रेस सीएम पद पर किसी कठपुतली जैसे नेता को बैठा दिया जाएगा! रावत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये होगा की उस समय वो कुछ कर भी नहीं पाएंगे, क्योंकि टिकट बंटवारे में उनके समर्थकों को टिकट नहीं दिया गया है। अतः 73 साल के रावत को 5 साल और इंतजार करना पड़ेगा वो भी खराब छवि के साथ, जिसकी शुरुआत पीएम सुरक्षा चूक में बीएसएफ को दोष देने से हो ही चुकी है।
रावत करेंगे बगावत?
उत्तराखंड चुनाव 202 में रावत के पास और भी बहुत कुछ दांव पर लगा है। वो 73 साल के हैं और सत्ता में यह उनका आखिरी शॉट है। वो अगले पांच साल के लिए सत्ता से बाहर बैठने का जोखिम नहीं उठा सकते। हालांकि, उनके समर्थकों ने इस बात से इनकार किया है कि रावत अगर प्रेरित हुए तो पार्टी छोड़ सकते हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने अपने लिए विकल्प खुले रखे हैं। रावत ने हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को उनके जन्मदिन पर बधाई देने के लिए बुलाया था और बाद में उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं से मुलाकात भी की थी। इन बैठकों ने अनुमानतः उन अटकलों को हवा दे दी है कि रावत कांग्रेस से जल्द ही अलग होंगे। रावत को तुरंत चुनना होगा- विरोध या बलि का बकरा। अगर वो देर करते हैं, तो 5 साल तक सिर्फ अपना राजनीतिक करियर खत्म होते हुए देखेंगे!
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